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Air Pollution: प्रदूषित हवा से भी डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, मगर कैसे?

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जब आप डायबिटीज (diabetes) का खतरा बढ़ाने वाले कारकों के बारे में सोचते हैं, तो आपके मन में क्या ख्याल आता है?

मोटापा (Obesity)? जंक फूड (Junk food)? हाई ब्लड प्रेशर (High blood pressure) और कोलेस्ट्रॉल (cholesterol)? कम शारीरिक गतिविधियों वाली जीवनशैली?

डायबिटीज के इन रिस्क फैक्टर में वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी के बारे में क्या कहना है?

परंपरागत वजहों के अलावा हाल के वर्षों में सामने आए शोध प्रदूषण और डायबिटीज के बीच एक पुख्ता संबंध की ओर इशारा करते हैं और जो अब तक अनजाना रहा है.

वायु प्रदूषण (air pollution) असल में किस तरह डायबिटीज के लिए जिम्मेदार है और इस बीमारी को कैसे बढ़ाता है?

फिट ने मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली में एंडोक्राइनोलॉजी एंड डायबिटीज के चेयरमैन व हेड डॉ. अंबरीश मित्तल और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी से बात की.

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भारत में डायबिटीज

भारत को ‘दुनिया की डायबिटीज राजधानी’ (diabetes capital of the world) कहा जाता है, और चिंताजनक आंकड़ा देश में खतरनाक प्रदूषण स्तर जैसा ही है– दुनिया में सबसे बड़ी हिस्सेदारी वाला.

और जैसा कि लगता है, प्रदूषण का न सिर्फ डायबिटीज की शुरुआत में बड़ा हाथ हो सकता है, बल्कि बीमारी को गंभीर बनाने में भी इसका हाथ हो सकता है.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट प्रो. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, “यहां तक कि प्रीडायबिटिक (prediabetic) कंडिशन में भी आपको बड़े पैमाने पर वैस्कुलर डैमेज और अंगों को नुकसान हो सकता है, जो हार्ट या किडनी भी हो सकता है.”

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देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली की बात करते हुए प्रो. रेड्डी कहते हैं,

“एम्स के साथियों ने कुछ साल पहले एक बड़ी स्टडी की थी, जिसमें पाया गया कि अगर आप डायबिटीज और प्रीडायबिटीज दोनों को मिलाकर देखें तो दिल्ली के 73 फीसद वयस्क पुरुषों में ग्लूकोज इनटॉलरेंस (glucose intolerance) या जिसे डिस्ग्लाइसीमिया (dysglycemia) भी कहते हैं, पाया गया.”

डॉ. अंबरीश मित्तल कहते हैं कि अगर आप किसी महानगर में हैं तो डायबिटीज का खतरा किसी गांव के मुकाबले तकरीबन तीन से चार गुना अधिक है. इसलिए जहां गांवों में डायबिटीज बढ़ रहा है, वहीं शहरों में यह कई गुना तेजी से बढ़ा है.

संभावना है कि इसके लिए कुछ हद तक गांवों की तुलना में शहरों में प्रदूषण का ऊंचा स्तर जिम्मेदार हो.

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प्रदूषण से डायबिटीज और डायबिटीज से मौत का खतरा

अंबरीश मित्तल बताते हैं इस बात के सबूत हैं कि वायु प्रदूषण से गंभीर जटिलताओं का भी खतरा बढ़ जाता है और यहां तक कि डायबिटीज के मरीजों की मौत भी हो जाती है.

वह कहते हैं, “जो प्रदूषण खासतौर पर मायने रखता है, वह है पीएम 2.5 यानी बारीक कण. ज्यादातर स्टडी इशारा करती हैं कि पीएम 2.5 वायु प्रदूषण से डायबिटीज और डायबिटीज से मौत का खतरा बढ़ जाता है.”

डॉ. मित्तल जिन स्टडी की बात कर रहे हैं, उनमें से एक 2018 में लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ (Lancet Planetary Health) में छपी एक स्टडी में पाया गया कि पीएम 2.5 प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी में बढ़ोतरी के साथ डायबिटीज होने (और मौत) का खतरा बढ़ गया.

लैंसेट की स्टडी का कहना था कि दुनिया भर में 8.5 वर्षों के दौरान पीएम 2·5 के वातावरण में लगभग 32 लाख डायबिटीज के मरीज हुए, जिनमें से 2,06,105 की डायबिटीज से मौत हो गई.

इसके अलावा, इनमें बड़ी संख्या निम्न और मध्यम आय वाले देशों से थी, जिसमें भारत भी शामिल था.

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हालांकि डॉ. मित्तल और प्रो. रेड्डी दोनों सूजन (inflammation) को खास कारण मानते हैं.

प्रोफेसर रेड्डी कहते हैं, “डायबिटीज खासतौर से वायु प्रदूषण पर पूरे शरीर की प्रतिक्रिया से जुड़ा है. ज्यादा प्रदूषण वाली जगहों में सिर्फ डायबिटीज ही नहीं बल्कि प्रीडायबिटीज और ग्लूकोज इनटॉलरेंस भी साफ तौर से दिखाई देता है.”

“एकदम साफ है कि जब आपके पर्यावरण में पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होता है तो यह शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ाता है.”
डॉ. अंबरीश मित्तल, चेयरमैन और हेड, एंडोक्राइनोलॉजी एंड डायबिटीज, मैक्स अस्पताल, नई दिल्ली

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस शरीर में मुक्त कणों (free radicals) और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन है. मुक्त कण ऑक्सीजन युक्त अणु होते हैं, जिनमें असमान संख्या में इलेक्ट्रॉन होते हैं.

डॉ. मित्तल बताते हैं, “डायबिटीज के बढ़ने में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और शायद डायबिटीज के होने में भी.”

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वह कहते हैं. “पीएम 2.5 ब्लड वेसेल लाइनिंग या एंडोथेलियम को भी नुकसान पहुंचाता है, और इस तरह इससे एंडोथेलियल का कामकाज भी बिगड़ जाता है.”

इसके अलावा पीएम 2.5 कणों से पैदा हुई सूजन इंसुलिन रेजिस्टेंस को भी बढ़ाती है, जो डायबिटीज का रास्ता साफ करती है.

डॉ. मिथल कहते हैं, तीसरी बात, “सूजन असल में बीटा सेल्स जैसे पैंक्रियाटिक सेक्रेशंस को भी नुकसान पहुंचा सकती है. कुछ स्टडी भी हैं जो ऐसे ही नतीजे बताती हैं (हालांकि) यह अभी तक अंतिम रूप से साबित नहीं हुई हैं.”

वायु प्रदूषण का मतलब यह भी है कि आउटडोर शारीरिक गतिविधियों का सीमित हो जाना.

प्रोफेसर रेड्डी बताते हैं कि इससे बहुत ज्यादा बैठने, वजन बढ़ने जैसी एक से दूसरी घटना को बढ़ावा मिलता है और इसका अंतिम नतीजा डायबिटीज हो सकती है.

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मुश्किल यह है कि वायु प्रदूषण से बचना उतना आसान नहीं है, जिस तरह दूसरे बदले जा सकने वाले जोखिम कारकों को कम किया जा सकता है— जैसे कि अपनी डाइट में बदलाव करना या एक्सरसाइज करना.

ऐसे में समाधान आम लोगों पर केंद्रित सरकार की नीति में है.

समाधान यहां हैं ...

...हमें बस इसे ठीक तरीके से लागू करने की जरूरत है.

प्रोफेसर रेड्डी कहते हैं, “कई बहुआयामी योजनाएं हैं, जो पहले से सरकार के पास हैं. हमें बस इन्हें असरदार तरीके से लागू करने की जरूरत है.”

इनमें से कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके लिए सरकारी नीति के अनुसार कदम उठाने की जरूरत है:

  • वाहनों में इस्तेमाल किए जाने वाले ईंधन के मामले में बेहतर उत्सर्जन मानकों को लागू कर वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम किया जाए

  • वाहनों की संख्या कम की जाए ताकि कुल उत्सर्जन कम हो

  • हमें यह पक्का करना होगा कि हम कोयले की जगह स्वच्छ ऊर्जा (cleaner energy) की ओर कदम बढ़ाएं

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  • कोयले पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिए बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले कोयले की जगह उपलब्ध स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को भी अपनाया जाए

  • फसलों के बचे हिस्से और खेती का कचरा, जो प्रदूषण का एक और बड़ा स्रोत है, जलाने को नियंत्रित किया जाना चाहिए

  • इसी तरह निर्माण कार्यों से खासतौर से शहरों में हवा में उड़ने वाली धूल पर नियंत्रण होना चाहिए

प्रो. रेड्डी कहते हैं, “तो हमें वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी है, हम वायु प्रदूषण के स्रोतों के बारे में जानते हैं. हम असरदार नियंत्रण रणनीतियों को भी जानते हैं. ऐसे में सिर्फ तमाम एजेंसियों और मंत्रालयों को एकमुश्त ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है.”

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