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आपको कैसे बीमार कर रहा है ये स्मार्टफोन?

आपके गैजेट्स में कैसे छिप जाते हैं लाखों कीटाणु?

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सवालः क्या मेरे पास एक स्मार्टफोन है?

जवाबः नहीं, स्मार्टफोन में मैं हूं.

आज के समय में ज्यादातर लोगों में यही देखने को मिल रहा है. स्मार्टफोन उनकी लाइफ में ऐसे घर कर गया है कि बगैर उसके एक पल भी गुजारना मुश्किल है. इस बात पर बिल्कुल भी ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि किसी दिन स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हुए अचानक पेट में तेज दर्द शुरू हो जाए या आपको चक्कर आने लगे. इस बात के लिए आप अपने खाने या किसी और बात को वजह ना मानें तो बेहतर होगा.

लंबे समय तक स्मार्टफोन के जरिए व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी अन्य साइट पर समय बिताने या यूं कहें कि घंटों स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते रहने पर आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. आपको सिरदर्द, आलस, सुस्ती, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ सकता है.

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क्या आपका स्मार्टफोन आपको बीमार कर रहा है?

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
सेलफोन से निकलने वाली कई तरंगे काफी खतरनाक भी होती हैं
(फोटो:iStock/Alterd by FIT)

सेलफोन से कई तरह की रेडियो वेव्स (रेडियो तरंगे) निकलती हैं. इनमें से कई तरंगे काफी खतरनाक भी होती है. अगर लंबे समय तक आप फोन के संपर्क में रहते हैं तो ये हानिकारक रेडियो वेव्स आपको नुकसान पहुंचा सकती हैं और आपको बीमार भी बना सकती हैं.

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क्या स्मार्टफोन कैंसर की वजह हो सकता है?

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय पर अभी काफी रिसर्च की जरूरत है
(फोटो:iStock/Alterd by FIT)

कैंसर एक ऐसा शब्द है, जो पूरी जिंदगी को तबाह करने के लिए काफी है. हम दावे के साथ यह नहीं कह सकते कि स्मार्टफोन से कैंसर हो ही सकता है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की कैंसर संस्था इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर की कई स्टडी में अलग-अलग रिजल्ट सामने आए हैं.

लेकिन कुछ स्टडी में इस बात की तरफ इशारा किया गया है कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल संभवतः कैंसर का कारण हो सकता है.

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय पर अभी काफी रिसर्च की जरूरत है.

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क्या आपका फोन आपको स्लो बना रहा है?

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
प्रतिक्रिया देने की क्षमता में कमी आ सकती है
(फोटो: iStock)
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मेडिकल जर्नल ह्यूमन फैक्टर्स में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, सेलफोन का ज्यादा इस्तेमाल नाटकीय अंदाज से लोगों को स्लो बना देता है. सामान्य तौर पर जो लोग सेलफोन का इस्तेमाल नहीं करते वो सेलफोन का इस्तेमाल करने वालों की तुलना में 23 फीसदी तेजी से किसी बात पर प्रतिक्रिया देते हैं.

मोबाइल के अधिकतम इस्तेमाल से लोगों में तुरंत फैसला लेने या किसी बात पर खुद को फोकस करने की क्षमता में कमी आई है. और इस वजह से सड़क दुर्घटनाओं में भी काफी बढ़ोतरी हुई है.

मोबाइल इस्तेमाल करने वाले एक 20 साल के ड्राइवर की सोचने-समझने की क्षमता बिल्कुल उसी तरह की हो जाती है, जैसी स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं करने वाले 70 साल के एक बुजर्ग की होती है.
प्रोफेसर डेविड स्ट्रेयर, को-ऑथर, यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा
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कीटाणुओं का अड्डा है आपका फोन

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
आपको इसका अंदाजा भी नहीं होगा कि मोबाइल पर कितने कीटाणु इकट्ठा होते रहते हैं
(फोटो:iStock/Alterd by FIT)

आपका फोन हर जगह आपके साथ जाता है, गंदे काउंटरों पर, टेबलों पर, बिस्तर पर. हर जगह जहां आप जाते हैं, इसे ले जाते हैं और रख देते हैं बगैर ये जानें-समझे कि आपसे पहले उस जगह को किसी ने किस तरह गंदा किया है. आपकी उंगलियों को स्पर्श करने वाली हर चीज आपकी स्क्रीन पर जाती है. और ऐसे में कीटाणु फोन पर जमा होते चले जाते हैं.

पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में पाया गया कि टॉयलेट की सीट पर जमे बैक्टीरिया की तुलना में सेल फोन में 10 गुना अधिक बैक्टीरिया था.

दूसरे शब्दों में, यूं कहे कि आपके फोन पर हर पल चारों-तरफ से कीटाणुओं का जबरदस्त हमला होता रहता है. आपने कभी इसे बैक्टीरिया फ्री करने की कोशिश की है? शायद नहीं.

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बच्चों के लिए हो सकता है खतरनाक

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
प्रभावित होती है सोचने-समझने की क्षमता
(फोटो:iStock/Alterd by FIT)

एक लाख माताओं और 30 हजार बच्चों पर किए गए एक रिसर्च में यह पाया गया है कि सेलफोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाली माताओं के बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता कमजोर होती है. उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

आंखें भी हो जाती हैं कमजोर

किसी प्रिंटेड पेज की तुलना में डिजिटल स्क्रीन पर किसी चीज को पढ़ने और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. लगातार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आंखें टिकाए रहने से आंखें कमजोर होती है.

सबसे ज्यादा परेशानी का सामना बच्चों को करना पड़ता है.

 सोचन-समझने और प्रतिक्रिया देने तक की क्षमता होती है प्रभावित.
स्क्रीन पर लगातार देखते रहने से आंखों की परेशानी शुरू हो जाती है
(फोटो: iStock)

अगर आप किताब पढ़ रहे होते हैं तो एक मिनट में जहां तकरीबन 18 बार पलकें झपका लेते हैं, वहीं स्मार्टफोन, कंप्यूटर लैपटॉप पर महज 6-7 बार ही पलके झपका पाते हैं. ऐसे में टकटकी निगाहों से स्क्रीन पर देखते रहने से आंखों की परेशानी शुरू हो जाती है.

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प्रेग्नेंसी के दौरान घातक है मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल

गर्भावस्था के दौरान सेलफोन का अत्यधिक उपयोग भ्रूण के मस्तिष्क के विकास की दर को धीमा कर सकता हैं. या बच्चे में जन्मजात व्यवहार संबंधी परेशानी पैदा कर सकता हैं. इसके अलावा, मोबाइल फोन द्वारा निकलने वाला रेडिएशन गर्भपात और जन्मजात विसंगतियों की घटनाओं में भी बढ़ोतरी का कारण बन सकता है.

इन सभी परेशानियों के अलावा एक चौंकाने वाली बात सामने आई है कि 33 फीसदी स्मार्टफोन यूजर अपने फोन को छोड़ने के बजाए सेक्स को नजरअंदाज करना पसंद करते हैं. मतलब वो सेक्स करना छोड़ सकते हैं, लेकिन अपने फोन से अलग होना पसंद नहीं करेंगे.

बेहतर यही होगा कि आप गंभीरता से सोचें और स्मार्टफोन की लत की वजह से खुद को बीमार होने से रोकें.

(डॉ अश्विनी सेतिया दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर हैं. उनका प्रयास लोगों को दवा के बिना स्वस्थ जीवन जीने में मदद करना है. उनसे ashwini.setya@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.)

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