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वेबकूफ: नहीं, कोरोनावायरस का स्किन कलर से कोई लेना-देना नहीं है

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दावा

एक पोस्ट में दावा किया गया है कि अफ्रीकी लोगों में नोवेल कोरोनावायरस से लड़ने की बेहतर प्रतिरोधक क्षमता है. इस पोस्ट में चीन के किसी अस्पताल में एक अफ्रीकी युवा की तस्वीर के साथ चीनी डॉक्टरों का हवाला देते हुए कहा गया कि ये शख्स अपनी त्वचा में मौजूद मेलानिन के कारण बच पाया.

आपको बता दें कि 11 मार्च को WHO की रिपोर्ट के मुताबिक आठ अफ्रीकी देशों में कोरोनावायरस डिजीज-2019 (COVID-19) के मामले सामने आए हैं, जिनमें से 6 देशों में बाहर से संक्रमण के मामले हैं और दो देशों में लोकल ट्रांसमिशन देखा गया है.

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सही या गलत?

इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि अफ्रीकी लोग इस नए कोरोनावायरस से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं या ऐसे लोग ही COVID-19 से ठीक हो सकते हैं.

आर्टेमिस हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे के मुताबिक भी इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है.

प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं यानी शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता काफी जटिल होती हैं, जो हर व्यक्ति के जेनेटिक्स, डायबिटीज, दिल और फेफड़े की बीमारियां जैसी मौजूदा बीमारियों और संक्रमण की गंभीरता पर निर्भर करती हैं.
डॉ सुमित रे

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की ओर से ये पहले ही बताया जा चुका है कि उम्रदराज लोग या जो पहले से ही हाई बीपी, दिल और फेफड़े की बीमारी, कैंसर या डायबिटीज से जूझ रहे हैं, उन्हें इस वायरस से गंभीर बीमारियों का ज्यादा खतरा है.

डॉ सुमित रे बताते हैं,

कोरोनावायरस से संक्रमण के मामलों में दिल की बीमारी वाले लोगों में मृत्यु दर लगभग 10-12% देखा गया है, सांस से जुड़ी बीमारी वाले लोगों में 6-8% और जिन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं है, उनमें मृत्यु दर 1% से भी कम देखा गया है.

WHO ने ये भी स्पष्ट किया है कि इस नए वायरस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता है और दुनिया भर के वैज्ञानिक इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं.

डॉ रे बताते हैं कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोग कुछ संक्रमणों के लिए प्रतिरक्षा हासिल कर लेते हैं और ऐसा शायद बार-बार संक्रमित होने के नाते हो सकता है. लेकिन इस नए कोरोनावायरस से संक्रमण के बारे में फिलहाल ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता है.

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