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मुंबई: रेजिडेंट डॉक्टरों ने बताए हालात- ‘बेड नहीं, प्लानिंग नहीं’

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Health News
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महाराष्ट्र एक बार फिर कोरोना की सबसे बुरी मार झेल रहा है और मुंबई के रेजिडेंट डॉक्टर महामारी शुरू होने के एक साल बाद फिर उसी हालत में हैं, जहां से शुरुआत हुई थी.

पिछले साल रेजिडेंट डॉक्टर खुलकर बात करने को राजी थे, मगर इस बार अपने संस्थान की नाराजगी के डर से कई ने गुमनाम रहना चाहा है.

जेजे हॉस्पिटल से फाइनल ईयर रेजिडेंट डॉ राहुल जी (बदला हुआ नाम) मुंबई के एक कोविड वार्ड की जमीनी हकीकत बयान करते हुए कहते हैं, “यहां हालात एकदम पागलपन भरे हैं. दूसरी लहर पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा मारक है, नया स्ट्रेन ज्यादा संक्रामक है और चुपके से हमला बोलता है.”

जेजे हॉस्पिटल में MD साइकियाट्री में थर्ड ईयर रेजिडेंट डॉ अनिंदिता गंगोपाध्याय ने कहा, "यह बहुत थकाने वाला है. हमारे सभी वार्ड भरे हुए हैं. 35-40 मरीजों के लिए एक डॉक्टर है.”

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'बेड, वेंटिलेटर या ऑक्सीजन की सप्लाई पूरी नहीं है'

“हर अस्पताल मुश्किलों से जूझ रहा है. बेड की उपलब्धता सचमुच शून्य है- हमने एक बार फिर मरीजों को लौटाना शुरू कर दिया है.”
डॉ. हर्षिल शाह, रुस्तम नरसी कूपर अस्पताल में ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के रेजिडेंट
“बेड की कमी की वजह से, बहुत से रोगियों को एडमिट नहीं किया जा रहा है. हालात इतने बदहाल हैं कि रेजिडेंट डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्कर के पास खुद के लिए बेड नहीं है.”
डॉ राहुल जी, फाइनल ईयर रेजिडेंट, जेजे हॉस्पिटल

थकान से निढाल डॉ. राहुल आगे कहते हैं कि मार्च के बाद से, “जेजे हॉस्पिटल के 60 से ज्यादा रेजिडेंट डॉक्टर पॉजिटिव हो चुके हैं, और कई का अभी ट्रीटमेंट चल रहा है.”

“बर्बाद प्लानिंग है,” 2020 से कोविड वार्ड में काम कर रहे KEM हॉस्पिटल के एक रेजिडेंट डॉक्टर का कहना है, “कोविड सस्पेक्ट मरीजों के लिए इमरजेंसी वार्ड में कोई अलग एरिया नहीं है, जिससे नए कोविड मरीज बन रहे हैं और हमें नए वार्ड खोलने पड़ रहे हैं.”

रेजिडेंट डॉक्टर का कहना है कि हम गैर-कोविड मरीजों का इलाज शुरू ही करने वाले थे, लेकिन बढ़ते कोविड मरीजों के वास्ते तैयारी की वजह से उन्हें रोकना पड़ सकता है.

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“हालात बिल्कुल वैसे ही हो गए हैं जैसे मई-जून 2020 में थे. डॉक्टर-मरीज अनुपात बिगड़ गया है क्योंकि ढेरों रेजिडेंट डॉक्टर और स्टाफ नर्स खुद इस वायरस के शिकार हो रहे हैं.”
डॉ. प्रीति एस

डॉ. प्रीति एस (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “हमारे पास पॉजिटिव मरीजों के लिए बेड उपलब्ध नहीं हैं, हमारे सभी वार्ड पूरी क्षमता से भरे हैं.”

रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि संक्रमित डॉक्टरों के लिए भी बेड मिलना लगभग नामुमकिन है.

डॉ. हर्षिल कहते हैं कि चूंकि उन्हें मरीजों को लौटाना पड़ रहा है, ऐसे में होम क्वॉरन्टीन ही हल रह जाता है. “लेकिन मुंबई जैसे शहर में, घर पर आइसोलेशन हमेशा मुमकिन नहीं है. तो ऐसे में मरीज बाहर घूमता रहता है— ज्यादातर बिना मास्क के. इसलिए अस्पताल में भर्ती से लेकर बिना मास्क के घूमना यह सब पागल करने वाले हालात हैं.”

अस्थाई क्लीनिक खोलने के साथ कोविड वार्डों को फिर से शुरू किया जा रहा है, हालांकि डॉ. हर्षिल का कहना है कि हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि यह भी काफी नहीं है.

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‘हर 5 मिनट में नए मरीज आ रहे हैं’

बढ़ते मामलों के साथ, कोई ताज्जुब नहीं कि अस्पताल के बेड तेजी से भर रहे हैं. लेकिन रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि बीमारी की गंभीरता भी बहुत बढ़ रही है, क्योंकि “ढेरों मरीज सांस की परेशानी वाले आ रहे हैं.”

मुंबई के एक सरकारी अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि उपलब्ध ऑक्सीजन की कमी के चलते एक मरीज की मौत हो गई, “वेंटिलेटर तो भूल ही जाएं, यहां तक कि ऑक्सीजन पोर्ट भी सारे इस्तेमाल हो रहे हैं.”

“मुझे लगता है कि मरीजों की संख्या कम रिपोर्ट हो रही है. हम देख रहे हैं कि तकरीबन हर 5 मिनट में नए मरीज भर्ती होने के लिए आ रहे हैं.”
डॉ. हर्षिल शाह, रुस्तम नरसी कूपर अस्पताल में ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के रेजिडेंट

उनका यह भी कहना है कि उनके वार्ड में दवाएं भी करीब-करीब खत्म हो गई हैं.

क्या आने वाले सभी मरीज गंभीर हालत में रह रहे? डॉ. हर्षिल जवाब देते हैं, “सभी नहीं. उनमें एसिम्टोमैटिक से लेकर गंभीर हालत वाले सभी तरह के मरीज आ रहे, लेकिन हम इस बार ज्यादा मरीजों को ज्यादा तेजी से मरता देख रहे हैं.”

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'कोविड मरीजों में अलग तरह के लक्षण'

रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि इस समय मरीज अलग तरह के लक्षणों के साथ आ रहे हैं. भाभा अस्पताल के एक डॉक्टर का कहना है, “कई मरीजों में सिर्फ रेस्पिरेटरी (सांस संबंधी) नहीं बल्कि गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल (आंत और पाचन संबंधी) लक्षण होते हैं.”

डॉ. हर्षिल कहते हैं, “लक्षण अलग-अलग हैं— कुछ मरीजों को खांसी के साथ खून आता है.”

“मरीज गैर-परंपरागत लक्षणों के साथ आ रहे हैं— उन्हें पहले से बुखार या खांसी नहीं है, लोग सीधे सांस लेने में परेशानी के साथ आ रहे हैं.”
KEM से एक रेजिडेंट डॉक्टर

डॉ. हर्षिल का कहना है कि यह गलत धारणा है कि ये एक कमजोर वेरियंट है, “यह बहुत ज्यादा संक्रामक है.”

इस लहर के बारे में महाराष्ट्र कोविड के टेक्निकल एडवाइजर डॉ. शुभाश सालुंके ने इससे पहले फिट के एक लेख में कहा था, “ट्रांसमिशन बहुत तेजी से हो रहा है.”

“यह अविश्वसनीय रूप से संक्रामक है. मेरे करीब 40 साथी रेजिडेंट डॉक्टर पॉजिटिव हैं.”
डॉ राहुल जी, फाइनल ईयर रेजिडेंट, जेजे अस्पताल
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इस बार नई लहर 45 साल से कम लोगों को ज्यादा संक्रमित करती देखी जा रही है, लेकिन डॉ. हर्षिल का कहना है कि उनके वार्ड में मरीज थोड़ी ज्यादा उम्र के हैं. KEM के एक डॉक्टर ने बताया कि भर्ती किए जा रहे मरीजों में 40-70 साल उम्र वालों की बड़ी तादाद है.

लेकिन डॉ. प्रीति एस का कहना है, “जहां तक बच्चों की बात है, हमने देखा है कि यह नया स्ट्रेन पिछले साल की तुलना में ज्यादा संक्रामक है.”

वह बताती हैं, “चूंकि मैं पीडियाट्रिक वार्ड में काम करती हूं, इस आबादी में मैंने तमाम आयु वर्ग के मरीज देखे हैं... हमारे यहां 6 दिन का और 12 साल का भी कोविड पॉजिटिव बच्चा है, जिनकी उम्र एकदम अलग है.”

वह कहती हैं कि अभी तक किसी मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ी है, लेकिन अगर हालात इसी रफ्तार से बिगड़ते रहे, तो हमारे पास जल्द ही इसकी कमी हो जाएगी. बड़ों के वार्ड में पहले से ही वेंटीलेटर की कमी है.”

डॉ. हर्षिल कहते हैं कि इस बार टेस्टिंग में मरीज ज्यादा समय तक पॉजिटिव पाए जा रहे हैं.

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बच्चे और कोविड-19

इस बार, ज्यादा बच्चे ज्यादा तेज रफ्तार से संक्रमित हो रहे हैं.

डॉ. प्रीति विस्तार से बताती हैं, “बच्चों में भी वही बुखार, खांसी और सांस लेने में दिक्कत के लक्षण होते हैं. कुछेक को उल्टी, दस्त और पेट में दर्द भी था, लेकिन ज्यादातर में सिर्फ बुखार और सांस की परेशानी के लक्षण ही थे. और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें कोई लक्षण नहीं है, लेकिन यह सबसे बदतर हालात हैं, क्योंकि वे साइलेंट कैरियर हैं.”

बच्चों के साथ ट्रांसमिशन पर काबू पाना मुश्किल है, क्योंकि उन्हें कोविड प्रोटोकॉल (मास्क लगाना, हाथ धोना) का पालन कराना मुश्किल है और बहुत छोटे बच्चों के साथ नामुमकिन है. डॉ. प्रीति कहती हैं, “अगर वे संक्रमित हो जाते हैं तो ट्रांसमिशन पर काबू पाना कठिन है.”

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‘लंबी शिफ्ट, कोई मदद नहीं’

डॉ. प्रीति बताती हैं कि उनके अस्पताल में, 30 बेड वाले कोविड आईसीयू में एक शिफ्ट में सिर्फ 3 रेजिडेंट डॉक्टर हैं, “इसका मतलब है कि 1 डॉक्टर को 10 गंभीर मरीजों की देखभाल करनी पड़ती है, जिनमें से ज्यादातर वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं.”

डॉ. हर्षिल का कहना है कि कूपर अस्पताल में, जो एक सरकारी अस्पताल है, प्रति 90 मरीज पर करीब 2 डॉक्टर हैं.

एक रेजिडेंट डॉक्टर जो नहीं चाहते कि उनका नाम सामने आए, बताते हैं, “हम यहां 24 घंटे ड्यूटी कर रहे हैं, क्योंकि शिफ्ट में पूरे डॉक्टर नहीं हैं. हम पीपीई किट नहीं पहन सकते. स्टॉक है, लेकिन हम उन्हें 24 घंटे तो नहीं पहने रह सकते हैं. हम कोशिश कर ज्यादा बेड, ज्यादा वेंटिलेटर हासिल कर सकते हैं, लेकिन हम ज्यादा मैन-पावर कहां से लाएंगे?”

महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (MARD) ने 5 अप्रैल को मेडिकल शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय (DMER) को पत्र लिखकर आयुष (AYUSH) डॉक्टरों को अस्थायी वार्डों में तैनात करने और ज्यादा मेडिकल अधिकारियों की भर्ती करने जैसी मांगें रखीं.

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डॉ. हर्षिल इस मांग से सहमति जताते हैं, “देखिए, हमारे यहां कूपर में कोविड वार्ड में दांतों के डॉक्टर लगाए गए हैं. यह ठीक नहीं है लेकिन हमारे पास कोई चारा भी तो नहीं है. आयुष डॉक्टरों को आगे आना चाहिए और जिस तरह की भी मदद कर सकते हैं, उन्हें मदद करनी चाहिए.”

वह कहते हैं कि ज्यादा हाथ से ज्यादा मदद मिलेगी- यहां तक कि भले ही खास क्षेत्र में प्रशिक्षित नहीं हों- तो भी कागजी कार्यवाही जैसे कामों में मदद कर सकते हैं, जो अब रेजिडेंट डॉक्टर के गले पड़ गया है.

डॉ. राहुल कहते हैं, “कोविड वार्ड के लिए डॉक्टरों की पूरी भर्ती नहीं हो सकी है क्योंकि सरकार ने इसके लिए कोई आकर्षक प्रोत्साहन नहीं दिया.”

“लोग समझ नहीं पा रहे, लेकिन कोविड पॉजिटिव मरीजों की ज्यादा गिनती से हेल्थवर्कर्स पर बहुत दबाव है. अगर सभी लोग जिम्मेदारी समझें और फैलाव को रोकने में मदद कर सकें, तो हम उनके बहुत एहसानमंद होंगे.”
डॉ प्रीति एस
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डॉ. राहुल कहते हैं, “एक रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर जिंदगी पहले कभी इतनी मुश्किल कहीं थी. बढ़ती गर्मी पीपीई पहने रहना और भी मुश्किल बना रही है. हम सचमुच अपने ही पसीने में डूबे होते हैं. हमें मिली पीपीई की क्वालिटी पर शक होता है, जो न केवल पहनने में असुविधाजनक है, बल्कि बहुत ज्यादा जोखिम भरी भी है और शायद यही वजह है कि पहले से ज्यादा डॉक्टर संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं.”

KEM के एक डॉक्टर ने कहा कि रेजिडेंट डॉक्टरों को एक बार फिर अग्रिम मोर्चे से महामारी का मुकाबला करना पड़ रहा है और प्लानिंग व संसाधनों की कमी से वे ज्यादा खतरा महसूस कर रहे हैं.

“पूरा बोझ रेजिडेंट डॉक्टरों के कंधों पर आ पड़ा है, और महामारी के बीच एक साल मुकाबला करने के बावजूद, सिर्फ रेजिडेंट डॉक्टर ही हैं जो काम कर रहे हैं.”
डॉ राहुल जी, फाइनल ईयर रेजिडेंट, जेजे हॉस्पिटल
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‘लोगों ने सावधानियां एकदम छोड़ दी हैं, लेकिन हम फिर से खतरे में हैं’

जब 2020 में पहली बार महामारी आई थी, तब लॉकडाउन लगा दिया गया था और लोग ज्यादातर सतर्क थे. लेकिन अब रेजिडेंट डॉक्टर अनुशासन की कमी को लेकर फिक्रमंद हैं क्योंकि मामले पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ रहे हैं.

डॉ. हर्षिल कहते हैं, “लोग बहुत ज्यादा लापरवाह हो गए हैं. कोई मास्क नहीं लगा रहा, बहुत ज्यादा भीड़ लगा रहे हैं, दूसरे देशों की यात्रा ने हमें नया स्ट्रेन दे दिया है.”

“हम मरीजों को लौटाते-लौटाते थक जाते हैं और फिर जब अस्पताल से बाहर जाते हैं तो बिना मास्क लगाए लोगों की भीड़ दिखती है.”
डॉ. हर्षिल शाह, रुस्तम नरसी कूपर अस्पताल में ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के रेजिडेंट

वह कहते हैं, “लोगों के मन से डर खत्म हो गया है. हां, हमें 2020 के बाद एक ब्रेक की जरूरत थी, लेकिन आपको इस हद तक नहीं जाना था कि आप पार्टी करें और गोवा घूमने निकल जाएं. अस्पताल इसका बोझ नहीं उठा सकते.”

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डॉ. हर्षिल स्वीकार करते हैं कि उन्होंने भी सोचा था कि सबसे बुरा दौर बीत चुका है, “मैं पिछले साल इनफेक्टेड हो चुका था और नवंबर से फरवरी के बीच मामलों में कमी देखी गई और सोचा कि सब ठीक हो गया है.” वह कहते हैं कि वह रेस्तरां गए थे और इन्हें दोबारा खोलने के पक्ष में भी थे, लेकिन फिर अपने अस्पताल में मरीजों की संख्या में गुणात्मक बढ़ोतरी देखी. “मुझे समझ में आ गया कि यह लौट आया है और यह गंभीर है.”

वह लोगों से मास्क लगाने का आग्रह करते हैं,” और छींकने के लिए भी मास्क ना हटाएं!”

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डॉक्टरी की पढ़ाई पर असर

डॉक्टरों का कहना है कि पढ़ाई के मामले में उनको गैर-कोविड मामलों से निपटने का पूरा प्रशिक्षण नहीं मिल रहा है.

“परीक्षा का समय करीब आ रहा है और रेजिडेंट डॉक्टरों में बहुत ज्यादा नाराजगी है, जिनका शिक्षा का मूल अधिकार बहुत तरह प्रभावित हुआ है. हम समझते हैं कि यह वैश्विक महामारी है और हमें आपातकालीन कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन सारा बोझ सिर्फ हमारे ही कंधे पर क्यों है? क्या ज्यादा डॉक्टरों की भर्ती के लिए पूरा एक साल काफी नहीं था?”
डॉ राहुल जी, फाइनल ईयर रेजिडेंट, जेजे हॉस्पिटल

महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स ने अपने शिकायती पत्र में लिखा है, “शायद ही कोई अधिकारी है, जो रेजिडेंट डॉक्टरों की समस्याओं को समझता हो. शायद ही कोई है, जो अप्रशिक्षित और अकुशल मानव संसाधन तैयार करने से भविष्य में समाज के सामने पेश आने वाली समस्या के असर को समझता है.”

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