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कोरोना संक्रमित होने पर भी RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है?

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कोरोना मरीजों के कुछ ऐसे मामलों का पता चला है, जिसमें कोविड के सारे लक्षण होने के बावजूद कोरोना टेस्ट निगेटिव आया और तबीयत बिगड़ने के बाद सीटी स्कैन या दूसरे टेस्ट के बाद कोरोना का पता चला.

कोरोना की दूसरी लहर का कहर झेल रहे भारत के लिए फॉल्स निगेटिव यानी कोरोना संक्रमित होने पर भी जांच पॉजिटिव न आने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, ये हम सभी समझ सकते हैं.

कोरोना संक्रमण की जांच के लिए RT-PCR टेस्ट को गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है. देश में कोरोना केसेज में भारी उछाल के साथ ये टेस्ट कराने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है. कई राज्यों में प्रवेश के लिए निगेटिव RT-PCR टेस्ट रिजल्ट अनिवार्य है.

क्या कोरोना संक्रमित होने पर भी किसी की रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है? कोरोना के लक्षण हों, लेकिन RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव हो, तो क्या करें? क्या कोरोना के नए वेरिएंट RT-PCR टेस्ट से छूट सकते हैं?

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क्या कोरोना संक्रमित होने के बाद भी RT-PCR टेस्ट निगेटिव आ सकता है?

स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब के डायरेक्टर समीर भाटी कहते हैं कि कोरोना संक्रमित होने पर भी RT-PCR निगेटिव आ सकता है, अगर टाइम से टेस्ट न किया गया हो या टेस्ट के प्रोटोकॉल ठीक तरीके से फॉलो न किए गए हों.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक भले ही RT-PCR टेस्ट गोल्ड स्टैंडर्ड है, लेकिन जैसा कि दिल्ली के क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे कहते हैं कि कोई भी टेस्ट या मेडिसिन 100 प्रतिशत सटीक नहीं होती है.

RT-PCR टेस्ट की एफिकेसी 90% तक मानी जाती है, तो फिर भी 10% तक फॉल्स निगेटिव आने की संभावना रहती है.
समीर भाटी, डायरेक्टर, स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब

इसलिए मुमकिन है कि कुछ मामलों में कोरोना संक्रमण होने पर भी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आए. क्या कोरोना की इस लहर में फॉल्ट निगेटिव ज्यादा देखे जा रहे हैं? समीर भाटी और सबअर्बन डायग्नोस्टिक्स की लैब डायरेक्टर डॉ अनूपा दीक्षित इससे इनकार करती हैं. एक टीवी इंटरव्यू में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डॉ समीरण पांडा ने भी कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है और ऐसे केस ज्यादा नहीं हैं.

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कोरोना संक्रमित होने पर भी टेस्ट निगेटिव आने की क्या वजह हो सकती है?

एक्सपर्ट्स इसकी कई संभावित वजहों की चर्चा करते हैं.

  • कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत सही नहीं होता.

  • कोरोना टेस्ट की टाइमिंग- कोरोना वायरस के मामले में इन्क्यूबेशन पीरियड (वायरस से एक्सपोजर से लेकर लक्षण सामने आने तक का समय) लंबा है, ये 2 से 14 दिन हो सकता है. इसलिए डॉक्टर एक्सपोजर के 5 या 6 दिन बाद टेस्ट कराने की सलाह देते हैं.

कई बार देखा गया है कि लोग किसी पॉजिटिव शख्स के संपर्क में आते हैं और तुरंत टेस्ट करा लेते हैं. इसके लिए एक समय होता है, अगर हम किसी संक्रमित शख्स के संपर्क में आए हैं, तो लगभग पांच दिन बाद टेस्ट कराना चाहिए.
समीर भाटी, डायरेक्टर, स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब
  • वायरल लोड कम रहा हो- ऐसा भी हो सकता है कि RT-PCR टेस्ट में वायरल लोड उतना न हो, तो टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है.

  • सैंपल ठीक तरीके से न लिया गया हो- स्वैब स्टिक को अंदर तक अच्छी तरह से इंसर्ट न किया गया हो.

  • सैंपल के स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन में गड़बड़ी- सैंपल कलेक्ट करने के तरीके के अलावा सैंपल के ट्रांसपोर्टेशन से लेकर स्टोरेज जैसी कई चीजें मायने रखती हैं.

फॉल्स निगेटिव तब भी आ सकता है, जब सैंपल को लैब तक ठीक तरह से ट्रांसपोर्ट न किया गया हो क्योंकि उसको एक खास टेंपरेचर पर मेंटेन करके रखना पड़ता है.
समीर भाटी, डायरेक्टर, स्टार इमेजिंग एंड पैथ लैब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ अपनी एक बैठक में कहा था कि उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि टेस्ट ठीक से किए जाएं.

  • सैंपल की लेबलिंग ठीक न हो या जल्दबाजी में टेस्टिंग- कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ टेस्टिंग के लिए भी लोगों की तादाद बढ़ रही है और टेस्टिंग सेंटर्स पर बढ़ते बोझ और लंबी लाइनों के चलते जल्दबाजी में टेस्ट करना भी टेस्ट रिजल्ट गलत आने का एक फैक्टर हो सकता है.

सबअर्बन डायग्नोस्टिक्स की लैब डायरेक्टर डॉ अनूपा दीक्षित कहती हैं,

RT-PCR रिजल्ट कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है, जैसे पूरी प्रक्रिया का पालन, सैंपल टाइप, लक्षण आने के बाद सैंपल कलेक्शन का टाइम, मरीज की उम्र. इन सभी प्रक्रियाओं में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत होती है.
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क्या कोरोना के नए वेरिएंट्स RT-PCR टेस्ट से पकड़ में नहीं आ रहे?

एक धारणा कोरोना वायरस के नए वेरिएंट्स से जुड़ी है, जिसके मुताबिक वायरस में आए बदलाव के कारण स्टैंडर्ड RT-PCR टेस्ट से इनकी पहचान मुश्किल हो.

अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) के मुताबिक फॉल्स निगेटिव टेस्ट रिजल्ट आ सकते हैं क्योंकि SARS-CoV-2 के जेनेटिक वेरिएंट्स नियमित रूप से उत्पन्न होते हैं.

नए वेरिएंट्स के मामले में ये चिंता की बात है कि इनमें हुए म्यूटेशन वायरस की पहचान करने में मौजूदा RT-PCR टेस्ट प्रभावित कर सकते हैं.
डॉ अनूपा दीक्षित, लैब डायरेक्टर, सबअर्बन डायग्नोस्टिक्स

टेस्ट की सेंसिटिविटी पर जेनेटिक वेरिएंट का क्लीनिकल प्रभाव- वेरिएंट के सिक्वेंस, टेस्ट के डिजाइन और रोगी की आबादी में वेरिएंट की व्यापकता का प्रभाव पड़ता है.

हालांकि RT-PCR टेस्टिंग के फेल होने की चिंताओं के बीच केंद्र की ओर से इस तरह की आशंकाओं से इनकार किया गया है. केंद्र सरकार ने शुक्रवार 16 अप्रैल को कहा कि अब तक देश में पहचाने गए वेरिएंट्स कोरोना टेस्ट से नहीं छूटे.

ऐसा इसलिए क्योंकि देश में इस्तेमाल RT-PCR टेस्ट दो से अधिक जीन पर टारगेट करते हैं और FDA के मुताबिक फाइनल रिजल्ट के लिए जिस टेस्ट में कई जेनेटिक टारगेट का इस्तेमाल किया जाता है, उनके जेनेटिक वेरिएंट से प्रभावित होने की संभावना कम होती है.

डॉ अनूपा दीक्षित कहती हैं कि म्यूटेशन आमतौर पर स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में होने के लिए जाना जाता है और अगर RT-PCR किट केवल स्पाइक प्रोटीन को पिक करती है, तो कोरोना का डिटेक्शन छूट सकता है.

हम जिन किटों का उपयोग करते हैं, वे 2 या उससे अधिक टारगेट जीन पिक करती हैं और उसमें स्पाइक प्रोटीन डिटेक्शन शामिल नहीं होता.
डॉ अनूपा दीक्षित, लैब डायरेक्टर, सबअर्बन डायग्नोस्टिक्स

वो बताती हैं, "ऐसा देखा गया है कि B.1.1.7 वेरिएंट में दो पोजिशन पर बदलाव (पोजिशन 69 और 70 पर डिलिशन) है, ये कम से कम एक RT-PCR आधारित डायग्नोस्टिक जांच में S-जीन टारगेट फेल का कारण बन सकता है."

पोजिशन 69 और 70 पर डिलिशन वाले वेरिएंट भले ही S-जीन टारगेट के लिए निगेटिव रिजल्ट दें, लेकिन बाकी दो टारगेट के लिए पॉजिटिव रिजल्ट देंगे और इस तरह फाइनल रिजल्ट पॉजिटिव होगा.
डॉ अनूपा दीक्षित, लैब डायरेक्टर, सबअर्बन डायग्नोस्टिक्स

दूसरी गौर करने वाली बात ये है कि देश में जिन नए वेरिएंट्स की पहचान हुई है, वो पॉजिटिव सैंपल के जीनोम सिक्वेंसिंग से ही हुई है.

इसीलिए केंद्र ने इस बात पर चिंता जताई है कि कई राज्य ने कोरोना पॉजिटिव लोगों के क्लीनिकल डेटा के साथ जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए सैंपल नहीं भेजे हैं, जबकि ऐसा करने की सलाह दी गई है.

अनूपा दीक्षित कहती हैं कि वेरिएंट का पता लगाना और उसकी पुष्टि केवल वायरस के जीनोमिक अनुक्रमण यानी सिक्वेंसिंग से संभव है, जो कि केंद्रीय संस्थानों द्वारा किया जा रहा है.

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कोरोना के लक्षण हों, लेकिन RT-PCR निगेटिव निकले तो क्या करें?

समीर भाटी कहते हैं कि इस तरह के मामले में हमें दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत होती है.

ऐसे मामलों में डॉक्टर को लक्षणों की जानकारी देना जरूरी है. अगर डॉक्टर को लगता है कि कोविड है, तो वो आगे सीटी स्कैन जैसे दूसरे टेस्ट करा सकते हैं और लक्षणों के आधार पर जरूरी इलाज शुरू कर सकते हैं.

  • अगर आप किसी कोरोना संक्रमित के संपर्क में आए हैं या कोरोना के लक्षण दिख रहे हों, तो खुद को आइसोलेट करें

  • अपने लक्षणों पर नजर रखें, जिसमें इसके नए लक्षण भी शामिल हैं

  • आइसोलेशन में रहते हुए डॉक्टर को इन्फॉर्म करें

  • अपने पास ऑक्सीमीटर रखें और दिन में कम से कम दो बार रीडिंग नोट करें, ऑक्सीजन लेवल 94 से नीचे जाए, तो डॉक्टर से संपर्क करें

  • फिर भी लक्षण रहें, तो तीन दिन बाद फिर टेस्ट कराएं

  • अगर डॉक्टर कहें, तो सीटी स्कैन कराएं

  • डॉक्टर कुछ ब्लड टेस्ट भी कराने को कह सकते हैं

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एक फॉल्स निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट के कारण मरीजों के इलाज में देरी हो सकती है, जिसके कारण महंगे इलाज की जरूरत पड़ सकती है, फॉल्स निगेटिव नतीजे के कारण संक्रमित शख्स खुद को आइसोलेट करने में देरी कर सकता है, जो कि कोरोना ट्रांसमिशन की रोकथाम के लिए बहुत जरूरी है. ऐसे व्यक्ति बीमारी के "सुपर वाहक" हो सकते हैं, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.

आखिर में वही बात, जो कोरोना की शुरुआत से कही जा रही है- मास्क, फिजिकल डिस्टेन्सिंग, हैंड हाइजीन के नियम का पालन करें और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचें.

भले ही आपको वैक्सीन लग गई हो, या आप एक बार कोरोना से उबर चुके हों, या आपकी कोविड रिपोर्ट निगेटिव हो, किसी भी हाल में कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन न करें. फिलहाल अपने, अपनों और दूसरों की सुरक्षा के लिए हम यही कर सकते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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