क्या हमने COVID-19 का पीक पार कर लिया है? क्या सर्दियों में कोरोना के मामले बढ़ेंगे? क्या एक और पीक आएगा? कोरोना वायरस डिजीज से जुड़े ये सवाल चर्चा में हैं.
भारत अक्टूबर के 7 दिनों में कोरोना के रोजाना औसतन 74,000 मामले कन्फर्म हुए, जो सितंबर में 97,000 मामलों से कम है. ज्यादातर राज्यों में कोविड से मौत की दर में कमी आई है और टेस्टिंग का लेवल वही है.
यह एक बड़ी गिरावट है, जिसने कई लोगों को आशावादी घोषणा करने के लिए प्रेरित किया कि हमने अपने पीक (उच्चतम स्तर) को पार कर लिया है.
लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? फिट ने इसे समझने के लिए वायरोलॉजिस्ट और वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस के सीईओ ने डॉ शाहिद जमील और होली फैमिली हॉस्पिटल, दिल्ली में क्रिटिकल केयर मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ सुमित रे से बात की.
कोरोना मामलों में गिरावट? जवाब टेस्टिंग की किस्म पर निर्भर करता है
भारत में सितंबर के मध्य में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले कन्फर्म हो रहे थे, रोजाना औसतन 93,000-94,000 मामले. इस महीने के सात दिनों में औसतन इसकी संख्या 74,000 है, ऐसे में कहा जा सकता है कि लगातार कमी आ रही है, लेकिन हमें नहीं पता कि क्या एंटीजन पर आधारित टेस्टिंग बढ़ी है क्योंकि अगर ज्यादा टेस्टिंग में एंटीजन टेस्टिंग बढ़ी है, तो ये संख्या कृत्रिम रूप से कम है, हमारे पास गलत रुझान हो सकते हैं.डॉ शाहिद जमील
सितंबर में राज्यों के लिए इंडियन मेडिकल काउंसिल की गाइडलाइंस आई है, जिसमें रैपिड एंटीजन टेस्टिंग (आरएटी) किट से टेस्टिंग ऑन डिमांड के लिए कहा गया है, खासकर शहरों में जो कोरोना वायरस के प्रकोप से गंभीर रूप से प्रभावित हैं.
याद दिला दें कि, रैपिड एंटीजन टेस्ट सस्ते होते हैं और इनमें तेजी से नतीजे मिलते हैं— लेकिन वे हमेशा सटीक नहीं होते. डॉ. जमील कहते हैं, “इनमें सिर्फ 50 फीसद संवेदनशीलता है, इसलिए आप असल में आधे मामले छोड़ दे रहे हैं.” दूसरी तरफ आरटी-पीसीआर टेस्ट नतीजे देने में ज्यादा समय लेते हैं और ज्यादा महंगे होते हैं, लेकिन इनमें सटीकता ज्यादा है.
डॉ जमील कहते हैं, “सितंबर में, हम एंटीजन टेस्ट की तुलना में ज्यादा आरटी-पीसीआर कर रहे थे और अब अगर स्थिति उलट गई है, तो इससे झूठी कमी दिखाई दे रही है.”
हमें निश्चित रूप से बोलने के लिए टेस्टिंग पर ज्यादा और विस्तृत डेटा की जरूरत है ताकि हम कह सकें कि हमने पीक पार कर लिया है.डॉ शाहिद जमील
डॉ रे इससे सहमत हैं और कहते हैं कि टेस्टिंग की किस्म तय करेगी कि क्या हम वाकई संकट से बाहर आ गए हैं. “मामलों में मामूली कमी हो सकती है, लेकिन अभी भी कई शहरी समूह हैं, जिनकी आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी जोखिम में है, इसलिए हम अभी तक पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि यह नीचे आ रहा है.”
‘लापरवाही ना करें’
अब, अगर हम मानते हैं कि टेस्टिंग अनुपात नहीं बदला है, तो हां, यह कमी हो सकती है और ऐसा लगता है कि हम पीक को पार कर चुके हैं. हालांकि, यह अभी भी इत्मीनान का समय नहीं है क्योंकि रोजाना 75,000 मामले भी कम संख्या नहीं है.डॉ शाहिद जमील
हम 7 महीने से लॉकडाउन में हैं और जैसा कि राज्य अनलॉक के विभिन्न स्तरों पर जा रहे हैं, हम तेजी देखेंगे. “जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, सुस्ती का दौर आएगा. हममें थकान आएगी और हमें अपनी अर्थव्यवस्था के लिए खोलना होगा. एक मुहावरा है, ‘महामारी तब खत्म होती है, जब लोगों में डर खत्म होता है, न कि तब जब संक्रमण खत्म होता है,’ और हमें इससे सतर्क रहने की जरूरत है.”
अमेरिका 7 दिन के औसत में रोजाना लगभग 44,000 मामलों की रिपोर्ट कर रहा है, इसलिए हम अभी भी रोजाना के आधार पर अमेरिका के मामलों की तुलना में दोगुना से थोड़ा ही कम हैं— हम चाहे जो भी टेस्टिंग कर रहे हैं. तो यह निश्चित रूप से आत्म-संतोष कर लेने का समय नहीं है. हां, यह बहुत अच्छी खबर होगी अगर रोजाना के केस की गिनती कम हो रही है, लेकिन ये इंतजार करने और देखने का समय है— तो सावधान रहें.डॉ शाहिद जमील
सरकार के स्तर पर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ किया है कि हम अभी भी महामारी के बीच में हैं, और हमें मास्क ठीक से पहनना चाहिए— ठोड़ी पर नहीं, बल्कि नाक और मुंह को कसकर ढकना चाहिए— अपने हाथों को बार-बार धोना चाहिए और सोशल डिस्टेन्सिंग बनाए रखना चाहिए.
डॉ रे कहते हैं, “केंद्र और राज्य सरकारें जोर देकर कह रही हैं कि हमें सावधान रहने और सतर्क रहने की जरूरत है. अब, केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मेडिकल व रिलीफ उपकरण में तालमेल, फंडिंग, प्रबंधन पर अपना ध्यान केंद्रित रखने की जरूरत है.”
क्या सर्दियों में कोरोना के मामले और बढ़ेंगे?
डॉ जमील कहते हैं, “यह एक ज्ञात तथ्य है कि सर्दियों में, फ्लू बड़े पैमाने पर फैलता है क्योंकि कोरोना वायरस ठंडे तापमान में अधिक स्थिर होते हैं."
डॉ सुमित रे कहते हैं,
हां, मामलों में तेजी हो सकती है. हमेशा से यह अंदाजा लगाया गया कि सभी कोरोना वायरस की तरह कोविड-19 में भी ठंड के महीनों में तेजी दिखाई देगी और यह संभावना अभी भी बनी हुई है.
डॉ जमील बताते हैं कि इस साल दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में सर्दी और फ्लू के मौसम में, फ्लू उतना नहीं फैला क्योंकि कोविड-19 के कारण लोग मास्क लगाए हुए थे. इस तरह, दोनों संक्रमणों पर अंकुश लगा. “ठीक से मास्क पहनना हमारी जिम्मेदारी है, यही इकलौता तरीका है कि हम फैलाव को रोक सकते हैं. यह, और ठीक से हाथ की सफाई करने और सोशल डिस्टेन्सिंग की जरूरत है.”
त्योहारों के सीजन में बढ़ सकते हैं कोरोना के मामले
हम आने वाले हफ्तों में दशहरा, दुर्गा पूजा, दिवाली और तमाम त्योहारों के साथ भारत के सबसे व्यस्त फेस्टिवल सीजन में प्रवेश कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अनलॉक के साथ सामाजिक समारोहों में बढ़ोतरी से मामलों में वृद्धि हो सकती है.
डॉ जमील कहते हैं, “हमारे सामने ऐसा मौसम आ रहा है, जब हमें सावधान रहना होगा. हमें मास्क के इस्तेमाल और डिस्टेन्सिंग पर जोर देना होगा. हमें लोगों को मास्क पहनने के सही तरीके याद दिलाने की भी जरूरत है— बिना गैप के नाक और मुंह दोनों को ढक कर रखना होगा.”
'कोरोना से रिकवरी मुश्किल हो सकती है'
यह याद रखना जरूरी है कि जब हम तेजी और कमी के बारे में बात करते हैं, तो हम मामलों और रिकवरी और मौतों की गिनती कर रहे होते हैं. लेकिन जैसा कि कोविड-19 ने दिखाया है, यह एक जटिल बीमारी है और यहां तक कि जब लोग ठीक हो जाते हैं, तो वे अक्सर लंबे समय तक उसके असर को झेल रहे होते हैं, जिसे आमतौर पर ‘लॉन्ग कोविड’ कहा जाता है.
इनमें लिवर, किडनी और कार्डियक समस्याएं, गंभीर थकान और यहां तक कि न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे गंभीर लक्षणों के अलावा हल्के, लगातार बुखार, खांसी और शरीर में हल्का दर्द जैसे दूसरे लक्षण देखे जा सकते हैं.
हमें पता चल रहा है कि यह बीमारी सिर्फ 2 हफ्ते या 14 दिनों के लिए नहीं है. हम कुछ मरीजों में 4-6 सप्ताह तक असर देखते हैं और गंभीर मामले 4 महीने तक बढ़ सकते हैं.डॉ सुरनजीत चटर्जी, सीनियर कंसलटेंट, इंटरनल मेडिसिन इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल
कुल मिलाकर यह कहना है कि बीमारी ठीक होने पर भी खत्म नहीं हो जाती है.
हालांकि, डॉ रे का कहना है कि जिसे लॉन्ग कोविड या पोस्ट कोविड कहते हैं, वो असल में कोविड का एक हिस्सा है. “गंभीर कोविड के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण और बाद में आईसीयू में रहने से रिकवरी में लंबा समय लग सकता है. यह दूसरी गंभीर बीमारियों में भी होता है, जिनके चलते आईसीयू में भर्ती होना पड़ता है, लेकिन निश्चित रूप से, कोविड-19 एक नई बीमारी है और हम हर रोज इसके बारे में नई चीजों के बारे में जान रहे हैं.”
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