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2050 तक हर 4 में से 1 शख्स को हो सकती है सुनाई देने में समस्या:WHO

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Health News
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की पहली वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि 2050 तक दुनिया भर में लगभग 2.5 अरब लोग (हर 4 में से 1 शख्स) किसी न किसी हद तक सुनाई न देने की समस्या से जूझ रहे होंगे.

इनमें से करीब 70 करोड़ लोग हियरिंग लॉस (सुनाई न देने) से जूझ रहे होंगे.

सुनने संबंधी समस्याओं पर दुनिया की अब तक की यह पहली रिपोर्ट है. रिपोर्ट में कहा गया है कि समस्याओं के कई कारणों रोका जा सकता है. इसमें संक्रमण, बीमारियां, बर्थ डिफेक्ट यानी जन्म के समय से दिक्कत, बढ़ता शोर-शराबा और लाइफस्टाइल च्वॉइस शामिल है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में 5 लोगों में से 1 को अभी सुनने की समस्याओं से जूझ रहे हैं.

वहीं अगले तीन दशक के दौरान सुनने की क्षमता में कमी की समस्या से जूझने वाले लोगों की संख्या डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ सकती है.

2019 में ऐसे लोगों की संख्या दुनिया भर में 1.6 अरब थी, जो कि अगले तीन दशक में 2.5 अरब हो सकती है.

2050 में 2.5 अरब में से 70 करोड़ लोग ऐसे होंगे, जो गंभीर रूप से इस बीमारी से प्रभावित होंगे और उन्हें ट्रीटमेंट की जरूरत होगी. 2019 में ऐसे लोगों की तादाद 43 करोड़ थी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस समस्या से निजात पाने के लिए रोकथाम और इलाज में ज्यादा निवेश करने का उपाय सुझाया है.

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बहरेपन की रोकथाम और बचाव के उपाय

रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में हियरिंग लॉस के लगभग 60 प्रतिशत मामलों की रोकथाम रूबेला और दिमागी बुखार से बचाव के लिए टीकाकरण, मातृ और नवजात देखभाल में सुधार, कान से जुड़ी इन्फ्लेमेटरी बीमारियों की स्क्रीनिंग और मैनेजमेंट के जरिए की जा सकती है.

वहीं वयस्कों में शोर नियंत्रण, सुरक्षित श्रवण और ओटोटॉक्सिक दवाओं की निगरानी के साथ-साथ कान की स्वच्छता सुनने की क्षमता बनाए रखने में मदद कर सकती है.

सुनाई देने की क्षमता में कमी (और कान से जुड़ी दूसरी बीमारियों) से प्रिवेंटिव एक्शन के जरिए बचा जा सकता है, जैसे: तेज आवाज से सुरक्षा; कान की अच्छी देखभाल और टीकाकरण.

हियरिंग लॉस के जोखिम वाले लोगों को नियमित रूप से अपने कान और सुनने की क्षमता की जांच करानी चाहिए.

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क्या हैं चुनौतियां?

सटीक जानकारी का अभाव और कान की बीमारियों और हियरिंग लॉस को लेकर कलंक वाला रवैया अक्सर लोगों को इन स्थितियों की देखभाल करने से रोकते हैं.

यहां तक कि हेल्थकेयर प्रोवाइडर के बीच भी, अक्सर इसके रोकथाम, समस्या की शुरुआत में पहचान, कान की बीमारियों और हियरिंग लॉस के मैनेजमेंट को लेकर ज्ञान की कमी देखी जाती है. इससे जरूरी देखभाल में कमी आती है.

“हमारी सुनने की क्षमता कीमती है. अगर सुनाई देने में आ रही किसी दिक्कत का इलाज नहीं कराया जाता है, तो इससे लोगों की संवाद करने, अध्ययन करने और जीविकोपार्जन की क्षमता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की उनकी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है.”
डॉ टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस, डायरेक्टर जनरल, WHO

लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमता में सबसे ज्यादा अंतर मानव संसाधनों में है. कम आय वाले देशों में, लगभग 78% में प्रति मिलियन आबादी पर 1 से कम कान, नाक और गले (ईएनटी) का विशेषज्ञ है; 93% कम आय वाले देशों में प्रति मिलियन 1 से कम ऑडियोलॉजिस्ट है; केवल 17% देशों में प्रति मिलियन 1 या अधिक स्पीच थेरेपिस्ट है; और 50% में बहरे लोगों के लिए प्रति मिलियन 1 या अधिक शिक्षक हैं.

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तेज वॉल्यूम: बहरेपन के लिए जिम्मेदार अहम फैक्टर

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, मनोरंजन उपकरणों के माध्यम से साउंड के संपर्क में आने से 1.1 अरब युवाओं (12-15 वर्ष की आयु) को हियरिंग लॉस (सुनने की क्षमता में कमी) का खतरा है.

सामान्य बातचीत 60-65 डेसिबल के बीच होती है. 75-80 डेसिबल से ऊपर कोई भी स्तर नुकसानदायक माना जा सकता है.

फोर्टिस गुरुग्राम में इयर नोज एंड थ्रोट के निदेशक डॉ अतुल कुमार मित्तल ने फिट से बातचीत में बताया कि इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ गई है. “हियरिंग लॉस के बहुत सारे अनजाने मामले हैं. इनमें से अधिकांश मामलों में, मरीज सुनने की परेशानी को लेकर नहीं आते हैं. रेगुलर चेकअप के दौरान उनकी समस्या पकड़ में आती है. जब हम उनकी स्क्रीनिंग करते हैं, तो हाई वॉल्यूम के कारण होने वाले नर्व डैमेज का पता चलता है. ये मामले चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं.”

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वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग में सुनने की समस्या के उपाय के लिए पैकेज का प्रस्ताव किया गया है, जिसके तहत एक व्यक्ति पर सालाना 1.33 डॉलर की लागत आएगी. दुनिया को हर साल करीब एक ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होने का अनुमान जताया गया है क्योंकि इस समस्या का उचित समाधान नहीं किया गया है.

WHO की रिपोर्ट में कहा गया, "समस्या से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों में विफलता का खामियाजा प्रभावित लोगों के कल्याण पर प्रभाव पड़ने के रूप में सामने आएगा. इसके अलावा शिक्षा, नौकरी और संचार से उनके अलग होने से वित्तीय नुकसान का भी संकट खड़ा हो सकता है."

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