इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने प्लाज्मा थेरेपी को लेकर एक बड़ा बयान जारी किया है, जिसे कोविड-19 से पीड़ित गंभीर मरीजों के लिए जीवन रक्षक के रूप में माना जा रहा था.
ICMR के महानिदेशक (डीजी) बलराम भार्गव ने कहा कि COVID-19 के क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "हमने कोविड-19 प्रबंधन के लिए नेशनल टास्क फोर्स के साथ चर्चा की है. हम ज्वॉइंट मॉनिटरिंग ग्रुप के साथ आगे चर्चा कर रहे हैं और राष्ट्रीय क्लीनिकल दिशानिर्देशों से प्लाज्मा थेरेपी को हटाने पर विचार कर रहे हैं."
भार्गव ने स्वास्थ्य मंत्रालय के साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, "हम कमोबेश किसी निर्णय की ओर पहुंच रहे हैं (नेशनल क्लीनिकल प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटाने के लिए)."
यह बयान प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता पर किए गए कई अध्ययनों के मद्देनजर आया है, जिसमें पाया गया कि इससे गंभीर बीमारी की स्थिति में मृत्युदर में कमी नहीं हुई.
प्लाज्मा थेरेपी में बीमारी से ठीक हो चुके मरीजों के ब्लड से लिए गए एंटीबॉडी का प्रयोग बहुत बीमार मरीज में किया जाता है.
सितंबर में सामने आए आईसीएमआर के अध्ययन से पता चला है कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 के गंभीर मरीजों की जान बचाने में कामयाब नहीं रही है.
प्लाज्मा थेरेपी को शुरुआत में कोरोना से निपटने में काफी कारगर माना जा रहा था, हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने ICMR का हवाला देते हुए अप्रैल में ही ये साफ किया था कि प्लाज्मा थेरेपी पर प्रयोग किए जा रहे हैं.
भारत ने प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का अध्ययन करने के लिए प्लेसिड परीक्षण नाम से दुनिया की सबसे बड़ी रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड स्टडी की थी. देशभर के 39 केंद्रों पर 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 464 रोगियों पर परीक्षण किया गया. ये अध्ययन सितंबर में एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था.
परीक्षण के परिणाम से पता चला कि प्लाज्मा थेरेपी मरीजों को फायदा पहुंचाने में नाकामयाब रही है.
(आईएएनएस इनपुट के साथ)
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