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अल्जाइमर रोग: भूलने की आदत कब बन जाती है एक गंभीर बीमारी?

जानिए भूलने की आम आदतों और अल्जाइमर के लक्षणों में क्या फर्क है?

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चार साल पहले मैं एक ऐसे दौर से गुजरी, जब बात करते-करते बीच में ही मैं पूरी तरह ब्लैंक हो जाती, जन्मदिन भूल जाती, एकाग्रचित होने में कठिनाई होती. मुझे पता नहीं होता कि मेरा फोन, चाबियां या यहां तक कि मेरा बच्चा कहां है! और ऐसे में हमेशा उस शख्स को मार डालने की ख्वाहिश होती जो मुझसे पूछता,“तुमने आखिरी बार उसे कहां देखा था?” मूर्ख, मुझे पता नहीं है, तभी तो मैं ढूंढ नहीं पा रही हूं!

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लंबे समय तक एक हेल्थ जर्नलिस्ट होने के नाते, बहुत सी बीमारियों के बारे में गहराई से जानती हूं और मुझे यकीन था कि यह मेमोरी लॉस की शुरुआत है.

ये मजाक की बात नहीं है! कुछ दुर्लभ मामलों में, अल्जाइमर की बीमारी उम्र के दूसरे और तीसरे दशक में लोगों पर हमला करती है, और महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है.

आप मानें ना मानें, 29 की उम्र में, मैं एक न्यूरोलॉजिस्ट के पास यह जानने गई कि क्या मेरी स्मृति खत्म हो रही है. मेरी गहरी चिंता और मीडिया की पृष्ठभूमि को देखते हुए डॉक्टर ने मेरी संज्ञानात्मक क्षमताओं का संपूर्ण न्यूरोलॉजिकल असेसमेंट किया. आईक्यू और मेमोरी स्केल के दर्जनों आकलन, ओरल वर्ड एसोसिएशन टेस्ट और जटिल गणनाएं कीं.

नतीजा: आश्वासन और राहत. मुझे मातृत्व की आम दिक्कतें (थकान, भूलना, एकाग्रचित होने में मुश्किल) निकली, जिसका इलाज किया गया.

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याददाश्त कमजोर होने या खत्म होने के डर सामान्य हैं, खासकर जब हम चीजों को रख कर भूल जाते हैं और नामों का घालमेल करना शुरू कर देते हैं और महत्वपूर्ण मौकों को भूल जाते हैं. लेकिन आम भुलक्कड़पन कब अल्जाइमर रोग या इसके अन्य रूप डिमेंशिया जैसा गंभीर होता है? 
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क्या सामान्य है, और क्या नहीं?

जानिए भूलने की आम आदतों और अल्जाइमर के लक्षणों में क्या फर्क है?
अल्जाइमर के एक मरीज का ब्रेन स्कैन
(फोटो: iStock)

चाबियां रख कर भूल जाना सामान्य है; लेकिन यह भूल जाना कि वे किस लिए हैं, ये डिमेंशिया है.

किसी शख्स का नाम भूल जाना सामान्य है; लेकिन ये याद नहीं कर पाना कि उस व्यक्ति को जानते हैं, ये सामान्य नहीं है.

किसी जाने-पहचाने रास्ते पर कोई मोड़ भूलना सामान्य है; लेकिन किसी जाने-पहचाने रास्ते पर घंटों भटकना या खो जाना सामान्य नहीं है.

ये बातें हम में से हर एक के लिए अलग-अलग होंगी, लेकिन डिमेंशिया के शुरुआती रोगियों में, यह जान पाना मुश्किल हो सकता है. लेकिन इन संकेतों को चेतावनी के तौर पर देखना चाहिए:

मेमोरी लॉस रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डालती है

सामान्य क्या है: उम्र से संबंधित आम बदलावों में नाम या सामाजिक घटनाओं को भूल जाना और बाद में भ्रमित हो जाना.

कब लें डॉक्टर की मदद: जब एक पूर्ण ब्लैकआउट होता है. आप याद नहीं कर पाते कि आपने अपने दोस्तों को डिनर पर बुलाया है. आप एक ही बात बार-बार पूछते रहते हैं.

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समय या जगह को लेकर कन्फ्यूजन

सामान्य क्या है: अचंभित होना कि यह सितंबर कैसे है; क्या मैंने अभी जल्द ही नए साल का जश्न नहीं मनाया! दिन या तारीख के बारे में भ्रमित होना और इसे याद नहीं कर पाना.

कब लें डॉक्टर की मदद: तारीखों, मौसमों और गुजरे हुए समय का हिसाब नहीं रख पाना; भूल जाना कि आप किस जगह पर हैं या आप वहां कैसे पहुंचे.

बोलने या लिखने में शब्दों के साथ नई समस्याएं

सामान्य क्या है: सटीक शब्द पाने में परेशानी.

कब लें डॉक्टर की मदद: हर तीन या चार शब्द पर अटकना, शब्दों को याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़े और शब्दों के लिए जूझना, चीजों को गलत नाम से बुलाना.

चीजों को गुम कर देना और अपने किए काम याद ना आना

सामान्य क्या है: अक्सर चीजों को गुम कर देना, जैसे चश्मा या रिमोट कंट्रोल.

कब लें डॉक्टर की मदद: असामान्य जगहों पर चीजें रख देना; चीजों को खो देना और उन्हें फिर से ढूंढ नहीं पाना और दूसरों पर चुरा लेने का इल्जाम लगा देना.

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निम्न स्तरीय या गलत निर्णय

सामान्य क्या है: कभी-कभार कोई गलत निर्णय लेना.

कब लें डॉक्टर की मदद: पैसे के मामले में लगातार गलत निर्णय लेना; खुद की देखभाल या साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देना.

मूड और व्यक्तित्व में बदलाव

सामान्य क्या है: काम करने के बेहद चुनिंदा तरीका बना लेना और रुटीन बाधित होने पर चिड़चिड़ा हो जाना.

कब लें डॉक्टर की मदद: भ्रमित, शक्की, उदास, भयभीत या चिंतित होना; कंफर्ट जोन से बाहर निकलना पड़े, तो एकदम से अपसेट हो जाना.

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भारत में अल्जाइमर की दर कम क्यों है?

जानिए भूलने की आम आदतों और अल्जाइमर के लक्षणों में क्या फर्क है?
भारत डायबिटीज और दिल की बीमारियों के मामले में दुनिया की राजधानी है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि हमारे पास काफी स्वस्थ मस्तिष्क हैं.
(फोटो: iStock)

अमेरिका की तुलना में भारत में अल्जाइमर की दर 5 गुना कम है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक एक यौगिक करक्यूमिन मस्तिष्क को तेज रखता है और अल्जाइमर के लक्षणों को 30% तक कम करता है. यह एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध है और मस्तिष्क में प्लेक बनने को रोकने में प्रभावी रूप से मदद करता है.

करक्यूमिन (क्यूमिन या जीरा नहीं) दरअसल हल्दी का एक घटक है, जिसका भारतीय सदियों से खाना पकाने में उपयोग कर रहे हैं. हालांकि, यह ज्ञात नहीं है कि स्वस्थ भारतीय मस्तिष्क का क्या यही एकमात्र कारण है.

वैज्ञानिक मस्तिष्क के लिए विटामिन डी सप्लीमेंट के साथ रोजाना 500-1000 मिलीग्राम हल्दी लेने की सलाह देते हैं. एक चम्मच में लगभग 200 मिलीग्राम हल्दी होती है - इसलिए रात के खाने के बाद परंपरागत हल्दी वाला दूध लेना अच्छा विचार होगा.

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(यह लेख fit.thequint.com पर पहली बार 20 जून, 2015 को प्रकाशित हुआ था.)

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