कोरोना वायरस को लेकर तमाम तरह की रिसर्च, ट्रायल चल रहे हैं. अब तक इसकी दवा या वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है. कई देश कोशिश में जुटे हुए हैं. लेकिन भारत में संक्रमित मरीज बिना वैक्सीन और तय इलाज के कैसे ठीक हो रहे हैं? इस बारे में हमने दिल्ली में शालीमार बाग के फोर्टिस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी/चेस्ट एंड स्लीप मेडिसीन के हेड- डॉक्टर विकास मौर्या से बात की.
डॉक्टर विकास कहते हैं कि वायरस से संक्रमित लोगों का इलाज लक्षण के आधार पर किया जा रहा है. जैसे ही किसी शख्स के संक्रमित होने का पता चलता है तो सबसे पहले उन्हें आइसोलेट किया जाता है. उनकी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जाती है, ताकि मरीज के संपर्क में आए लोगों को क्वॉरंटीन किया जा सके.
इस वायरस का प्रीसिम्प्टोमेटिक ट्रांसमिशन भी होता है यानी किसी शख्स में लक्षण दिखने से 4 दिन पहले भी इंफेक्शन दूसरे लोगों में फैल सकता है.
SARS-CoV-2 सेल्फ लिमिटिंग वायरस है. ज्यादातर मरीजों में बुखार, खांसी, थकान, सिरदर्द जैसी समस्या होती है. लंग्स पर शुरुआत में असर नहीं दिखता. पहले रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट यानी नाक, नजल कैविटी ही इंवॉल्व होते हैं.
जब ये बीमारी कंट्रोल नहीं होती है तब लंग्स पर भी असर पड़ना शुरू हो जाता है. इस दौरान सांस लेने में दिक्कत आती है. लगातार खांसी और निमोनिया लंग्स पर असर दिखाने लगता है. ऐसे में ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है. अगर वेंटिलेटर नहीं दिया गया तो मरीज की जान जा सकती है.
बता दें, कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में 80 फीसदी मामले ऐसे हैं जिनमें लक्षण या तो बहुत मामूली हैं या हैं ही नहीं(Asymptomatic). कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में से 20 फीसदी में से 15 फीसदी मरीज में संक्रमण के गंभीर लक्षण दिख रहे हैं जबकि 5 फीसदी बेहद गंभीर हैं. लक्षण वाले कोरोना मरीजों को इलाज की जरूरत नहीं होती. सिर्फ अलग रहने से उनमें कोरोना के संक्रमण से छुटकारा मिल सकता है.
किस तरह की दवाएं करती हैं मदद?
माइल्ड केस में लक्षण के आधार पर इलाज किया जाता है. ऐसे मरीज 2 सप्ताह में रिकवर हो जाते हैं. इन्हें हाइड्रेशन और अच्छी डाइट दी जाती है. इन मरीजों का चौदहवें दिन टेस्ट किया जाता है. निगेटिव आने पर डिस्चार्ज कर दिया जाता है और अगले 14 दिन के लिए क्वॉरंटीन कर दिया जाता है.
डॉक्टर विकास कहते हैं कि इन मरीजों का इलाज करते वक्त इस बात पर फोकस रखा जाता है कि ये मॉडरेट केस की कैटेगरी में न जाएं. उनका इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ने की कोशिश करता है.
मॉडरेट केस में लंग्स पर असर पड़ता है लेकिन इन्हें वेंटिलेटर की जरूरत नहीं होती. ऐसे मरीजों को ठीक होने में 2 हफ्तों से भी ज्यादा समय लग सकता है. इन्हें लंबे इलाज की जरूरत पड़ती है. प्लाज्मा थेरेपी इन मरीजों के लिए उचित इलाज कही जा सकती है. चीन में ऐसे मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई और इम्यून ग्लोबलीन, स्टेरॉयड्स दिए गए.
कई सारे एंटी-वायरल ड्रग्स - रेमडेसिवीर, लोपिनाविर, रिटोनाविर का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन अबतक डॉक्टर इस बात की पुष्टि नहीं करते कि ये हर मरीज के लिए कारगर साबित हो.
सीवियर केस में लक्षण के आधार पर इलाज के साथ-साथ ऑक्सीजन मास्क लगाए जाते हैं और हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है.
वॉर्ड में मरीजों को मिलती है कैसी केयर?
वॉर्ड के अंदर वैसे मरीज होते हैं जिनकी हालत स्थिर होती है. जिनमें माइल्ड डिजीज होता है. इन मरीजों को बुखार के लिए एंटी बायोटिक, एंटी एलर्जिक, कफ के लिए डिकंजेस्टेंट मेडिकेशन दिया जाता है. उनके हाइड्रेशन को मेंटेन किया जाता है. ज्यादा पानी पीने को कहा जाता है. अच्छी डाइट दी जाती है. उनके ऑक्सीजन लेवल की मॉनिटरिंग की जाती है. मरीजों को मास्क पहनकर रहना होता है.
ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए इंट्रावेनस ड्रिप लगाए जाते हैं.
कैसी डाइट लेते हैं मरीज?
मरीजों को हाई प्रोटीन डाइट दी जाती है. लेकिन अगर कोई डाइबिटिक, किडनी का मरीज है तो उसके लिए अलग डाइट होती है. किडनी के मरीजों को ज्यादा प्रोटीन नहीं दिया जा सकता. उनके लिए प्रोटीन लिमिट डाइट होती है, साथ ही ध्यान रखा जाता है कि ज्यादा पोटैशियम न हो ताकि उनके किडनी की परेशानी न बढ़े.
डायरिया के मामलों में फ्लुइड (तरल पदार्थ) दिए जाते हैं.
इलाज में कितना समय लगता है?
माइल्ड केस में रिकवर होने में कम से कम 14 दिन लगते हैं. मॉडरेट में 3 सप्ताह लग सकते हैं, वहीं सीवियर में 4 सप्ताह का समय लगता है. टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आने पर पेशेंट को डिस्चार्ज किया जाता है और घर में 14 दिन के आइसोलेशन की सलाह दी जाती है.
कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए WHO और ICMR ने गाइडलाइंस जारी की हैं. इनमें अलग-अलग लक्षणों वाले लोगों के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट बताए गए हैं और दवाओं की मात्रा को लेकर भी निर्देश हैं.
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