दावा
हाल ही में कोरोना वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट काफी वायरल हुए, जिनमें दावा किया गया है कि कोरोना वैक्सीन को स्टेबल रखने के लिए उसमें सुअर की चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है.
कई पोस्ट में कहा गया कि मुसलमान कोरोना वैक्सीन न लगवाएं क्योंकि इसमें सुअर की चर्बी है.
कोरोना वायरस वैक्सीन में सुअर की चर्बी के इस्तेमाल की अफवाह के बाद इस पर चर्चा के लिए कई संगठनों की ओर से बैठक की भी खबरें मिलीं.
हमें क्या पता चला?
हमने ऐसी रिपोर्टें पाईं जिनके मुताबिक इंडोनेशियाई मौलवियों ने इस बहस को छेड़ा कि क्या COVID-19 वैक्सीन इस्लामिक कानून के तहत इस्तेमाल के लिए मुनासिब है या नहीं. हालांकि, संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च इस्लामिक प्राधिकरण, यूएई फतवा परिषद ने 23 दिसंबर को कहा था कि कोरोना वैक्सीन मुसलमानों के लिए स्वीकार्य हैं, भले ही उनमें पोर्क जिलेटिन हो.
वायरल दावे की जांच के लिए हमने फाइजर, मॉडर्ना, एस्ट्राजेनेका और भारत बायोटेक (कोवैक्सीन) की कोरोना वैक्सीन कैंडिडेट के इंग्रेडिएंट्स की स्टडी की.
इनके इंग्रेडिएंट्स की लिस्ट में सुअर की चर्बी या पोर्क जिलेटिन का जिक्र नहीं किया गया है. पोर्क जिलेटिन अक्सर वैक्सीन को स्टेबलाइज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अब तक मंजूर की गई या मंजूरी की प्रक्रिया में लगी किसी कोरोना वैक्सीन कैंडिडेट में इसके इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स के द्वारा चलाए जा रहे हेल्थ डेस्क के अनुसार फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका COVID-19 वैक्सीन के अपने फॉर्मूले में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं करती हैं.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के इंग्रेडिएंट्स में भी सुअर की चर्बी का जिक्र नहीं है.
हेल्थ डेस्क के मुताबिक कुछ कंपनियों द्वारा इंग्रेडिएंट्स की लिस्ट जारी करना बाकी है, लेकिन अभी तक किसी भी कंपनी ने पोर्क जिलेटिन के उपयोग को निर्दिष्ट नहीं किया है.
Pfizer की ओर से साफ किया गया है कि उसकी वैक्सीन में कोई एनिमल प्रोडक्ट नहीं है. वैक्सीन में केवल सिंथेटिक और रासायनिक रूप से उत्पादित घटक हैं.
इसलिए कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी के इस्तेमाल का दावा सही नहीं है और प्रमुख वैक्सीन उम्मीदवारों में से किसी ने भी अपनी इंग्रेडिएंट्स की लिस्ट में पोर्क जिलेटिन के इस्तेमाल की बात नहीं की है.
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