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क्या COVID-19 के मरीजों के लिए ये ब्रीदिंग टेक्नीक काम करती है?

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दुनिया भर के देश जबकि COVID-19 महामारी से संघर्ष कर रहे हैं, इसके संभावित इलाज और संक्रमित लोगों के लिए राहत के उपायों की तलाश जारी है.

लंदन में क्वींस हॉस्पिटल के डॉ सरफराज मुंशी एक वीडियो में डायरेक्टर ऑफ नर्सिंग सू इलियट द्वारा ITU के अपने अनुभव से सुझाई गई ब्रीदिंग टेक्नीक के बारे में बताते हैं.

हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग द्वारा दावा किए जाने के बाद कि इससे उन्हें उन लक्षणों से ‘पूरी तरह उबरने’ में मदद मिली, जो वह महसूस कर रही थीं, वीडियो जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. रोलिंग ने अपने ट्वीट में लिखा, “पिछले दो हफ्तों से मुझमें C19 के सभी लक्षण थे (हालांकि मैंने टेस्ट नहीं कराया था) और अपने डॉक्टर पति की सलाह पर इस पर अमल किया. मैं अब पूरी तरह ठीक हो गई हूं और इस टेक्नीक ने काफी मदद की.”

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हालांकि, बीमारी के किसी भी प्रस्तावित इलाज का गहराई से मूल्यांकन कर पाना मुश्किल है क्योंकि इस पर अभी भी मेडिकल प्रेक्टिशनर और वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन जारी है. फिट ने डॉक्टरों से यह समझने के लिए बात की कि वो इस टेक्नीक के बारे में क्या सोचते हैं और क्या वे इसकी सलाह देंगे.

टेक्नीक

नोवल कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों को ये करने की सलाह दी जाती है:

1. पांच बार गहरी सांस लें और हर सांस पांच सेकंड के लिए रोकें.

2. छठी बार गहरी सांस लें और अपने मुंह को ढकते हुए बड़ी खांसी के साथ सांस छोड़ें.

3. इसे दो बार दोहराएं.

4. फिर बिस्तर पर पेट के नीचे तकिया रख पेट के बल लेट जाएं, पीठ के बल नहीं.

5. 10 मिनट तक ऐसे ही लेटे रहें, थोड़ी गहरी सांस लेते हुए.

डॉ मुंशी वीडियो में कहते हैं, “एक बार जब आपको एक एक्टिव संक्रमण हो जाता है, तो आपको फेफड़ों में हवा की अच्छी मात्रा हासिल करने की जरूरत होती है. मैं चाहता हूं कि अगर आपको संक्रमण है तो आप ऐसा करना शुरू कर दें, एकदम शुरुआत से ही. अगर आप संक्रमण से पहले भी इसे करना चाहते हैं, तो यह एक अच्छा ख्याल है.”

यह पता लगाने के लिए कि क्या इस टेक्नीक से सच में फायदा होता है, इसमें बताए दो बुनियादी सुझावों पर चर्चा करने की जरूरत है: गहरी सांस लेना और उसके बाद पेट के बल लेटना.

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सांस अंदर लेना, खांस कर बाहर छोड़ना

मैक्स हॉस्पिटल में ब्रोंकोलॉजी विभाग के हेड और रेस्पिरेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ नवीन किशोर बताते हैं कि COVID-19 के खिलाफ इसकी सफलता का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.

डॉक्टर इस बात को लेकर पक्के तौर पर आश्वस्त नहीं हैं कि इस तरह से सांस लेने की कवायद किस हद तक ‘COVID-19’ के मरीजों का इलाज करने में मदद कर सकती है, लेकिन वे मानते हैं कि इससे कुछ फायदा तो हो सकता है.

जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में रेस्पिरेटरी मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ. निमिष शाह बताते हैं, “हम अपने सभी सांस के मरीजों को सांस लेने की टेक्नीक पर अमल की सलाह देते हैं. यहां तक कि हमारी सभी योगा टेक्नीक फेफड़ों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उपयोगी है. अब जिस तरह से यह वायरस फेफड़ों को प्रभावित करता दिख रहा है, हो सकता है कि मरीजों के लिए यह एक बेकार विचार न हो कि वे अपने फेफड़ों का पूरी क्षमता से इस्तेमाल करने की कोशिश करें. ”

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“लेकिन यह किसी तथ्य पर आधारित नहीं है. हमारे पास COVID-19 के मरीजों पर इस तरह के प्रयोग के असर के बारे में विशिष्ट वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हैं. इसलिए जरूरी है कि इसे सुरक्षा उपाय के रूप में न देखा जाए. हालांकि यह वैसे फेफड़ों के लिए अच्छा है.”
डॉ निमिष शाह
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फिट ने PSRI अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ सत्या रंजन साहू से बात की, जिन्होंने बताया कि ये टेक्नीक उन लोगों के लिए मददगार नहीं है, जो गंभीर रूप से इस बीमारी से पीड़ित हैं. “किसी वायरस के कारण जिसमें से एक का अभी हम सामना कर रहे हैं, कुछ मरीज एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) के चरण में पहुंच जाते हैं. एल्वोलस (फेफड़ों में हवा की थैली) द्रव्य से भर जाती है और फेफड़ों द्वारा हवा अंदर लेना मुश्किल हो जाता है, जिसके कारण पंपिंग क्रिया प्रभावित होती है. अधिकांश मौतें इस अतिरिक्त घटक के कारण हो रही हैं.”

“ ऐसी ब्रीदिंग टेक्नीक केवल उन लोगों द्वारा अपनाई जा सकती है जो अपेक्षाकृत स्वस्थ हैं और सचमुच सांस रोक सकते हैं, और यहां तक कि उनकी भी निगरानी जरूरी होगी. जो मरीज ARDS अवस्था में पहुंच चुके हैं, उनके लिए सांस रोकना मुश्किल है और इससे बहुत मदद नहीं मिलेगी.”
डॉ. सत्य रंजन साहू
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वह फिर से दोहराते हैं कि यह साबित नहीं हुआ है कि ये एक्सरसाइज रोगियों की मदद करेगी या नहीं, लेकिन माना जा सकता है कि ये फेफड़े के उन हिस्सों को स्वस्थ रख सकती हैं, जो बाद में बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. मुमकिन है कि यह संक्रमण को अंतिम चरण तक बढ़ने से रोकने में मदद करता हो और संक्रमित होने वालों के फेफड़े में जकड़न की संभावना को कम करता हो.

पेट के बल लेटना: क्या यह फेफड़ों के लिए फायदेमंद है?

क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे बताते हैं कि पेट के बल लेटना, या ‘प्रोनिंग’ जैसा कि इसे मेडिकल भाषा में कहते हैं, वास्तव में यह ARDS के गंभीर मरीजों का वेंटिलेटर पर इलाज का एक हिस्सा रहा है. “वेंटिलेटर पर मरीजों को कभी-कभी 18-20 घंटे तक इस स्थिति में रखा जाता है. बेशक, वे उस समय सेडेटिव दवा के असर में बेहोशी की हालत में होते हैं. ”

अध्ययनों में पाया गया है कि यह पोजिशन ऑक्सीजनेशन में मदद करती है, रेस्पिरेटरी मैकेनिज्म में सुधार करती है, शरीर से बेकार पदार्थों की निकासी में मदद करती है, फेफड़ों की क्षमता बढ़ाती है और वेंटिलेटर से जुड़ी फेफड़ों के जख्मी होने की संभावना को कम करती है.

उनका कहना है कि COVID-19 के संदर्भ में होश में रहने वाले उन रोगियों में प्रोनिंग का इस्तेमाल किया जा रहा, जिनको हल्के से लेकर मध्यम किस्म के लक्षण हैं, लेकिन उन्हें अभी वेंटिलेटर पर नहीं रखा गया है. ऐसे लोगों के लिए इस कसरत के नतीजे उतने ही महत्व के हैं.

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“ फिलहाल यह उन मरीजों के लिए जो खुद करवट बदल सकते हैं, फायदेमंद हो सकता है. इसी तरह ब्रीदिंग एक्सरसाइज फेफड़ों के उन हिस्सों को खोलने में मदद कर सकती है, जो बीमारी के कारण बंद होने लगे हैं. लेकिन निश्चित रूप से, किसी को नहीं पता कि इस तरह कितनी बार सांस लेना और छोड़ना चाहिए या यह किस हद तक मदद कर सकता है.”
डॉ सुमित रे

विशेषज्ञ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं

डॉ अश्विनी सेतिया दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर हैं. वह रोजमर्रा के कामकाज में एक महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान दिलाते हैं.

“ चूंकि हम संक्रमित लोगों के बारे में बात कर रहे हैं, इसलिए सावधानियों का जरूर पालन किया जाना चाहिए. यह जरूरी है कि इस तरह की ब्रीदिंग एक्सरसाइज सिर्फ बंद आइसोलेटेड जगहों पर की जाए. यह वायरस खांसी या छींक के साथ निकलने वाली बहुत छोटी बूंदों से फैल सकता है और इसलिए शर्ट के अंदर खांसने, या मास्क पहनने की सलाह दी जाती है.”
डॉ अश्विनी सेतिया
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यह कितना कारगर इस बारे में बात करते हुए, वह दोहराते हैं कि इस विशेष तकनीक का कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं है. हालांकि, योग को लेकर हमारी सामान्य समझ और विभिन्न प्राणायाम जो हम काफी समय से करते रहे हैं, हमें बताते हैं कि ये टेक्नीक फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकती है.

“ इस तरह की एक्सरसाइज से किसी भी तरह के नुकसान की संभावना नहीं है बशर्ते कि मरीज आइसोलेटेड है और उसे निमोनिया या कोई दूसरी गंभीर बीमारी नहीं है.”
डॉ अश्विनी सेतिया

डॉ साहू साथ की किसी दूसरी बीमारी (को-मॉर्बिटीज) वाले मरीजों को सावधान रहने की भी सलाह देते हैं. “उदाहरण के लिए, हार्ट की बीमारी या किसी दूसरी क्रॉनिक बीमारी से पीड़ित लोग लंबे समय तक सांस नहीं रोक सकते हैं. इससे समस्याएं हो सकती हैं. तो बिना दूसरी बीमारी वाला सामान्य व्यक्ति इसको आजमा सकता है, लेकिन बाकी लोगों को जरूर सावधानी बरतनी चाहिए.”

डॉ शाह कहते हैं कि ये एक्सरसाइज काफी दबाव डालने वाली हो सकती है क्योंकि हम बहुत ज्यादा दबाव के साथ कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकाल रहे हैं. यहां तक कि वीडियो में डॉक्टर कहते हैं कि पहले दौर के बाद उन्हें चक्कर आ रहा था. “अगर आप चक्कर महसूस करते हैं, तो बार-बार बहुत ज्यादा न दोहराएं और ध्यान रखें कि आप बैठ कर एक्सरसाइज कर रहे हैं.”

यह समझना जरूरी है कि ये सावधानियां नहीं हैं और बीमारी से इम्यूनिटी की गारंटी नहीं करती हैं. हालांकि डॉक्टर मानते हैं कि इस तरह की एक्सरसाइज हल्के संक्रमण वाले लोगों के फेफड़ों के लिए फायदेमंद हो सकती है, वे दोहराते हैं कि यह बीमारी का कोई ‘इलाज’ नहीं है. किसी भी ठोस दावे के लिए अभी भी इसके सटीक फायदों का अध्ययन करना होगा. इसके लिए आइसोलेशन, सुपरविजन और मेडिकल हेल्प जरूरी है.

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