ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

‘‘भारत में हम बिना सेनापति के ही कोरोना से लड़ रहे युद्ध’’

Updated
Health News
4 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

तकरीबन 100 भारतीय वैज्ञानिकों ने मौजूदा कोविड संकट से निपटने में मदद के लिए सरकार से ICMR डेटा की ज्यादा उपलब्धता और पारदर्शिता की मांग की है.

इस समय जबकि दूसरी लहर पूरे जोर पर है और बहुत से भारतीय अभी भी बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहे हैं, वैज्ञानिकों ने और ज्यादा तालमेल के लिए ICMR से उसके डेटा को साझा करने की मांग की है.

“हमें हर हाल में डेटा साझा करना चाहिए. हमें दूसरे देशों की चेतावनियों पर भी ध्यान देना होगा. याद कीजिए कि खुलेपन से डेटा साझा न करने के लिए चीन की कितनी आलोचना हुई थी?”
डॉ. स्वप्निल पारिख, इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट, मुंबई
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शीर्ष वैज्ञानिकों की याचिका में, जिसमें मशहूर वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग भी शामिल हैं, कहा गया है, “ICMR डेटाबेस सरकार से बाहर के किसी भी शख्स के लिए अनुपलब्ध है और शायद सरकार के भीतर भी बहुतों के लिए. ज्यादातर वैज्ञानिकों— जिनमें से कई साइंस व टेक्नोलॉजी विभाग और नीति आयोग द्वारा भारत के लिए नए भविष्यवाणी मॉडल विकसित करने को नामांकित किए गए हैं— की इन आंकड़ों तक पहुंच नहीं है.”

इसमें कहा गया है कि हालात का आकलन करने और लहरों (waves) का पूर्वानुमान लगाने के लिए डेटा जरूरी है, जिससे मेडिकल सप्लाई, ऑक्सीजन, आईसीयू बेड और दवाओं की जरूरत का आकलन करने में मदद मिलेगी.

पत्र में ICMR के डेटा छिपाकर रखने की निंदा की गई है और कहा गया है कि, “कई वैज्ञानिक अस्पताल में भर्ती हुए कोविड-19 के मरीजों की कोमॉर्बिडिटीज और ब्लड के विश्लेषण का डेटा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही है.”

0

तेज जीनोम सीक्वेंसिंग की जरूरत

पत्र में इंडियन SARS-CoV-2 कन्सोर्टियम ऑन जीनोमिक्स (INSACOG) के मामले का हवाला देते हुए इसकी धीमी और कम सीक्वेंसिंग के लिए आलोचना की गई है. “सिर्फ एक फीसद संक्रमित व्यक्तियों की ही सीक्वेंसिंग की गई है,” और यह समझने के लिए कि क्या कोई म्यूटेटेड वायरस ज्यादा मारक और संक्रामक है, ज्यादा डेटा जरूरी है.

फिट के इससे पहले के एक आर्टिकल में डॉ. कांग ने कहा था,

“हम एक महामारी के बीच में हैं और यह ऐसा वायरस है, जो बहुत ज्यादा तेजी से विकसित हो रहा है. मुझे नहीं लगता कि हम जो सीक्वेंसिंग कर रहे हैं, वह काफी है. यह भौगोलिक स्तर पर या महामारी विज्ञान के स्तर पर सही प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है. मैं उम्मीद करती हूं कि INSACOG और दूसरों द्वारा किए जा रहे काम में इस मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा होगा.”

पत्र में भारतीय वेरिएंट (Indian variant) की तेजी से सीक्वेंसिंग में मदद के लिए और ज्यादा तालमेल की बात कही गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सबक

पत्र में विश्व स्तर पर जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और पारदर्शिता पर जोर दिया गया है. क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. टी. जैकब जॉन कहते हैं कि भारत को सही मायनों में “महामारी से सबक सीखकर” अपनी सरकारी स्वास्थ्य सेवा को पूरी तरह दुरुस्त करना होगा.

वैसे वह याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल नहीं हैं, उनका कहना है कि हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे सिर्फ कोविड-19 तक सीमित नहीं हैं और वे सिस्टम से जुड़ी हैं.

“तमाम वेरिएंट दिसंबर में भारत में आए थे लेकिन हमने दूसरी लहर के बाद इस पर ध्यान दिया. क्यों? क्योंकि कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं था. हम बिना सेनापति के युद्ध लड़ रहे हैं और कोई जवाबदेह नहीं है.”
डॉ. टी. जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट और पूर्व प्रोफेसर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर

वह यह भी कहते हैं कि वैक्सीनेशन कुप्रबंधन से लेकर ऑक्सीजन की कमी से मौतों से तबाही मची है, “एक भी चीज ठीक से नहीं हो रही है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

“हमारे कम्युनिकेशन में भी खामी है- ठीक से मास्क लगाने से 90 फीसद तक इन्फेक्शन को रोका जा सकता है. वैक्सीन बीमारी से नहीं इन्फेक्शन से बचा सकती है, इसलिए मास्क लगाना जरूरी है. और फिर भी इन बुनियादी गाइडलाइंस पर कोई स्पष्ट सरकारी स्वास्थ्य संचार नहीं है. मैं यह नहीं कह सकता कि कोई कुप्रबंधन है क्योंकि असल में तो प्रबंधन ही नहीं है.”

वह अफसोस जताते हैं, “कोई स्पष्टता नहीं है. क्या हमारा वैक्सीनेशन कार्यक्रम राष्ट्रीय है? कश्मीर हो या केरल सबके लिए बराबर अवसर और बराबर लागत होनी चाहिए. लेकिन कोई लीडरशिप नहीं है. कटऑफ उम्र 45 साल क्यों था? फिर वही बात, कोई साफ कम्युनिकेशन नहीं है. बहुत से अफवाहों से लोगों में हिचकिचाहट है लेकिन लोगों को यह भरोसा देने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है कि महामारी से लड़ने के लिए टीका सुरक्षित और असरदार है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वह कहते हैं कि सीक्वेंसिंग के मसले पर भी, “हमारे भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों ने नेतृत्व नहीं किया.”

“पहली लहर में 10 लाख इन्फेक्शन होने में एक महीने का समय लगा. फिलहाल डबलिंग की अवधि 10 दिन है- यह 3 गुना तेज है. इसका मतलब यह भी है कि हमें इन वेरिएंट पर जल्द ध्यान देना चाहिए था.”
डॉ. टी. जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर

‘क्या हम कोई सबक सीखेंगे?’

किसी स्पष्ट नेतृत्व का अभाव और ऑक्सीजन व मेडिकल आपूर्ति की कमी के बीच, वॉलंटियर लोगों की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन ऐसा कब तक चल सकता है? सरकारी अधिकारी कब कदम उठाएंगे और इतने बड़े पैमाने पर पैदा हुए संकट को संभालने में मदद करेंगे?

“हम पहली लहर में हालात को नियंत्रित कर सकते थे, लेकिन बार-बार वही कहानी दोहराई जाती है. यह एक पुरानी समस्या है और स्वास्थ्य व्यवस्था की क्षमताओं को बढ़ाकर इसे दुरुस्त करने की जरूरत है.”
डॉ. टी. जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट और पूर्व प्रोफेसर, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

और यह सब सटीक और समर्पित योजना से मुमकिन है. “कोविड के लिए मैंने एक स्वतंत्र टास्क फोर्स बनाने का सुझाव दिया था जो पूरी तरह महामारी के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती.”

सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह दुरुस्त करना मुश्किल काम लगता है, लेकिन इसका भी समाधान है.

उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन योजनाओं के बारे में, उनका कहना है कि हर मेडिकल कॉलेज- जिसकी क्षमता पांच हजार बेड की हो- उसका एक ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए. “देखिए, सिस्टम को पूरी तरह से दुरुस्त करने की जरूरत है न कि सिर्फ कोविड के लिए कामचलाऊ उपायों की.”

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×