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COVID-19: भारत में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित क्यों?

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Health News
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स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में 16 अप्रैल तक कोरोनावायरस डिजीज-2019 (COVID-19) के 12 हजार से ज्यादा केस कन्फर्म हो चुके हैं.

देश के राज्यों में महाराष्ट्र इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां अब तक 2916 मामले सामने आए हैं और 187 लोगों की मौत हो चुकी है. देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा COVID-19 के केस और मौत के मामले इसी राज्य में हैं.

महाराष्ट्र में हालात इतने बदतर क्यों हैं, ये जानने के लिए फिट ने महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (MGIMS) के डायरेक्ट प्रोफेसर और कस्तूरबा हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ एस.पी कलंत्री, जसलोक हॉस्पिटल में संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ ओम श्रीवास्तव और आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे से बात की.

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बड़े शहर, भीड़भाड़, ट्रैवल और ट्रेड

महाराष्ट्र में कोविड-19 हॉटस्पॉट की बात करें, तो वो मुंबई, पुणे और थाणे हैं. छोटे शहर उतने प्रभावित नहीं हुए हैं. भारत भर में ज्यादातर मामले बड़े शहरों में हैं.
डॉ एस.पी कलंत्री

डॉ सुमित रे कहते हैं कि स्पेनिश फ्लू के समय भी बड़े शहरों को ज्यादा प्रभावित देखा गया था.

वो कहते हैं, "हमें इसे मुंबई और दिल्ली के तौर पर देखना चाहिए क्योंकि दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले बड़े शहरों में ज्यादा इंटरनेशनल ट्रैवल होते हैं और एक तरह से ये काफी तंग इलाके होते हैं. स्पेनिश फ्लू और प्लेग के दौरान सबसे ज्यादा मामले मुंबई में सामने आए थे."

डॉ कलंत्री बताते हैं कि उनके क्षेत्र वर्धा में COVID-19 का एक भी मामला नहीं आया है. वो कहते हैं, "यहां मैं लोगों में इसके लक्षण नहीं देख रहा, लोग कोरोना को लेकर सचेत हैं, लेकिन OPD में बुखार और सर्दी की शिकायत वाले लोगों की बाढ़ सी नहीं आई है."

डॉ रे कहते हैं कि मुंबई ट्रैवल और ट्रेड का एक एंट्री प्वॉइंट है- ये काम का एक तरह से मुख्य सेंटर जहां काम करने वाले तंग हालात में रहते हैं, जो संक्रामक रोग फैलने की वजह बनता है. "बेशक यह सिर्फ इन्हीं क्षेत्रों में नहीं हो रहा है."

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स्क्रीनिंग में देरी

डॉ कलंत्री कहते हैं कि महाराष्ट्र के ज्यादा प्रभावित होने के कई अन्य संभावित कारण हैं जैसे- भीड़भाड़, अंतरराष्ट्रीय यात्रा की अधिक संख्या और हवाई अड्डों पर देर से स्क्रीनिंग.

सभी पैसेंजर की स्क्रीनिंग 17 मार्च से शुरू गुई जबकि राज्य में पहला मामला 9 मार्च को पुणे में सामने आया था.

8 अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने इस बात का जिक्र किया था कि अगर कोविड-19 मामलों की पहचान में देरी होती है, तो ज्यादा मौतें होने का खतरा बढ़ जाता है.

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ज्यादा टेस्टिंग = ज्यादा केस?

जसलोक हॉस्पिटल, मुंबई में संक्रामक बीमारियों से स्पेशलिस्ट डॉ ओम श्रीवास्तव कहते हैं कि ज्यादा मामले ज्यादा टेस्टिंग के परिणाम हो सकते हैं.

महाराष्ट्र सरकार के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के मुताबिक सिर्फ मुंबई में ही 20 हजार से लेकर 22 हजार टेस्ट रोज किए जा रहे हैं, जबकि देश के दूसरे बाकी राज्यों में ये संख्या 15 हजार के करीब है.

हम टेस्ट ज्यादा कर रहे हैं और इसीलिए ज्यादा मामले भी रिपोर्ट कर रहे हैं. हमें और टेस्ट करने चाहिए. जाहिर है, ये महाराष्ट्र के मामलों को लेकर कई कारणों में से एक कारण है.
डॉ ओम श्रीवास्तव

डॉ कलंत्री टेस्टिंग को लेकर दो चीजें बताते हैं.

"एक तो ये कि आपको टेस्ट की जरूरत नहीं क्योंकि बीमारी फैल चुकी है और ज्यादा लोग संक्रमित हैं. 80 प्रतिशत लोगों में कोई लक्षण नहीं होंगे इसलिए लोगों में हर्ड इम्युनिटी डेवलप होने दिया जाए. हमें उन लोगों को बचाने पर ध्यान देना चाहिए, जो इसे झेलने में कमजोर हैं."

"दूसरा ये कि टेस्टिंग महत्वपूर्ण है जैसा कि WHO ने भी स्पष्ट किया है. कई देशों खासतौर से दक्षिण कोरिया ने व्यापक टेस्टिंग जल्द शुरू की और मामलों की पहचान करने, अलग करने, इलाज करने और कर्व को जल्द फ्लैट कर लिया."

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महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है, जहां संक्रमण वाले जोन की पहचान कर टेस्ट किया गया. 14 अप्रैल को BMC ने कन्टेनमेंट जोन को 241 से बढ़ाकर 383 कर दिया.

डॉ श्रीवास्तव के मुताबिक महाराष्ट्र इतना प्रभावित क्यों हैं, इसके लिए डेथ ऑडिट की जरूरत होगी. इसके लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी बनाई जानी चाहिए.

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