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रोगों के इलाज में कितनी मददगार है म्यूजिक थेरेपी?

भारतीय संगीत में हाई बीपी, लो बीपी, एसिडिटी और कब्ज जैसी समस्याओं से आराम के लिए कई राग हैं.

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क्या आपने कभी म्यूजिक सुनते हुए मैथ्स के प्रॉब्लम सॉल्व किए हैं? जॉगिंग या एक्सरसाइज के दौरान कोई म्यूजिक ट्रैक प्ले करना, कुकिंग हो या घर की साफ-सफाई, नहाना हो, खाना हो या कोई लंबा सफर. हमारे हर काम और हर सफर का साथी बनता है, संगीत. पर यहां बात सिर्फ आपके पसंद की नहीं है क्योंकि म्यूजिक का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के दौरान एक मददगार थेरेपी की तरह होता रहा है और आज भी हो रहा है.

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ऐसे कई अध्ययन भी सामने आ चुके हैं, जिनमें ये दावा किया गया है कि संगीत मन-मस्तिष्क के कई रोगों के निदान में मददगार है. म्यूजिक थेरेपी आज भले ही हमें नई लगे, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की थेरेपी सदियों से रही है.

म्यूजिक थेरेपी पर काम कर रहे एक्सपर्ट बताते हैं कि हिंदुस्तानी संगीत में हाइपरटेंशन, सिर दर्द, चिंता, नींद से जुड़ी दिक्कतें और यहां तक की पेट की समस्याओं से आराम पाने के लिए कई तरह के राग मौजूद हैं. यहां तक कि हम जाने-अनजाने खुद ही रोजाना म्यूजिक थेरेपी का इस्तेमाल करते हैं.

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म्यूजिक थेरेपी क्या है?

इंडियन म्यूजिक थेरेपी एसोसिएशन के अध्यक्ष टीवी साईराम म्यूजिक थेरेपी को नॉन इन्वेसिव मेडिकल इंटर्वेंशन बताते हैं.

आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ रचना खन्ना सिंह के मुताबिक म्यूजिक थेरेपी की अब काफी मदद ली जा रही है, खास तौर पर साइकोलॉजिकल बीमारियों में इसके फायदे देखे जा रहे हैं. एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर संगीत से दिमाग को शांति मिलती है, आराम मिलता है.

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बीमार मन-मस्तिष्क के लिए म्यूजिक थेरेपी

दिमाग से जुड़ी बहुत सी बीमारियों के निदान के तौर पर म्यूजिक थेरेपी प्रचलित हो रही है. चिंता, तनाव, गुस्सा, जीवन से निराशा, डिप्रेशन, आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों के इलाज में म्यूजिक थेरेपी की मदद ली जा रही है. पार्किंसन्स, अल्जाइमर और ऑटिज्म जैसी बीमारियां जिनका कोई निश्चित इलाज नहीं है, ऐसे मामलों में भी म्यूजिक थेरेपी के जरिए बेहतर परिणाम देखे जा रहे हैं. म्यूजिक थेरेपी के जरिए ज्यादातर मन-मस्तिष्क से जुड़ी दिक्कतें दूर करने की कोशिश की जाती है.
टीवी साईराम

म्यूजिक थेरेपिस्ट क्या करते हैं?

साईराम बताते हैं कि म्यूजिक थेरेपिस्ट सिर्फ मरीज के हालत की जांच नहीं करते, वे म्यूजिक बैकग्राउंड की भी जांच करते हैं ताकि मरीज के लिए सही शैली का संगीत बताया जा सके. इसलिए म्यूजिक की थोड़ी-बहुत जानकारी काफी नहीं है. इसके साथ ही ये भी देखना होता है कि किसी संगीत विशेष के प्रति मरीज की प्रतिक्रिया क्या है.

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मन-मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है संगीत?

हिंदुस्तानी संगीत में पेट की दिक्कतों के लिए भी कई तरह के रागों का जिक्र है.
संगीत में दिमाग को रेग्यूलेट करने की ताकत होती है
(फोटो: iStock)

थेरेपी के तौर पर म्यूजिक किस तरह से काम करता है, ये अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो सका है. वैज्ञानिक ये अच्छी तरह नहीं समझ पाए हैं कि संगीत मन और दिमाग के फंक्शन पर क्या और कैसे असर डालता है. लेकिन कई शोध में ये बात कही गई है कि म्यूजिक दिमाग के विभिन्न केंद्रों को सक्रिय करने में मदद करता है. इसे चिकित्सीय तौर पर शांतिदायक, तंत्रिकाओं के लिए आराम और आनंददायक माना जाता है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि संगीत में आपके दिमाग को रेग्यूलेट करने की ताकत होती है. जब हम पसंदीदा म्यूजिक सुनते हैं, तो फील गुड हार्मोन रिलीज होते हैं. म्यूजिक लाउड हो या सॉफ्ट शरीर में एंडॉर्फिन्स, डोपामाइन और सेरोटोनिन रिलीज होने से अच्छा फील होता है.
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क्या संगीत के प्रकार भी निर्भर करती है थेरेपी?

म्यूजिक थेरेपी में ट्रीटमेंट संगीत के प्रकार पर भी निर्भर करता है. टीवी साईराम के मुताबिक नाद सेंटर में इसके लिए उपयुक्त संगीत (appropriate music) शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिसे ट्रायल और एरर के जरिए निर्धारित किया जाता है. किसी को किस तरह के म्यूजिक से बेहतर परिणाम मिलेगा, इसमें थेरेपिस्ट के अनुभव का भी योगदान होता है.

कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत के कलाकार हमेशा से रागों की ताकत और असर के बारे में जानते थे. प्राचीन वैद्य तनाव कम करने के लिए कुछ राग जैसे दरबारी-कान्हड़ा, खमाज और पूरिया राग सुनने की सलाह देते थे. दिमाग से संबंधित कोई भी बीमारी हो, जैसे डिमेंशिया, डिप्रेशन, अनिद्रा, पागलपन, उन्माद, नकारात्मक भावनाएं, बेचैनी, तनाव और तंत्रिकाओं से जुड़ी कोई दिक्कत हो, इन्हें म्यूजिक से मैनेज किया जा सकता है. ये बीमार मन के लिए बेहतरीन थेरेपी है.
टीवी साईराम

साईराम बताते हैं कि हाई बीपी के मरीजों के लिए अहीर भैरव और तोडी जैसे रागों की सलाह दी जाती है. वहीं, लो बीपी में राग मालकौंस से फायदा होता है. गुस्से और मन में हिंसा की भावना पर काबू पाने के लिए कर्नाटक संगीत में कुछ राग महत्वपूर्ण हैं. यहां तक पेट से जुड़ी दिक्कतों में हिंदुस्तानी संगीत के कुछ रागों से आराम मिल सकता है. जैसे एसिडिटी के लिए राग दीपक, कब्ज के लिए गुणकली और जौनपुरी.

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टीवी साईराम फ्रेंच फीजिशियन डॉ अल्फ्रेड टॉमैटिस के अध्ययन का भी जिक्र करते हैं जिसके मुताबिक मोजार्ट म्यूजिक के जरिए उन लोगों में काफी सुधार देखा गया था, जिन्हें बोलने या कम्यूनिकेट करने में किसी तरह की दिक्कत होती थी. इन लोगों को 6-7 महीने तक रोजाना 1 घंटे मोजार्ट म्यूजिक सुनाया गया था.

एक और अध्ययन में ऐसा देखा गया कि कैंसर के जो मरीज किसी भी म्यूजिक थेरेपी में शामिल हुए, उनके चिंता, तनाव, डर और साथ ही दर्द में भी कमी आई. यहां तक कि सिर में किसी चोट के मरीज, वेंटिलेटर पर रहे मरीजों में भी म्यूजिक का फायदा देखा गया है. किसी दुर्घटना या स्ट्रोक की वजह से दिमाग के वो हिस्से जो काम करना बंद कर देते हैं, संगीत के जरिए उन्हें सक्रिय करने में मदद मिलती है.

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हेल्थकेयर में म्यूजिक थेरेपी को लेकर जारी है बहस

चिकित्सा क्षेत्र में म्यूजिक थेरेपी के महत्व को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. कुछ एक्सपर्ट हेल्थकेयर में म्यूजिक थेरेपी को महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन जरूरी नहीं. वहीं कुछ म्यूजिक थेरेपिस्ट का मानना है कि म्यूजिक इंसान का स्वाभाविक हिस्सा है. हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से म्यूजिकल है, चाहे सांस लेना हो या हमारे दिल की धड़कन, ये सब एक लय में होता है. हर उम्र के लोगों में म्यूजिक के फायदे नजर आते हैं.

डॉ रचना खन्ना स्पष्ट करती हैं कि मन को शांत करने या बेहतर फील करने के लिए म्यूजिक का इस्तेमाल होता रहा है, ये कोई ट्रीटमेंट नहीं है, बल्कि एक टूल है, जो ट्रीटमेंट में मददगार होता है.   

टीवी साईराम का मानना है कि इस विषय पर गहन अध्ययन और शोध की जरूरत है. हमारे पास बेहतरीन राग प्रणाली है, लेकिन हमने अब तक इनका पूरा इस्तेमाल नहीं किया है. हमने रागों का प्रयोग सिर्फ मनोरंजन के लिए किया है, बल्कि इनके चिकित्सीय पक्ष पर भी काम होना चाहिए. इसके लिए यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों को आगे आकर बड़े स्तर पर वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिए.

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फिलहाल आपको जिस तरह का म्यूजिक पसंद हो, उसका मजा लीजिए और चाहें तो म्यूजिक थेरेपी से जुड़े टीवी साईराम के इन टिप्स पर भी गौर करके देखिए.

  • कोई भी संगीत पूरे दिल से सुनें.
  • म्यूजिक को एन्जॉए करें. उसका विश्लेषण न करें.
  • दिन में चार बार करीब 15 मिनट तक अच्छा संगीत सुनें.
  • म्यूजिक के साथ ड्राइविंग, खाना, नहाना, या खाना बनाना और मनोरंजक बनाएं.
  • कोई राग सिर्फ सुनने की बजाए खुद भी गाएं या बजाएं.
  • कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट चलाना सीखें.
  • बच्चों में संगीत सुनने की आदत डलवाएं.
  • बीमार शख्स के पास ऐसा संगीत चलाएं, जिससे उसे सुकून मिले.
  • घर पर अच्छे म्यूजिक की एक लाइब्रेरी तैयार करें.

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