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बिना रेमडेसिविर 5000 मरीजों को ठीक करने वाले डॉक्टर से खास बातचीत

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कोरोना महामारी के इलाज में रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग काफी बढ़ी है और इस वजह से इस दवा की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी हुई. लेकिन महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखडे तालुका मे डॉ. रवि आरोले ने 5 हजार से ज्यादा कोरोना मरीजों को बिना रेमडेसिविर इंजेक्शन के ठीक कर दिया.

पूरे देश में कोविड के इलाज में रेमडेसिविर एक जीवन रक्षक दवा मानी जा रही है. लेकिन इस दवा के बेहिसाब इस्तेमाल पर डॉ. रवि आरोले ने गंभीर सवाल उठाए हैं.

रेमडेसिविर के इस्तेमाल पर डॉ रवि आरोले ने क्यों जताई आपत्ति?

डॉ रवि आरोले ने कहा कि शहरों में मरीज इलाज करवाने जल्दी आ जाते हैं लेकिन गांवों में देरी से आते हैं. तीन से सात दिनों में ही रेमडेसिविर का इस्तेमाल परिणामकारक होता है. बिना लक्षण के 85% लोगों को इसकी जरूरत नहीं होती. वो सामान्य दवाई से ठीक हो सकते हैं. हमें ऐसा बिल्कुल नहीं दिखा की मरीज इस दवाई की वजह से बच सकते हैं. इसलिए जुलाई 2020 में हमने उसका इस्तेमाल बंद कर दिया.

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पिछले साल जून 2020 से 1 अप्रैल 2021 तक मृत्यु दर 0.65 % रही. नया स्ट्रेन खतरनाक है बावजूद उसके हमने रेमडेसिविर इस्तेमाल नहीं करते हुए मृत्यु दर को 1% से कम रखा है.
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अन्य डॉक्टर्स को सलाह

डॉक्टर ने कहा कि, ये राष्ट्रीय संकट का समय है. इस स्थिति में गलत तरीके से पैसे बनाना देशद्रोह है. सभी मेडिकल संगठनों को मिलकर इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए. हमारे पास जो स्किल सेट है उसका गलत इस्तेमाल होना बिल्कुल सही नहीं है.

आम आदमी क्या करे?

डॉक्टर रवि का कहना है कि आम आदमी को जागरुक रहना होगा. लोगों को समझना होगा कि इस दवाई की इतनी जरूरत नहीं है. ICMR और AIMMS की गाइडलाइन्स में रेमडेसिविर के बारे में कहीं पर भी नहीं लिखा है. उसका एक विंडो होता है लेकिन ये दवाई देनी ही चाहिए ऐसा बिल्कुल नहीं है. ये एक ट्रेंड बन गया है, जैसे पहले N95 मास्क, फिर HCQ's दवाइयां और अब रेमडेसिविर और टॉक्सिलिजुमैब इन महंगी दवाइयों का ट्रेंड सा आया है. इसका शॉर्टेज होने तक ये ट्रेंड लोगों में बनाया जाता है.

क्या है सहज लाइन ऑफ ट्रीटमेंट ?

उन्होंने बताया कि, 85% मरीजों को तो ठीक होना ही है. बाकी हल्के लक्षण वाले पैरासिटेमोल दवाई से भी ठीक हो जाते हैं. बाकी 15% की लाइन ऑफ ट्रीटमेंट कब शुरू करनी है वो उसकी हालत पर निर्भर करता है. 93% तक ऑक्सीजन हो तो भी ऑक्सीजन सपोर्ट लगाना गलत है.

शरीर को खुद से प्रतिकार करने का मौका देना चाहिए. इससे ज्यादा गंभीर मरीजों का भी सप्लीमेंट्री ऑक्सीजन से इलाज कर सकते हैं या फिर डेक्सामेथेसोन दवाई जैसे सस्ते इलाज भी हैं. कम से कम सात और ज्यादा से ज्यादा 15 दिनों में क्रिटिकल मरीज भी इस लाइन ऑफ ट्रीटमेंट से ठीक हो जाते हैं.

कोरोना से क्यों हो रही है मौतें?

डॉ रवि आरोले के अनुसार, कोरोना महामारी में इन तीन चीजों की वजह से मौतें हो रही हैं-

  • मरीज अस्पताल आने में बहुत देर कर देते हैं तब तक इंफेक्शन लंग्स तक फैल गया होता है.

  • मेडिकल मिस-मैनेजमेंट और गैर जरूरी दवाइयों का बेहिसाब इस्तेमाल. इस वजह से मरीजों को काफी तकलीफ होती है और जान चली जाती है.

  • कई सारी बीमारियां होती है तो शरीर बीमारी के खिलाफ लड़ने में साथ नहीं देता जिसके वजह से भी मौतें होती हैं.

बता दे डॉ. रवि आरोले और उनकी बहन डॉ. शोभा आरोले उनके जूलिया अस्पताल में ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के तहत ग्रामीण इलाके के लोगों का मुफ्त में इलाज करते हैं. कोरोना महामारी के इस वक्त में उन्होंने हजारों मरीजों को किसी भी महंगी दवाई के बिना ठीक किया है.

उनके स्वर्गीय पिता डॉ. श्रीकांत आरोले ने 1979 से महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के गरीब लोगों के लिए काम करना शुरू किया था. उन्हें रैमन मैग्सेसे, मदर टेरेसा और पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. डॉ. रवि और शोभा उनके पिता के सामाजिक कार्य और परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

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