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कोरोना का सेकंड वेव है सबूत, हर्ड इम्युनिटी की थ्योरी थी गलत?

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भारत में कोरोनोवायरस इस साल संक्रमण में तेजी के नए रिकॉर्ड बना रहा है. सरकार पर वैक्सीन रोलआउट में तेजी लाने के लिए दबाव बढ़ रहा है और वहीं, देश के कुछ हिस्सों में हर्ड इम्युनिटी आ चुकी है, ऐसा उम्मीद कर चुके वैज्ञानिक अब दोबारा चिंतित हैं.

शुक्रवार, 26 मार्च को देश में कोविड-19 के रिकॉर्ड 59,118 नए मामले दर्ज किए गए, जो कि अक्टूबर 2020 के बाद से अब तक के सबसे ज्यादा दैनिक मामले हैं. पिछले 2 हफ्तों से मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

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नए मामलों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार महाराष्ट्र और पंजाब हैं. मुंबई में कोरोना के 5,504 नए मामले सामने आए हैं, जो इस साल एक दिन के अब तक के सबसे ज्यादा मामले हैं. बढ़ते मामले को देख BMC ने गुरुवार को चेतावनी दी कि आने वाले समय में एक दिन का आंकड़ा 10,000 के आसपास तक पहुंच सकता है. फिलहाल संक्रमण दर 12% है, संक्रमित रोगी 84% हैं.

वैज्ञानिक ये स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि किस वजह से ये बढ़त हो रही है. पिछले साल के व्यापक संक्रमण के बाद ये अनुमान लगाया जा रहा था कि भारत के कुछ हिस्सों में हर्ड इम्युनिटी आ चुका है. लोगों को भी लग रहा था कि वैक्सीन लगवाने से पहले ही शायद हर्ड इम्युनिटी आ जाए और कोरोना वायरस से बचाव हो जाए.

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नवंबर 2020 में ही एक इंटरव्यू में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया तक ने कहा था-

“वैक्सीनेशन के दौरान एक समय ऐसा आएगा, जब हम हर्ड इम्युनिटी पा लेंगे और लोग भी महसूस करेंगे कि उनमें इम्युनिटी आ गई है. ऐसी स्थिति में वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी. एक महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि वायरस में कैसे परिवर्तन आता है और लोगों को दोबारा संक्रमित कर सकता है या नहीं. हम अभी जांच ही कर रहे हैं कि आने वाले कुछ महीनों में वायरस कैसे व्यवहार करेगा और उसी के आधार पर कोई फैसला लिया जा सकता है कि कितनी जल्दी-जल्दी वैक्सीन लगाने की जरूरत पड़ेगी.”
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अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर, डॉ. शाहिद जमील जो एक वायरोलॉजिस्ट भी हैं- वो कहते हैं,

“भारत में हम हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन हमने इसे अचीव नहीं किया. मामलों में बढ़त भी यही बता रहा है कि ऐसा नहीं हुआ. बड़े शहरों के सर्वे ने 50-60 % सीरोपॉजिटिविटी दिखाई, छोटे शहरों में 30% और पूरे भारत की बात करें तो 20%.”
डॉ. शाहिद जमील

एक्सपर्ट्स के मुताबिक शादियों का मौसम, अनलॉक के दौरान लापरवाही, सामाजिक दूरी की कमी, यात्रा और प्रोटोकॉल का पालन नहीं होना कोरोना केस में बढ़त की एक बड़ी वजह रही.

इसके अलावा कोविड-19 के नए वैरिएंट और संभवत: दोबारा संक्रमण भी कोरोना केस में बढ़त के कारण हो सकते हैं.

“हमारे पास पर्याप्त या अच्छी गुणवत्ता वाले जीनोमिक सर्विलांस टेस्टिंग नहीं है. मुझे लगता है कि ये एक वैरिएंट से जुड़ा मुद्दा है और हमें अभी महाराष्ट्र और विशेष रूप से नागपुर में क्या हो रहा है, इससे बहुत सावधान रहने की जरूरत है.”
डॉ स्वप्निल पारिख, इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट और ‘The Coronavirus: What You Need to Know About the Global Pandemic’ किताब के लेखक
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सितंबर में पीक पर, भारत में एक दिन में करीब 100,000 नए संक्रमण के मामले दर्ज हो रहे थे. दिसंबर और जनवरी में किए गए एक राष्ट्रव्यापी सीरोप्रेवलेंस सर्वे से पता चला कि हर पांचवें भारतीय में एंटीबॉडी है, अन्य स्टडी से पता चला कि पुणे, बैंगलुरु जैसे मेट्रोपोलिज में एक्सपोजर कहीं अधिक था.

डॉ पारिख कहते हैं कि पुणे, मुंबई, नागपुर में कोरोना के मामलों में परेशान करने वाली बढ़त देखी जा रही है, नागपुर का डेटा विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि सीरो के अध्ययन से संकेत मिलता है कि शहर के कुछ हिस्सों में 50-75% के बीच हाई सीरोपॉजिटिविटी थी. इसका मतलब है कि एक बड़ी आबादी में एंटीबॉडी है और वो पहले से ही संक्रमित हो चुकी थी.

बता दें, महाराष्ट्र के आधे से ज्यादा जिलों में सितंबर के पीक के मुकाबले अब केस रेट ज्यादा है. नागपुर, जो लॉकडाउन में वापस चला गया है, हर दिन प्रति 100,000 लोगों पर 67 नए मामले दर्ज कर रहा है - राज्यभर के केस रेट से 3 गुना से भी ज्यादा. वहां हर 10 दिनों में मामले दोगुने हो रहे हैं.

फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में इम्पीरियल कॉलेज लंदन में मैथेमेटिकल एपिडेमियोलॉजी में रीडर- निमलन अरिनमिनपैथी के मुताबिक

“ये संभव है कि इम्युनिटी कम हो गई हो और संक्रमण संख्या में बढ़त री-इंफेक्शन का मामला हो. शायद महामारी राज्यों के उन हिस्सों को प्रभावित कर रही हो, जो पहली लहर के दौरान कम प्रभावित थे.”
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वहीं, शाहिद जमील कहते हैं कि पुणे, नागपुर जहां हाई सीरोपॉजिटिविटी पाई गई- वो क्लस्टर वाले क्षेत्र थे , ऐसा भी हो सकता है कि जिन क्लस्टर में पहले ज्यादा मामले देखे गए उन्हें छोड़कर बाकी इलाकों में अब केस दिख रहे हों.

इसके अलावा, 24 मार्च को, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि इंडियन SARS-CoV-2 कंसोर्टियम ऑन जीनोमिक्स (INSACOG) द्वारा की गई जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए भारत में वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न (VOCs) और एक नए डबल म्यूटेंट वेरिएंट की पहचान की गई है.

भारत में नए डबल म्यूटेंट वेरिएंट के बारे में डॉ शाहिद जमील बताते हैं, "E484Q नाम का म्यूटेशन एक नया कॉम्बिनेशन है, जिसे देखा नहीं गया था और ये सिक्वेंस किए जा रहे 15-20% मामलों में पाया गया है."

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी कहा गया है कि भले ही वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न और एक नया डबल म्यूटेंट वेरिएंट भारत में पाया गया है, लेकिन ये इतनी ज्यादा संख्या में नहीं मिला है कि कुछ राज्यों में बढ़ रहे मामलों से इसका संबंध जोड़ा जा सके.

डॉ. जमील कहते हैं, "दक्षिण भारत में एक और म्यूटेशन है. ये सभी म्यूटेशन वायरस की सतह के क्षेत्र में हैं, जहां एंटीबॉडीज वायरस को बेअसर करने के लिए बंधते हैं, इसलिए इसका प्रभाव होगा."

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी कहा गया, “5-6% म्यूटेशन सामान्य है. लेकिन जब ये सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है या इससे ट्रांसमिशन में वृद्धि होती है, तो ये चिंताजनक हो सकता है.”

कस्तूरबा हॉस्पिटल में मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ एस.पी कलंत्री का कहना है कि वर्धा में, जो कि नागपुर से करीब 76 किलोमीटर दूर है, वायरस 2 चिंताजनक संकेत दिखा रहा है: “पहला, ज्यादा उम्र के लोग संक्रमित हो रहे हैं और दूसरा, ये पिछली बार की तुलना में ज्यादा संक्रामक है. अब पूरा परिवार और पड़ोस संक्रमित हो रहा है. वर्धा में भी 29% सीरोपॉजिटिविटी रही. 3 में से 1 लोगों ने एंटीबॉडी विकसित की, लेकिन फिर भी संख्या ज्यादा है.

डॉ पारिख कहते हैं कि मामलों में तेजी से ज्यादा, वो इस बात से बेहद चिंतित हैं कि ये तेजी हाई सीरोप्रिवलेंस वाले क्षेत्रों में हो रही है. यानी जहां अनुमान था कि हर्ड इम्युनिटी पाना आसान है, वो इलाके ज्यादा प्रभावित हैं.

हालांकि, डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स का मानना है कि एक राहत की बात ये है कि मामलों में आई तेजी के साथ कोरोना से मौत के मामले और अस्पतालों में भर्ती होने के मामले उतनी तेजी से नहीं आए हैं.

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