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डिमेंशिया: क्या मुमकिन है इलाज और रोकथाम?  

हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं

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पूजा के दादाजी किसी को नहीं पहचानते, उन्हें खुद पता नहीं होता कि वो क्या करते हैं. कमरे में अकेले रहते हैं, किसी से बात नहीं करते, चल नहीं पाते, बिस्तर या व्हील चेयर पर ही रहते हैं. उन्हें डिमेंशिया है, उनका दिमाग सामान्य तरीके से काम नहीं करता. डॉक्टर कहते हैं कि ये डिमेंशिया का लेट स्टेज है, इसे ठीक नहीं किया जा सकता.

डिमेंशिया है क्या?

डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश. डॉक्टरों के मुताबिक डिमेंशिया कोई एक बीमारी नहीं है बल्कि बीमारियों का लक्षण है. ऐसी बीमारियां जो मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं. जिससे मस्तिष्क के कुछ काम जैसे याददाश्त, किसी की बात समझना, किसी समस्या का हल सोचना, बोलना, ये क्षमताएं क्षीण होती जाती हैं और आदमी का दिमाग काम करना बंद कर देता है या सामान्य से कम काम करता है. इस मानसिक क्षीणता की गति धीमी भी हो सकती है या तेज भी हो सकती है.

हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं.
डिमेंशिया में मरीज रोजाना के काम नहीं कर पाता, फैसले नहीं ले पाता, पढ़-लिख नहीं पाता, उसके व्यक्तित्व और बर्ताव में बदलाव आ जाता है.
डॉ मंजिरी त्रिपाठी, एम्स
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डिमेंशिया से जुड़ी वो बात, जो चिंतित करती है

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) कहता है कि पूरी दुनिया में करीब 5 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं. हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं. दुनिया की जनसंख्या जैसे-जैसे उम्रदराज होगी, डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों की संख्या में तीन गुना इजाफा होने की आशंका भी जता दी गई है.

2050 तक 15.2 करोड़ लोगों के डिमेंशिया की चपेट में आने की आशंका है.
हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं.
उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है डिमेंशिया का खतरा
(फोटो:iStock)

अगर दुनिया भर में इतनी बड़ी तादाद पर डिमेंशिया का खतरा है, तो जाहिर है कि हमें इसके सटीक इलाज और बचाव के तरीके जानने होंगे. कोशिश ये होनी चाहिए कि हम डिमेंशिया से पीड़ित ही न हों और अगर इसका सामना करना भी पड़े तो हमें इससे कैसे निपटना है, ये पता हो.

कई न्यूरोलॉजिस्ट और मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि ज्यादातर मरीज इलाज के लिए तब आते हैं, जब समस्या काफी गंभीर हो जाती है. 
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अल्जाइमर और डिमेंशिया में अंतर

अक्सर अल्जाइमर को डिमेंशिया का पर्याय समझ लिया जाता है. लेकिन एम्स के डॉक्टर कामेश्वर प्रसाद के मुताबिक ऐसा बिल्कुल नहीं है. अल्जाइमर डिमेंशिया का सबसे आम कारण है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बुखार का कारण मलेरिया, टायफायड, वायरल, डेंगू, चिकुनगुनिया हो सकता है. उसी तरह डिमेंशिया लक्षण है, जिसके कई कारण हो सकते हैं.

इसका कारण कभी अल्जाइमर, वेस्कुलर डिमेंशिया, ल्यू बॉडी डिमेंशिया, फ्रंटोटेंपरल डिमेंशिया, किसी विटामिन की कमी, थायरॉयड, सिर पर चोट भी हो सकती है. डिमेंशिया का मुख्य कारण अल्जाइमर बीमारी है, जो बुढ़ापे में ज्यादा होती है.

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क्या लोग बुढ़ापे में ही डिमेंशिया से पीड़ित होते हैं?

हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं.

2010 में आई इंडिया डिमेंशिया की रिपोर्ट के मुताबिक जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है. 65 के बाद हर 5 साल इसका खतरा दोगुना हो जाता है.

अक्सर डिमेंशिया के लक्षणों को बीमारी नहीं बल्कि बुढ़ापे का असर समझ लिया जाता है और मरीज का इलाज ही नहीं कराया जाता.

हालांकि 30, 40 की उम्र में भी डिमेंशिया हो सकता है, जिसे जल्दी शुरू होने वाला डिमेंशिया कहते हैं.

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क्या डिमेंशिया का इलाज है?

डिमेंशिया दो तरह के होते हैं- एक ट्रीटेबल डिमेंशिया और दूसरा irreversible डिमेंशिया, जिसमें मस्तिष्क के न्यूरॉन्स धीरे-धीरे डिजेनरेट होते हैं. डिजेनरेटिव डिमेंशिया ठीक नहीं होता, लेकिन अब कई दवाइयां मौजूद हैं, जिससे स्थिति सामान्य बनाई जा सकती है और लंबे अरसे तक सामान्य स्थिति रह सकती है.

...तो संभव है इलाज

जांच से पहले ये पता करना जरूरी होता है कि डिमेंशिया हुआ क्यों. अगर कारण स्पष्ट हो जाए तो कई मामलों में इलाज संभव है. जैसे अगर डिमेंशिया का कारण विटामिन बी 12 की कमी है, तो उसका इंजेक्शन देकर इलाज किया जा सकता है. कारण अगर थायरॉयड है या सिर पर लगी चोट है, तो इनका इलाज किया जा सकता है.

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डिमेंशिया से बचने के लिए क्या करें?

डिमेंशिया पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है. ये बात कई शोध और अध्ययन में कही गई है. डॉक्टर्स का मानना है कि जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आपको कई बीमारियों से बचा सकता है.

इंडिपेंडेंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक एक नए शोध में 24 अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के पैनल ने माना है कि डिमेंशिया के एक तिहाई मामलों की रोकथाम स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर की जा सकती है.

1. सक्रियता यानी एक्टिविटी

डिमेंशिया से बचने के लिए जरूरी है कि आप शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहें. अपने ब्रेन को यूज करें. पहेली, शब्दों और संख्याओं का खेल, नई चीजें सीखकर मानसिक रूप से सक्रिय रहें.

व्यायाम और योग से वजन पर नियंत्रण रखें. इससे बीपी ठीक रहेगा, डायबिटीज, हार्ट की बीमारियों से भी रक्षा होगी. तनाव नहीं होगा.

कुलमिलाकर शारीरिक और मानसिक सक्रियता ही इन अक्षमताओं से बचने में मदद करती है.

हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं.

जीबी पंत अस्पताल में मनोविज्ञान विभाग के डॉ देबाशीष चौधरी एक कार्यक्रम में कहते हैं:

दिमाग भी मांसपेशियों की तरह ही है, जिसका व्यायाम करना जरूरी है. आराम करने का मतलब ये नहीं है कि आप दिमाग से आराम करें. 
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2. सामाजिक संपर्क

ऐसा देखा गया है कि डिमेंशिया से पीड़ित लोग समाज से कट जाते हैं. अकेलेपन और उदासी में रहने लगते हैं. इसलिए डिमेंशिया से बचने के लिए जरूरी है कि आप समाज में लोगों से जुड़े रहें. परिवार, दोस्तों से बातचीत करें.

अल्जाइमर्स एसोसिएशन इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस (AAIC) 2017 में पेश किए गए रिपोर्ट में डिमेंशिया से बचने के लिए सामाजिक सहभागिता का जिक्र किया गया था.

हर साल डिमेंशिया के करीब 1 करोड़ नए मामले सामने आते हैं.

3. स्वस्थ जीवनशैली और खानपान

अपने खानपान में सैचुरेटेड फैट की मात्रा कम करिए. फल-सब्जी विशेष रूप से हरी पत्तेदार सब्जियां अपने आहार में शामिल कीजिए. जिससे विटामिन बी 12 और फोलिक एसिड की कमी न हो. इतना खाइए कि वजन जरूरत से ज्यादा न बढ़ जाए. शराब और धूम्रपान से बचिए.

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4. जरूरी है पूरी नींद

सभी के लिए समय पर सोना और उठना, साथ में पूरी नींद लेना जरूरी है. डॉक्टर राजेश रस्तोगी के अनुसार शरीर के सामान्य फंक्शन और दिमाग को आराम देने के लिए नींद बहुत जरूरी है.

5. किसी भी बीमारी के प्रति लापरवाही न बरतें

कई बीमारियां ब्रेन को प्रभावित करती हैं. इसलिए हाई बीपी, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल का ध्यान रखकर इसका खतरा कम किया जा सकता है. कई शोधों से साबित हुआ है कि डायबिटीज, हाइपर टेंशन, लिपिड्स की वजह से स्ट्रोक्स का खतरा होता है, जिससे दिमाग के हिस्सों को क्षति पहुंचती है. इस वजह से भी डिमेंशिया का जोखिम बढ़ जाता है.

(इनपुट- आईएएनएस, इंडिया डिमेंशिया रिपोर्ट 2010, विश्व स्वास्थ्य संगठन)

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