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रिजेक्शन से कैसे निपटें, जानिए सही तरीके से इसका सामना करना

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रिजेक्शन किसी भी रूप में हमारे सामने आ सकता है, अपेक्षित और अप्रत्याशित माध्यम से, काम में या प्यार में कहीं से भी आ सकता है.

लेकिन ये हर बार, दिल तोड़ने वाला हो सकता है.

हम सभी इससे गुजरे हैं. किसी कॉलेज का एडमिशन फॉर्म हो, ‘अगले साल फिर से कोशिश करें’, यह बताते हुए एक ई-मेल कि हमें यह नौकरी नहीं दी जा रही, या किसी दोस्त या साथी का आम सा टेक्स्ट मैसेज ‘काम नहीं हो पाएगा.’

इन सभी रूपों में, अस्वीकृति के बाद अक्सर हमें भविष्य को लेकर धुंधली आशा और निराशा की सहज भावना घेर लेती है. हम आत्म-विरोधी विचारों की श्रृंखला से घिर जाने से खुद को कैसे बचाएं? फिट ने इस दौर का सामना करने का रास्ता बताने के लिए मनोवैज्ञानिकों से बात की.

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अस्वीकृति हमारे ‘आत्मसम्मान’ पर असर डालती है

फिट से बात करते हुए, नई दिल्ली के अपोलो अस्पताल में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ राखी आनंद ने बताया कि कैसे हम रिजेक्शन के कारण खुद पर सवाल उठाते हैं. “रिजेक्शन एक भारी नकारात्मक भावना है जो अक्सर अकेलापन, अवसादग्रस्त मनोदशा और व्यर्थता की भावना पैदा करती है.”

“ज्यादातर लोग इसे स्वस्थ तरीके से नहीं लेते हैं, यह खुद पर संदेह को बढ़ाता है, जो हमारे व्यवहार और तरक्की पर और ज्यादा असर डालता है. इससे नकारात्मक विचारों का एक दुष्चक्र शुरू हो सकता है, जो अंत में, चरम स्थितियों में खुद को चोट पहुंचाने की कोशिश तक जा सकता है.”
डॉ राखी आनंद

ये अनुभव और एहसास जो अस्वीकृति के बाद आते हैं, शोध भी इनकी पुष्टि करते हैं. उदाहरण के लिए, 2015 का एक शोधपत्र उन सात भावनाओं की पड़ताल करता है, जब लोगों को अस्वीकृति या अस्वीकृति की संभावना का सामना करना पड़ता है: आहत भावनाएं, ईर्ष्या, अकेलापन, शर्म, अपराधबोध, समाज की चिंता और शर्मिंदगी.

“क्या मैं पर्याप्त नहीं हूं?”
(फोटो: iStock)
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इस पेपर के लेखक टिप्पणी करते हैं, “तथ्य यह है कि इंसानी जज्बात का एक बड़ा हिस्सा पारस्परिक संबंधों को बनाए रखने के लिए समर्पित है, जो इंसानी मामलों में स्वीकृति और जुड़ाव का महत्व बताते हैं. लोग स्वाभाविक रूप से अन्य लोगों द्वारा महत्व दिए जाने और स्वीकार किए जाने के लिए प्रेरित होते हैं और कई भावनाएं जो वे अनुभव करते हैं, इन बुनियादी पारस्परिक चिंताओं को दर्शाती हैं.”

फोर्टिस हेल्थकेयर में मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंस की प्रमुख डॉ कामना छिब्बर कहती हैं, असल में, यह सब एक सवाल पर खत्म होता है, क्या हम सच में नकारात्मक अनुभवों का सामना करने के लिए तैयार हैं?

अक्सर लोग बिल्कुल नहीं जानते कि नाकामी का कैसे सही तरह से सामना किया जा सकता है. और जब इससे सामना होता है, तो यह उन्हें और बुरी तरह प्रभावित करती है क्योंकि वे अस्वीकृति की तरह-तरह की व्याख्याएं बनाने लगते हैं. इनमें आमतौर पर अपना खुद का नकारात्मक मूल्यांकन भी शामिल है, वे किस तरह के व्यक्ति हैं, या यह है कि एक इंसान के तौर पर उनके साथ कुछ बहुत गड़बड़ है.
डॉ कामना छिब्बर

इन भावनाओं को अक्सर सोशल मीडिया पर भारी निर्भरता के चलते बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और यह लोगों की हमारे बारे में धारणा को लेकर जैसा हम महसूस करते हैं, उस पर असर डालना है. वह कहती हैं, “तुलना, लाइक्स की संख्या, कमेंट्स और एंगेजमेंट, यह सब कुछ हमारे आत्म-मूल्य (हमारी नजर में हमारी कीमत) और आत्मविश्वास को बदल देते हैं. वह अस्वीकृति की एक ‘कल्पित’ भावना पैदा कर सकता है जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर वैसा वास्तविक असर डाल सकती है, जैसा कि वास्तविक अस्वीकृति के रूप में होता.

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खुद को समझने के लिए समय दें और फिर होने दें जो होता है

खुद से सवाल पूछें, मैं इससे क्या सीख सकता/सकती हूं?
(फोटो: iStock)

डॉ छिब्बर सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर वापस लौटने से पहले, अस्वीकृति के उस लम्हे और उसके बाद आने वाले दिनों में अपनी भावनाओं की स्वीकारोक्ति के महत्व की ओर इशारा करती हैं.

वह कहती हैं, “आपसे अचानक ठीक हो जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. आप जब सही मायने में अपनी भावनाओं को समझते हैं और खुद को उस पूरी प्रक्रिया से गुजरने की इजाजत देते हैं, तो इसके बाद ही रचनात्मक दृष्टिकोण अपना सकते हैं. लेकिन खुद को याद दिलाते रहें कि आप आगे बढ़ने के लिए ऐसा कर रहे हैं. मकसद यह है कि ये आपकी भावी अपेक्षाओं पर अमिट छाप न छोड़े.”

एक बार जब आप अपने आप को यह समय और मौका देते हैं, तो हालात को ज्यादा निष्पक्ष रूप से देखने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण की दिशा में काम करना शुरू करें, और अंततः इससे सबक सीखें.

जब आप ऐसे हालात में होते हैं, तो आपको पीछे हटकर पूरे हालात पर व्यापक दृष्टि डालने की जरूरत होती है. अस्वीकृति में आपके द्वारा निभाई गई भूमिका का संकीर्ण और आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के बजाय, ज्यादा समग्र दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश करें. खुद से भी सवाल पूछें, मैं इससे क्या सीख सकता हूं? आप इसे रचनात्मक अनुभव में बदल सकते हैं, ताकि अगली बार चीजों को अलग तरीके से कर सकें.
डॉ कामना छिब्बर

वह आगे कहती हैं, “अगर यह खुद अकेले करना मुश्किल है, तो दोस्त या परिवार के सदस्य से दिल की बात करनी चाहिए और बाहरी नजरिया हासिल करना फायदेमंद हो सकता है.”

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इसी तरह की बात डॉ राखी आनंद करती हैं, “यह हमेशा जरूरी है कि हालात का ज्यादा सकारात्मक रूप से आकलन किया जाए. आसपास की नकारात्मक प्रतिक्रियाएं हमेशा सही नहीं हो सकती हैं और हालात का अधूरा प्रतिबिंब हो सकती हैं. अपनी खुद की ताकत का आकलन करते रहना और अपने आत्मसम्मान को मजबूत करना जरूरी है.”

यह खासतौर से उस समय में महत्वपूर्ण है, जिसमें हम रह रहे हैं. एक वैश्विक महामारी ने हमारी दुनिया को झकझोर दिया है. आर्थिक मंदी के साथ, नौकरियां जाना और कई मामलों में, परिवार के सदस्यों से मनमुटाव से हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव इतना ज्यादा है, जितना कभी नहीं था.

डॉ छिब्बर कहती हैं इन हालात में, “हम सभी अलग-अलग रूपों में अस्वीकृतियों से जूझ रहे हैं. चाहे वह वित्तीय अस्थिरता, नौकरियों का जाना या रिश्ते से जुड़ी समस्याएं हों, खुद को यह याद दिलाना जरूरी है कि यह वक्ती दौर है और यह जल्द गुजर जाएगा. वर्तमान पर ध्यान दें, आस-पास देखें, आपके पास जो कुछ भी है उसका शुक्रिया अदा करें और उन चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करें, जिन पर आपका थोड़ा नियंत्रण है.”

अपने ख्यालों को यह सोचने में भिड़ा देना बहुत आसान है कि भविष्य में क्या होगा. खुद को जमीन पर टिकाए रखने की दिशा में काम करें और थोड़ी उम्मीद कायम रखें. अगर आप अस्वीकृत कर दिए जाते हैं तो उखड़े मूड, संकट या चिंता को गले लगाएं, लेकिन यह भी समझें कि यह सामान्य है और हर कोई इससे गुजरता है. कोशिश करें और इसे सबक सीखने और समझदार बनने के मौके के रूप में इस्तेमाल करें.
डॉ कामना छिब्बर

वह कहती हैं, “सब कुछ होने के बावजूद, अपने आप को मजबूत समर्थन व्यवस्था के बीच और ऐसे लोगों के साथ रखें जो आपकी भावनाओं को समझने करने में आपकी मदद कर सकते हैं.”

ऐसे मामलों में सकारात्मक दृष्टिकोण और समाधान-केंद्रित दृष्टिकोण रखना सबसे जरूरी है. डॉ राखी आनंद इसे इन शब्दों में समेटती हैं, “हालात का पुनर्मूल्यांकन करना, ऊंचे स्तर का लचीलापन रखना और बदलाव को जिंदगी के उतार-चढ़ाव के रूप में स्वीकार करना जरूरी है.”

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