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Antidepressants: ज्यादातर लोग डिप्रेशन की दवाइयों के खिलाफ क्यों होते है?

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(चेतावनीः इस लेख में सुसाइड और अवसाद की बात की गई है. अगर आपको सुसाइड के ख्याल आते हैं या किसी के बेचैन रहने के बारे में पता चलता है तो उससे सहानुभूति से पेश आएं और लोकल इमरजेंसी सर्विस, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ पर काम करने वाले एनजीओ के इन नंबरों पर कॉल करें.)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अवसाद को दुनिया भर में असमर्थता की बड़ी वजह मानता है और एक आकलन के मुताबिक 5 फीसद वयस्क अवसाद (depression) से पीड़ित हैं.

COVID-19 महामारी ने भी इसकी कई वजहों को जन्म दिया है. ऐसे लोग जिन्होंने कभी अवसाद का सामना नहीं किया, वे पहली बार इसका सामना कर रहे हैं. दूसरे लोग जो पहले से अवसाद से पीड़ित थे वे बीमारी के नए स्तर पर पहुंच रहे हैं.

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दुनिया भर में करीब 28 करोड़ लोगों को अवसाद है और यह सिर्फ एक झलक भर है. यह इतना ही आम हो चुका है.

टॉक थेरेपी (Talk therapy) तो ठीक है, मगर लोग इसके इलाज में मदद के लिए दवाइयां लेने से हिचकिचाते हैं.

कौन सी बात हमें दवा लेने से रोकती है?

ऐसी अफवाहें हैं कि इनकी लत पड़ जाती है, ये आपके दिमाग की केमिस्ट्री को बिगाड़ देती हैं, इनके बुरे साइड इफेक्ट हैं, इनसे सेक्स की ख्वाहिश का खात्मा हो जाता है– ये सभी डर, हिचक और गलत समझ को बढ़ावा देते हैं, जो हम मेडिसिन और मानसिक बीमारियों के बारे में बनाते हैं.

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क्या चीज लोगों को डिप्रेशन की दवाइयां लेने से रोकती है?

अनुष्का को जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर (generalised anxiety disorder) और सोशल एंग्जाइटी (social anxiety) का पता चला है, लेकिन उनका कहना है कि वह मेडिसिन लेने को लेकर हिचकिचा रही थीं.

वह बताती हैं,

“पहली बात, मुझे इसकी लत लग जाने और साइड इफेक्ट का डर था. दूसरी बात, दवाएं एंग्जाइटी का इलाज नहीं करती हैं, वे केवल इसे शांत करने में मदद करती हैं. मैं मेडिसिन का सहारा लेने से पहले अपनी एंग्जाइटी को ठीक करने के लिए थेरेपी और अन्य नॉन-मेडिकल तरीके आजमाना चाहती थी.”

वह आगे कहती हैं, “भला यह भी कोई बात है कि मनोचिकित्सक ने मेरे साथ सिर्फ आधे और एक घंटे की फोन कॉल के बाद मेडिसिन तय कर दी.”

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श्रेया को PMS (प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम) के दौरान सुसाइड के ख्याल आते थे, लेकिन कहती हैं कि वह असल में कभी भी एंग्जाइटी की एलोपैथिक मेडिसिन नहीं लेना चाहती थीं, यहां तक कि “सबसे बुरे दौर में” भी नहीं.

वह कहती हैं,

“मैंने सुना है कि ये आपके दिमाग को बर्बाद कर देती हैं. मेरा एक दोस्त इन्हें लेता है. इससे उसको फायदा हुआ, लेकिन एक तरह से नुकसान भी हुआ.”

श्रेया ने, जिन्हें बॉर्डरलाइन एंग्जाइटी (borderline anxiety) है, आयुर्वेदिक मेडिसिन ली क्योंकि यह उन्हें सेहत के लिए ज्यादा अच्छा विकल्प लगता है. दवा की बजाए थेरेपी भी उनकी एंग्जाइटी पर काबू पाने में मददगार साबित हुई.

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एंटीडिप्रेसेंट को लेकर प्रचलित गलत धारणाएं

लोगों में यह गलत सोच है कि हर मानसिक बीमारी अवसाद है.

(फोटो: आर्णिका काला/फिट)

एंटीडिप्रेसेंट को लेकर हकीकत जितना दिखती है, उससे कहीं ज्यादा जटिल है.

मरीज के स्तर पर, समाज के स्तर, डॉक्टर के स्तर और पारिवारिक स्तर की धारणा इलाज में बड़ी अड़चन के तौर पर काम कर सकती है.

कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. आशीष कुमार मित्तल बताते हैं, लोगों में यह गलत सोच है कि हर मानसिक बीमारी अवसाद है.

डॉ. मित्तल कहते हैं,

“यह सिजोफ्रेनिया (schizophrenia), psychosis, बीपीडी (BPD), सोशल एंग्जाइटी, ओसीडी (OCD) वगैरह हो सकता है. कई मानसिक बीमारियों में लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है. इसलिए लोग सोचते हैं कि अवसाद में भी लंबे इलाज की जरूरत है.”

लोग सोचते हैं कि अवसाद का इलाज जिंदगी भर चलता है, लेकिन ऐसा नहीं है.

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समाज के स्तर पर, बदनामी भी एक वजह हो सकती है, जो लोगों को ट्रीटमेंट लेने से रोकती है.

मानसिक रोगों के बारे में डॉक्टरों की सोच भी खास भूमिका निभाती है.

डॉ. मित्तल कहते हैं, “ऐसे डॉक्टर जो मनोचिकित्सक नहीं हैं, वे मानसिक बीमारियों के बारे में जागरूक नहीं हैं. वे मरीजों में डर पैदा कर सकते हैं और कई बार, मरीजों की गलत पहचान करते हैं, उनके साथ सही तरीके से बर्ताव नहीं करते हैं, जिसके नतीजे खराब होते हैं और यही आगे चलकर डर की वजह बनते हैं.”

एक आम फिजीशियन दवा की तेज डोज से शुरू कर सकता है, जबकि हल्की डोज से शुरुआत की जानी चाहिए. इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं और इसके चलते मरीजों डर बैठ सकता है.

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कुछ मामलों में पारिवारिक साथ की कमी हो सकती है. आप नकारात्मक भावनाओं के जाल में फंस सकते हैं, जिससे आप खुद निकल नहीं पाते, लेकिन परिवार का कोई सदस्य आपको “सकारात्मक रूप से सोचने” या “मजबूत बनने” या “चीजों का सकारात्मक पक्ष देखने” के लिए कह सकता है.

श्रेया कहती हैं, “मेरी मां, पिता मेडिसिन लेने के खिलाफ रहे हैं और उन्होंने मुझे भी इनसे बचने को कहा.”

हालांकि नेक इरादे के बावजूद कोई शख्स अवसाद महसूस करने से खुद को रोक नहीं सकता है. डॉ. मित्तल कहते हैं, “यह एक डायबिटीज के मरीज को डायबिटीज ठीक करने के लिए सकारात्मक सोचने को कहने जैसा है. इससे भी इलाज में रुकावट आती है.”

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ऐसी अफवाहें हैं कि इसकी लत पड़ जाती है, दिमाग की केमिस्ट्री को बदल देती हैं, और इसके बुरे साइड इफेक्ट निश्चित रूप से होते हैं. ये बातें लोगों में डर पैदा करती हैं.

(कार्ड: फिट)

यह आम दवाओं जैसी नहीं है

हालांकि कुछ लोग समझते हैं कि बिना मेडिकल सहायता के भी अवसाद को ठीक करने में कामयाब होंगे, जबकि बाकी लोगों ने इसे अंतिम उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया या साइड इफेक्ट के डर के बावजूद इसके बताए गए फायदों पर यकीन किया.

कार्तिक को तीन साल पहले एंग्जाइटी का पता चला था, लेकिन उन्होंने काफी हद तक इसे थेरेपी से दुरुस्त करने की कोशिश की.

करीब एक महीने पहले, उन्हें अप्रकट एंग्जाइटी (latent anxiety) हुई थी और वे अस्पताल गए, जहां उन्हें कुछ एंग्जाइटी-रोकने की दवाएं लेने को कहा गया.

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वह कहते हैं, “मैं इन्हें नियमित रूप से नहीं लेता,” क्योंकि इससे उन्हें नींद आती महसूस होती है.

डॉ. मित्तल के मुताबिक यह हकीकत है कि एंटीडिप्रेसेंट के साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन यह ज्यादातर मामलों में ठीक किए जा सकने और पहले की हालत में लौटने लायक होते हैं.

SSRIs सबसे आम प्रचलित एंटीडिप्रेसेंट हैं और इसके साइड इफेक्ट भी सबसे हल्के होते हैं.

डॉ. मित्तल कहते हैं, इलाज के शुरुआती दिनों में आम साइड इफेक्ट्स में मितली, उल्टी, एसिडिटी, चक्कर आना शामिल हैं, जो 3-4 दिनों के बाद कम हो जाते हैं.

“कुछ लोगों में देर से इजैकुलेशन, ऑर्गेज्म की कमी, सेक्स की ख्वाहिश की कमी जैसे सेक्सुअल साइड इफेक्ट भी दिखते हैं. कुछ का वजन भी बढ़ सकता है.”

लेकिन हर शख्स पर काफी हद तक अलग साइफ इफेक्ट होते हैं और ऐसा नहीं है कि हर एक पर ये साइड इफेक्ट होते हों.

डॉ. मित्तल का कहना है कि, “ये साइड इफेक्ट ठीक हो जाते हैं. आपको डोज या इलाज को बदलने की जरूरत होती है.”

पल्लवी पैनिक अटैक के लिए दो एंटीडिप्रेसेंट, एक एंटी-एंग्जाइटी मेडिसिन/स्लीपिंग पिल और एक SOS दवा लेती हैं.

उन्हें कुछ साइड इफेक्ट हुए, लेकिन उनका कहना है कि ये कतई ऐसे नहीं थे जिनको वह झेल नहीं सकती थीं या उनकी असल मेंटल हेल्थ कंडीशन से कतई बदतर नहीं थे.

डॉ. मित्तल कहते हैं, कुछ अध्ययन सुसाइड के जोखिम के बारे में बताते हैं, लेकिन ऐसा आमतौर पर गंभीर अवसाद वाले लोगों में सिर्फ इलाज के शुरुआती दिनों में होता है.

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क्या डिप्रेशन की दवाइयां फायदेमंद हैं?

जहां तक एंटीडिप्रेसेंट का सवाल है, तो सभी लिए कोई एक तय फार्मूला नहीं है.

(फोटो: फिट)

पल्लवी कहती हैं, “हां, मेडिसिन ने निश्चित रूप से मेरी मदद की. मैं इसे थेरेपी के पूरक के रूप में देखती हूं.”

वह कहती हैं,

“मेडिसिन का पूरा जोर खतरनाक हालत पर काबू पाना होता है ताकि मैं थेरेपी के जरिए अपनी परेशानियों का इलाज कर सकूं. मेडिसिन पूरा इलाज नहीं है. यह ऐसी चीज है, जो थेरेपी के साथ-साथ चलनी चाहिए.”

“यह वैसा ही है जैसे जब आपका पैर टूट जाता है, तो डॉक्टर तकलीफ को कम करने के लिए दर्द की दवा देते हैं. लेकिन आपको फिर से चलने-फिरने के लिए फिजिकल थेरेपी की जरूरत होती है. मेंटल हेल्थ के मामले में भी ऐसा ही है.”

पल्लवी का कहना सही है. मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य से अलग नहीं है. आप निश्चित रूप से थेरेपी करा सकते हैं, अपनी लाइफस्टाइल बदल सकते हैं और तमाम चीजों को आजमा सकते हैं. मगर फिर से बता दें कि, आप अपने खान-पान में कुछ बदलाव कर या अपनी डायबिटीज को काबू में रख सकते हैं, सुरक्षित रूप से एक्सरसाइज कर अस्थमा से बच सकते हैं. फिर भी आपको कुछ मेडिकल मदद की जरूरत पड़ सकती है, जो आगे चलकर आपके लिए फायदेमंद होगी.

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यह मदद अवसाद की सीमा पर निर्भर करती है. डॉ. मित्तल कहते हैं, “हल्के अवसाद के लिए साइको-थेरेपी या काउंसिलिंग काफी है. मध्यम स्तर या गंभीर मामलों के लिए आपको मेडिसिन लेनी होंगी.”

जहां तक एंटीडिप्रेसेंट का सवाल है, तो सभी लिए कोई एक तय फार्मूला नहीं है. अगर एक तरीका बेअसर होता है, तो दूसरा आजमाया जा सकता है. कुल मिलाकर यह सही समाधान मिलने तक यह आजमाने और गलतियों से सीख लेने का तरीका है.

यह भी याद रखें कि इलाज के लिए कोई तय समय-सीमा नहीं है.

पल्लवी कहती हैं, “हालांकि मैं चाहूंगी कि भविष्य में कभी इन मेडिसिन को न लेना पड़े, फिर भी अगर यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लंबा, काफी लंबा समय लग सकता है तो मुझे इससे एतराज नहीं है क्योंकि कुल मिलाकर, जब से मैंने मेडिसिन लेना शुरू किया, मेरे सबसे खराब दिन भी मेरे उन अच्छे दिनों से बेहतर थे, जब मैं मेडिसिन नहीं लेती थी."

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अगर आपमें अवसाद के कोई लक्षण हैं, तो जरूरी है कि आप इस बारे में बताएं और जरूर पड़ने पर मदद लें.

डॉ. मित्तल कहते हैं, “अगर आप डॉक्टर के पास जाने से हिचक रहे हैं, तो अपनी लाइफस्टाइल में कुछ सकारात्मक बदलाव करें.”

लेकिन अगर कुछ भी काम नहीं करता है, तो डॉक्टर को दिखाने में कोई हर्ज नहीं है. हो सकता है, वह कुछ मददगार साबित हों.

(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)

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