संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन एजिंग रिपोर्ट 2015 के अनुसार, भारत में बुजुर्गों की आबादी के तेजी से बढ़ने का अनुमान है.
आर्थिक स्थिति में सुधार और हेल्थ केयर की उपलब्धता के कारण लोग अब पहले से अधिक लंबे समय तक जीवित रह रहे हैं. इसने बीमारी के पैटर्न में बदलाव किया है. संक्रामक रोग जैसे कि हेपेटाइटिस, हैजा, मलेरिया, टीबी या तपेदिक और एचआईवी की जगह अब नॉन कम्यूनिकेबल बीमारियों जैसे पार्किंसंस, अल्जाइमर, अस्थमा, डायबिटीज और हार्ट से जुड़ी बीमारियां ले रही हैं.
बुजुर्गों की जनसंख्या बढ़ने के कारण अगले कुछ वर्षों में इस तरह की बीमारियों का बोझ बढ़ने का अनुमान है.
Parkinson’s Disease क्या है?
पार्किंसंस नर्वस सिस्टम का एक प्रोग्रेसिव डिसऑर्डर है, जो हिलने-डुलने की गतिविधियों को प्रभावित करता है. यह धीरे-धीरे बढ़ता है. कभी-कभी एक हाथ में एक साधारण कंपन के साथ, जोड़ों में अकड़न और शरीर की हरकतों को धीमा कर देता है.
पार्किंसंस आमतौर पर बुजुर्गों में पाया जाता है. इस बीमारी और इसके लक्षणों के बारे में जागरुकता की कमी के कारण निकट भविष्य में यह एक बड़ा हेल्थ केयर चैलेंज बन सकता है.
पार्किंसन रोग के कारण
हालांकि, बीमारी के सटीक कारण को समझा जाना बाकी है, लेकिन शोधकर्ता अनुमान लगाते हैं कि आनुवंशिक और पर्यावरणीय दोनों ही कारक इसमें योगदान करते हैं. पार्किंसंस तब होता है जब मस्तिष्क में न्यूरॉन्स नामक कुछ तंत्रिका कोशिकाएं धीरे-धीरे कम या मृत होने लगती हैं.
कई लक्षण न्यूरॉन्स के नुकसान के कारण होते हैं, जो मस्तिष्क में एक रासायनिक संदेशवाहक का उत्पादन करते हैं, जिसे डोपामाइन कहा जाता है. जब डोपामाइन का स्तर कम हो जाता है, या मस्तिष्क में पर्याप्त डोपामाइन नहीं बनता है, तो शरीर के हिलने-डुलने में देरी होती है या अनियंत्रित हो जाती है, जैसा कि पार्किंसंस के लक्षणों में दिखाई देता है.
Parkinson’s Disease के लक्षण
पार्किंसंस का कोई एक परिभाषित लक्षण या संकेत नहीं है, लेकिन चेतावनी के संकेतों का एक संयोजन जिसे प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग तरीके से अनुभव करता है.
पार्किंसंस के शुरुआती लक्षण निम्नलिखित हैं, जो इस बीमारी का संकेत देते हैं:
- दैनिक जीवन की गतिविधियों का धीमा हो जाना
- रोजमर्रा के काम करने में अधिक समय लगता है
- पैरों में खिंचाव और स्तब्ध मुद्रा के साथ छोटे, धीमे कदम
- भावहीन चेहरा
- हाथ और पैर का कांपना
- बाहों और पैरों में अकड़न
दवा और लाइफस्टाइल में बदलाव
दवा शुरू में पार्किंसंस के लक्षणों को एक सीमा तक नियंत्रित करने में मदद कर सकती है. लाइफस्टाइल में बदलाव, एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी जो दवा के अलावा बैलेंस एंड स्ट्रेचिंग पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं. एक स्पीच लैंग्वेज थेरेपिस्ट बोलने संबंधी समस्याओं को सुधारने में मदद कर सकता है.
दवाओं से स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार करने में मदद मिलती है. समय के साथ दवाओं का असर कम होने पर भी रोगी स्थिति को काफी अच्छे तरीके से नियंत्रित कर सकता है.
बीमारी का मेडिकल मैनेजमेंट
पार्किंसंस रोग के मेडिकल मैनेजमेंट का लक्ष्य प्रतिकूल प्रभावों को कम करते हुए संकेतों और लक्षणों को नियंत्रित करना है. अगर जल्द से जल्द बीमारी का पता लगाने और इलाज शुरू नहीं किया जाता है, तो रोगी की जीवन की गुणवत्ता बिगड़ जाती है.
पार्किंसंस का मुख्य रूप से रोगी की मेडिकल हिस्ट्री, संकेत और लक्षणों के आधार पर पता लगाया जाता है. इसकी पुष्टि न्यूरोलॉजिकल और फिजिकल टेस्ट से होती है.
बीमारी का स्पष्ट रूप से पता चलने में कभी-कभी समय लगता है और डॉक्टर से रेगुलर मिलने की जरूरत होती है. बीमारी का इलाज दवा और लाइफस्टाइल में बदलाव या सर्जिकल प्रोसिजर के जरिए किया जा सकता है.
पार्किंसंस के इलाज के लिए सर्जरी
पार्किंसंस के एडवांस मामलों में, सर्जरी की सलाह दी जा सकती है. डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS), जिसमें मस्तिष्क में न्यूनतम स्थाई सर्जिकल परिवर्तन शामिल हैं, को पार्किंसंस रोग में हिलने-डुलने से जुड़े लक्षणों का इलाज करने के लिए निर्धारित किया जाता है, जैसे कि कंपकंपी, अकड़न, कठोरता, स्लो मूवमेंट और चलने की समस्याएं.
उन रोगियों को सर्जरी के लिए कहा जाता है जिन्हें लंबे समय से बीमारी है और दवाएं अब काम नहीं कर रही हैं.
इस प्रक्रिया में, सर्जन इलेक्ट्रोड को मस्तिष्क के एक विशिष्ट भाग में लगाते हैं. ये इलेक्ट्रोड कॉलरबोन के पास छाती में प्रत्यारोपित एक पेसमेकर से जुड़े होते हैं, जो लक्षणों को कम करने के लिए मस्तिष्क को इलेक्ट्रिकल पल्स भेजता है. सर्जरी मस्तिष्क की गहराई (ब्रेन मैपिंग) से कम्प्यूटरीकृत तकनीकों और माइक्रो-इलेक्ट्रोड रिकॉर्डिंग का उपयोग करके की जाती है.
किसी भी अन्य सर्जिकल प्रक्रिया की तरह, डीबीएस से जुड़ी कुछ जटिलताएं हैं जो बहुत कम संख्या में रोगियों में होती हैं. हालांकि, लंबे समय से पीड़ित इन रोगियों में, डीबीएस इम्प्लांट एक गेम चेंजर हो सकता है. यह उन मरीजों के लिए अहम हो सकता है, जो चल-फिर नहीं पाते हैं. ऐसे लोगों को ये आसानी से अपनी नौकरी और दैनिक गतिविधियों के सक्षम बनाता है.
(डॉ वीपी सिंह, मेदांता- द मेडिसिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज के चेयरमैन हैं.)
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