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CSE की रिपोर्ट- फसलों पर टीबी की दवा का छिड़काव कर रहे हैं किसान

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कई किसान अपनी फसलों पर टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का छिड़काव कीटनाशक के तौर पर कर रहे हैं.

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (CSE) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि दिल्ली में यमुना किनारे, हरियाणा में हिसार और पंजाब में फाजिल्का के किसान फसलों में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन का कॉम्बिनेशन) का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारी सेहत को नुकसान हो सकता है.

स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक है, जिसे जानलेवा बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.

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किसानों में जानकारी का अभाव है बड़ी समस्या

CSE में फूड एवं टॉक्सिन कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना के मुताबिक ये एंटीबायोटिक, काफी सारी एंटीबायोटिक जो टीबी में यूज होती हैं, उनमें से एक है और किसान इस बात से अनजान हैं कि उन्हें इन एंटीबायोटिक का कितनी मात्रा में छिड़काव करना है और किन फसलों पर करना है.

उन्होंने बताया, "कीटनाशकों को मंजूरी देने वाली सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमिटी (CIBRC) कुछ एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरियल इंफेक्शन की स्थिति में देती है. इसमें भी दवा की खुराक और कितनी बार उसका छिड़काव किया जाना है, ये तय होता है. लेकिन किसान इनका इस्तेमाल बिना वजह कर रहे हैं."

दिक्कत ये है कि ये कितनी यूज होनी चाहिए, किस फसल में यूज होनी चाहिए, कब होनी चाहिए, इस बारे में किसानों को ज्यादा पता नहीं है.
अमित खुराना, डायरेक्टर, फूड एवं टॉक्सिन कार्यक्रम, CSE

अमित बताते हैं कि अगर कुछ फसलों के लिए इसके इस्तेमाल की मंजूरी दी भी गई थी, तो इसके इतर दूसरे फल और सब्जियों में भी इसका छिड़काव हो रहा है और बहुत ज्यादा डोज में हो रहा है.

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ऐसे प्रभावित हो सकती है आपकी सेहत

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन को इंसानों के लिए बहुत अहम एंटीबायोटिक बताया गया है.

हालांकि फसलों में इसका बिना वजह इस्तेमाल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

अमित बताते हैं, "एंटीमाइक्रोबिल रेजिस्टेंस के कई रूट होते हैं, जैसे खाना और पर्यावरण. मिट्टी और पानी में एंटीबायोटिक दवाओं के इस बढ़ते भार के संपर्क में आने वाले सूक्ष्मजीव इसके प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं. ये प्रतिरोध दूसरे बैक्टीरिया में भी फैल सकता है. ये सूक्ष्मजीव किसी भी रास्ते इंसानों में प्रवेश कर सकते हैं."

इस तरह जब इंसान या जानवर इन रेजिस्टेंट सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होते हैं, तो इलाज मुश्किल और महंगा हो जाता है.

इंसान के अंदर एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोध पैदा होने की आशंका रहती है.
(फोटो: iStock)

इसके अलावा ये भी आशंका होती है कि एंटीबायोटिक की कुछ मात्रा फलों, सब्जियों या फसलों में रह जाए, इससे इंसानों की हेल्थ प्रभावित हो सकती है या ऐसा हो सकता है कि उन पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर ना पड़े.

हालांकि अमित बताते हैं कि इसे लेकर हमारे देश में कोई स्टडी नहीं हुई है कि फसलों पर छिड़के गए एंटीबायोटिक हमारे खाने में आगे जा रहे हैं या नहीं.

ऐसा माना गया है कि एंटीबायोटिक का नॉन-ह्यूमन यूज कुल मिलाकर एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस में योगदान देता है. स्ट्रेप्टोमाइसिन के प्रति पहले से ही काफी रेजिस्टेंस विकसित हो रही है, तो इस तरह इसके इस्तेमाल से समस्या और बढ़ेगी.
अमित खुराना, डायरेक्टर, फूड एवं टॉक्सिन कार्यक्रम, CSE

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन हुआ है. इसलिए हमें अब ध्यान देना चाहिए और एंटीबायोटिक के गैर-मानवीय इस्तेमाल को रेगुलेट करना चाहिए.

CSE की डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण कहती हैं, "हमारे देश में टीबी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है. फसलों में स्ट्रेप्टोमाइसिन के इस तरह के व्यापक और बिना किसी परवाह के उपयोग से बचने के लिए हमें एक उपाय खोजना चाहिए."

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