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कोविशील्ड और कोवैक्सीन चुनने का विकल्प नहीं: क्या ये सही है?

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COVID-19 की वैक्सीन लगवाने वालों को देश में इमरजेंसी यूज के लिए मंजूर 2 वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन में से अपनी पसंद का विकल्प चुनने का मौका नहीं मिलेगा. 16 जनवरी से भारत में वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू हो रही है.

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने 12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘‘दुनिया में कई जगहों पर एक से ज्यादा वैक्सीन इस्तेमाल हो रही हैं लेकिन अभी किसी भी देश में वैक्सीन लेने वालों को अपनी पसंद का विकल्प चुनने का मौका नहीं दिया जा रहा है.’’

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45 से ज्यादा देशों ने नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ अपनी आबादी को वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, कई देश सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन की धीमी प्रक्रिया से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

इस पर विस्तार से चर्चा करते हुए नीति आयोग के मेंबर (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने कहा, "फिलहाल COVID-19 के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही दुनिया की सभी वैक्सीन को इमरजेंसी यूज के तहत मंजूरी दी गई है. जैसे- जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमारे पास और ज्यादा विकल्प होगा. भारत भी बहुत प्रतिस्पर्धी कीमतों पर इन वैक्सीन को प्राप्त करने में सक्षम है."

लेकिन विशेषज्ञ और यहां तक कि हेल्थकेयर वर्कर्स जो वैक्सीन पाने वालों में पहली पंक्ति में हैं, प्रभावकारिता, पारदर्शिता और डेटा की कमी पर सवाल उठा रहे हैं.

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कोवैक्सीन 'बैकअप' है?

13 जनवरी को, भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन डोज, देशभर के 10 शहरों में पहुंची.

भारत बायोटेक ने सरकार को 16.5 लाख वैक्सीन डोज मुफ्त देने का ऐलान किया है. कंपनी सरकार को 295 रुपये प्रति डोज की कीमत पर 38.50 लाख डोज दे रही है.

दोनों वैक्सीन को मंजूरी देते समय, डॉ. बलराम भार्गव और एम्स के डॉ. रणदीप गुलेरिया समेत कई विशेषज्ञों ने कहा था कि जब तक कोवैक्सीन के जारी फेज 3 ट्रायल के प्रभावकारिता के आंकड़े उपलब्ध नहीं होते तबतक ये 'बैकअप’ होगा.

कोवैक्सीन को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा रिस्ट्रिक्टेड अप्रूवल देते समय काफी मुश्किल भाषा में समझाया गया था: “क्लीनिकल ट्रायल मोड में, एक व्यापक एहतियात के तौर पर सार्वजनिक हित में, आपातकालीन स्थिति में प्रतिबंधित इस्तेमाल के लिए मंजूरी, ताकि वैक्सीनेशन के लिए ज्यादा विकल्प मौजूद रहें. खासतौर से म्यूटेंट स्ट्रेन द्वारा संक्रमण के मामले में."

फिट से बात करते हुए, डॉ. गुलेरिया ने कहा था, शेयर की गई जानकारी को अगर पढ़ें, तो वैक्सीन "एहतियात की व्यापकता के मद्देनजर आपातकालीन इस्तेमाल" के लिए मंजूर किया गया है. मुझे लगता है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में जो हो रहा है, उसे देखते हुए अगर भारत के मामलों में उछाल आता है, और एक आपातकालीन स्थिति पैदा होती है, तो हमें ज्यादा डोज की जरूरत होगी और कोई दवा उपलब्ध नहीं है, तो ये वैक्सीन उपलब्ध कराया जा सकता है. अन्यथा कोविशील्ड का इस्तेमाल किया जाएगा."

वैक्सीन रोल-आउट 16 जनवरी से शुरू हो रहा है और कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों पहले ही डिस्पैच हो चुके हैं. ये साफ है कि सरकार के लिए, कोवैक्सीन 'बैकअप' नहीं है. इसी टर्म की वजह से भारत बायोटेक के सीईओ डॉ. कृष्णा एल्ला की नाराजगी भी दिखी थी.

सरकार ने अपने रुख का बचाव किया है, डॉ पॉल ने कहा कि वैक्सीन को "हजारों लोगों पर टेस्ट किया गया है और ये सुरक्षित है."

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सुरक्षा और इम्यूनोजेनेसिटी (प्रतिरक्षा क्षमता) समान नहीं

कुछ हेल्थकेयर वर्कर्स, जो वैक्सीन पाने वाले लोगों की पहली पंक्ति में हैं, फिट को बताते हैं कि वैक्सीन को लेकर पारदर्शिता की कमी हेल्थकेयर वर्कर्स के बीच झिझक पैदा कर रही है.

"दोनों वैक्सीन पब्लिकली फंडेड हैं और दोनों से डेटा की कमी के मुद्दे जुड़े हैं. कोवैक्सीन के लिए, फेज 3 ट्रायल अभी भी जारी हैं और कोई भी रॉ डेटा उपलब्ध नहीं है. कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों से जुड़े एडवर्स इवेंट(प्रतिकूल घटनाएं) के बारे में जानकारी नहीं है. रोल-आउट को लेकर, खासकर न्यूरोलॉजिकल लक्षणों वाले प्रतिकूल घटनाओं को लेकर डॉक्टर समूहों के बीच चिंता है." दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे कहते हैं.

ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी ऐसोला ने ट्वीट किया कि कोविशील्ड के लिए सरकार द्वारा अप्रूव्ड 4 सप्ताह के डोजिंग शेड्यूल को लेकर डेटा की कमी है. सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा भारत में निर्मित किए जा रहे ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए भारत में ट्रायल अभी भी जारी हैं.

कोवैक्सीन ने फेज 3 ट्रायल के लिए एक सप्ताह से भी कम समय में भर्ती पूरी कर ली, इसलिए सरकार का दावा कि वैक्सीन का टेस्ट 'हजारों लोगों' पर किया गया है, पूरी तस्वीर पेश नहीं करता.

फिट के साथ बात करते हुए, सीएमसी वेल्लोर की वायरोलॉजिस्ट डॉ. गंगदीप कांग ने कहा था, '' सवाल ये है कि आप किस पॉइंट पर अप्रूवल देते हैं, चाहे वो रिस्ट्रिक्टेड अप्रूवल ही क्यों न हो. मेरे लिए ये बहुत अहम है कि हमारे पास सुरक्षा और प्रभावकारिता दोनों डेटा हों. वैक्सीन को लेकर मैंने लंबे समय तक ये जानने के लिए काम किया कि इम्युनोजेनेसिटी प्रभावकारिता के बराबर है या नहीं. इसलिए मैं भारत बायोटेक के कुछ क्लीनिकल एफिकेसी (प्रभावकारिता) डेटा देखना पसंद करूंगी, इससे पहले कि इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाए. "

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'क्लीनिकल ट्रायल मोड’ में सरकार कैसे करेगी वैक्सीनेशन?

कोवैक्सीन की करीब 55 लाख डोज की खरीद के साथ, 16 जनवरी से वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू हो रही है. सरकार उन लाखों लोगों को कैसे ट्रैक और ट्रेस करेगी जो वैक्सीन प्राप्त करेंगे?

प्रो के श्रीनाथ रेड्डी, चेयरपर्सन, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, ने क्विंट के संपादकीय में कहा था, "जब दूसरों को प्रभावकारिता और सुरक्षा के मद्देनजर निगरानी के साथ वैक्सीन मिल रहा हो तब क्या फेज 3 ट्रायल- ब्लाइंडेड 2-आर्म ट्रायल के तौर पर जारी रहेगा? अगर ऐसा है, तो बाद वालों की तुलना करने के लिए कोई समूह नहीं होगा. क्या फेज 3 और फेज 4 (पोस्ट-लाइसेंसर निगरानी) डेटा को एक साथ इकट्ठा किया जाएगा और अलग से विश्लेषण किया जाएगा?"

ये जटिल सवाल हैं. द क्विंट के पॉडकास्ट टीम के साथ बातचीत में पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव डॉ. जेवीआर प्रसाद राव ने भी इन चुनौतियों को माना है.

“हर कोई जो वैक्सीन लेगा, वो सरकारी रिकॉर्ड में होगा. लेकिन कोवैक्सीन पाने वाले, अगर उन्हें क्लीनिकल ट्रायल मोड के तहत रखा जाता है, तो उनको लेकर प्रतिकूल घटनाओं की बारीकी से निगरानी करनी होगी.”

आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. एन के गांगुली ने कहा कि वैक्सीन के बीच चयन के लिए उनके प्राइवेट मार्केट तक पहुंचने तक इंतजार करना होगा.

“जब एक सरकारी कार्यक्रम के माध्यम से वैक्सीन दिए जाते हैं, तो विकल्प नहीं हो सकते. वैक्सीन को जिलों तक भेजा जाएगा और ये संभव है कि जिन जिलों को कोविशील्ड मिलें उन्हें कोवैक्सीन न मिले. लेकिन जून तक, जब वैक्सीन बाजार में पहुंच जाते हैं, और अगर फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और अन्य mRNA वैक्सीन भी प्राइवेट मार्केट में उपलब्ध हों, तो आपके पास एक विकल्प हो सकता है. तब तक आपके पास अधिक डेटा भी होगा कि अलग-अलग वैक्सीन ने कैसा प्रदर्शन किया है.”

सवाल ये है कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड को अप्रूवल देने के लिए अलग-अलग शब्दों के इस्तेमाल के बावजूद, रोल आउट में अंतर क्यों नहीं है. हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देशों ने भी अपने लोगों के लिए 'वैक्सीन के बीच' विकल्प की पेशकश नहीं की है, लेकिन उनकी नियामक प्रक्रियाओं ने सुनिश्चित किया है कि COVID वैक्सीन को अप्रूवल देने में कोई अस्पष्टता नहीं दिखाई गई है.

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