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Autism Awareness Day: ऑटिस्टिक बच्चों में कैसे बढ़ाएं भाषा-ज्ञान?

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'ऑटिज्म' का शाब्दिक अर्थ 'स्वलीनता' होता है. स्वलीनता यानी अपनी दुनिया में इतना व्यस्त रहना कि अपने आस-पास के वातावरण की पूरी तरह से अनदेखी कर देना.

अपने में लीन रहने की इसी जीवन पद्धति के कारण ऑटिस्टिक बच्चों का बौद्धिक और कभी-कभी शारीरिक विकास भी प्रभावित होता है.

विकिपीडिया ने इसे एक विकार के रूप में परिभाषित किया है, लेकिन मैं इसे एक मस्तिष्क विकार नहीं बल्कि एक अलग संरचना वाले मस्तिष्क के रूप में मानती हूं.

ऑटिज्म वाले लोगों को एक अलग व्यक्तित्व के रूप में स्वीकारना ही इसकी जागरुकता की ओर पहला कदम है.

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इस विशिष्ट दुनिया में जब मैंने कदम रखा तो मेरा सामना काफी भारी भरकम शब्दों जैसे, Sensory Profile, Behaviour Analysis, Communication Disorder से सामना हुआ. ये शब्द एक सामान्य माता-पिता के लिए काफी कठिन साबित होते हैं.

ऑटिज्म के इतने आयाम होते हैं कि उनमें तालमेल बिठाना किसी भी माता-पिता के लिए बोझिल साबित होता है. ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के भाषा ज्ञान के अभाव से चिंतित रहते हैं.

मैं भी उन्हीं में से एक थी. थेरेपी के बावजूद प्रगति की गति धीमी थी. यही कारण था कि मैंने अपने तरीके इस्तेमाल करने शुरू कर दिए. धीरे-धीरे मेरे बेटे की भाषा में काफी सुधार भी आने लगा.

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ऑटिस्टिक बच्चों में भाषा ज्ञान बढ़ाने के कुछ उपाय:

बच्चे को हर जगह ले जाएं
(चित्र: प्रतीक झा/बोल हल्के हल्के पुस्तक से)
  • बच्चे के साथ खेलने का एक समय तय करें. कोशिश करें कि एक बंद कमरे में बच्चे के साथ गुब्बारे, हल्के फुटबॉल या फिर कोई भी वो चीज जो बच्चे को पसंद हो, खेलें. ऑटिस्टिक बच्चे अपने में खोए रहते हैं, ऐसे में उनके साथ खेलने से उनका ध्यान आसपास के वातावरण पर भी ले जाएगी.

  • बच्चे को उसके छोटे से छोटे प्रयासे के लिए खूब शाबासी दें, उसका हौसला बढ़ाएं. इससे बच्चे बोलने का प्रयास करते हैं,

  • पिक्चर कार्ड ऑटिस्टिक बच्चों में भाषा ज्ञान बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पिक्चर कार्ड में किसी भी एक चीज का स्पष्ट चित्रा होता है. इसके अलावा कोई भी पैटर्न या कुछ भी नहीं लिखा होता है. आप ऐसी तस्वीरें इंटरनेट से डाउनलोड कर लें. जब भी आप कुछ बोलें, तो उससे संबंधित कार्ड उसे दिखा कर कहें.

  • बच्चों को पहले शब्द ज्ञान होना चाहिए. उसके बाद ही उन्हें वाक्यों में बोलना सिखाएं. ये वाक्य छोटे एवं स्पष्ट होने चाहिए. जैसे- बिस्किट खाना है, बाहर जाना है, नहाना है.

  • भाषा के हर आयाम की जानकारी दें. हर हफ्ते एक लक्ष्य रखें और उस पर काम करें. जैसे, एक हफ्ते एक 'ये क्या है' का जवाब देना सिखाएं, दूसरे हफ्ते 'ये किसका है' का जवाब देना सिखाएं. इस तरह सिखाने से बच्चे को हर एक आयाम की जानकारी हो जाती है और वो पूरे आत्मविश्वास के साथ इसे इस्तेमाल करता है.

टेबल-कुर्सी पर बैठकर कई तरह की गतिविधियां करवाएं
(चित्र: प्रतीक झा/बोल हल्के हल्के पुस्तक से)
  • दिन भर में एक वक्त ऐसा रखें, जब टेबल-कुर्सी पर बैठकर कई तरह की गतिविधियां करवाएं. मैं जब भी कोई नई चीज अपने बेटे को सिखाती हूं, तो उसकी शुरुआत उसके स्टडी टेबल पर आमने-सामने बैठ कर ही करती हूं. इसकी शुरुआत 5 मिनट से ही करें, लेकिन धीरे-धीरे अंतराल बढ़ाएं.

  • बच्चे को कभी भी दबाव देकर बोलने को न कहें. हमेशा हंसी-खुशी के माहौल में ही सिखाने का प्रयास करें. आपकी झुंझलाहट बच्चे में व्यवहारगत समस्या ला सकता है.

  • बच्चे को हर जगह ले जाएं. पार्क, मूवी, होटल, कहीं भी. चाहे थोड़ी देर के लिए ही सही. इससे बच्चे हर माहौल में अभ्यस्त होते हैं.

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भाषा विकास की सीढ़ी काफी लंबी है, लेकिन इसे क्रमबद्ध तरीके से पार किया जाए, तो यह बच्चे को आत्मविश्वास के साथ बोलने के लिए तैयार करता है.

मैंने अपनी किताब 'बोल हल्के हल्के' के तीनों भाग में भाषा को क्रमबद्ध रूप दिया है, जिसकी बदौलत मेरा नौ साल ऑटिस्टिक बच्चा आज हर तरह की बातें कर लेता है और खेतान पब्लिक स्कू, साहिबाबाद में तीसरी क्लास में पढ़ रहा है.

(आरती एक ऑटिस्टिक बच्चे की मां हैं और अपने बच्चे का भाषा ज्ञान बढ़ाने के लिए उन्होंने जो उपाय किए, उनकी किताब 'बोल हल्के हल्के' उसी पर आधारित है, जिसे तीन भागों में छापा गया है.)

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