हर इंसान का दिल प्यार के लिए धड़कता है. प्यार की तलाश सभी को होती है. क्या इस तलाश में उन लोगों के अनुभव अलग हैं, जो डिसएबल हैं? इस वैलेंटाइन डे ऐसे ही चार लोगों के संघर्ष और खुद को स्वीकारने की कहानी.
"जब मैं 18 या 19 साल की थी, तब एक विकलांग महिला के तौर पर डेटिंग ऐप्स पर जाना मुश्किल था. मैं अपनी डिसएबिलिटी से घबराई हुई थी. अपने बायो में विकलांग लिखना बहुत बड़ी बात थी. अपनी डिसएबिलिटी और क्वीर बॉडी को स्वीकार करने में मुझे कई साल लग गए."अनुषा मिश्रा, फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ, रिवाइवल डिसएबिलिटी मैगजीन
"जब मैं ये बोलता हूं कि मैं एक पार्टनर ढूंढ रहा हूं, मैं ये नहीं बोल रहा हूं कि मुझे एक सेवक की तलाश है."रक्षित मलिक, जेएनयू स्टूडेंट और लेखक
लेखक, कवि और रिसर्चर अभिषेक अनिक्का बताते हैं कि डेटिंग साइट पर वो अपनी बायो में लिखते हैं कि मैं आपका थेरेपिस्ट नहीं हूं.
कवि, रिसर्चर और TISS मुंबई में स्टूडेंट, चहक गिदवानी कहती हैं, "डिसएबल और क्वीर कम्युनिटी की हिस्सा रहते हुए मैं महसूस करती थी कि ज्यादातर अनुभव, खासकर रोमांटिक वाले, हमारे लिए मुश्किल हैं. लेकिन अब मुझे जो महसूस हो रहा है, वह यह है कि हमने वैलेंटाइन डे को नए सिरे से परिभाषित किया है और हम इसे CRIP-LENTINE'S DAY के रूप में आपके सामने ला रहे हैं. आप सभी को CRIP-LENTINE'S DAY की ढेर सारी शुभकामनाएं."
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