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कोरोना FAQ:वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा कैसे लें?क्या पैसे मिलते हैं?

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भारत बायोटेक और ICMR की कोरोना वैक्सीन कैंडिडेट कोवैक्सीन (Covaxin) का देश के 12 शहरों में ह्यूमन ट्रायल चल रहा है. पटना एम्स, दिल्ली एम्स, PGIMS रोहतक (हरियाणा) समेत देश में कुल 14 रिसर्च इंस्टिट्यूट को ट्रायल के लिए चुना गया है.

पटना एम्स, PGIMS (रोहतक) ने फिट को बताया कि लोग बढ़-चढ़कर इस ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं, और अभी तक वॉलंटियर्स में कोई साइड इफेक्ट सामने नहीं आया है. PGIMS रोहतक में अब तक 250 वॉलंटियर आ चुके हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली एम्स में 3500 लोग ट्रायल के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं.

जाहिर है, लोग इस महामारी को हराना चाहते हैं और लड़ाई में एक योगदान ये हो सकता है कि वैक्सीन ट्रायल का हिस्सा बना जाए.

PGIMS रोहतक में फार्माकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रोफेसर और प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. सविता वर्मा बताती हैं कि आम तौर पर फेज 1 में 50 लोगों पर वैक्सीन ट्रायल होता है. फेज 2 में 200 से 300 वॉलंटियर होते हैं. फेज 3 में ये संख्या 1000-2000 की होती है. ड्रग के मामले में ये काफी मायने रखता है लेकिन वैक्सीन के मामले में फेज 2 और 3 में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया(DCGI) ने कोवैक्सीन ट्रायल के लिए फेज 1 और 2 को मंजूरी दी है और शामिल होने वाले वॉलंटियर की संख्या बढ़ा दी है. हालांकि, किसी एक हॉस्पिटल में कितने लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल करना है इसकी कोई संख्या तय नहीं की गई है. ये एक तरह का कॉम्पटिटीव ट्रायल है. पहले फेज में कुल मिलाकर 325 लोगों पर ट्रायल करना है. दूसरे फेज में करीब 750 वॉलंटियर शामिल किए जाएंगे. 12 साइट पर ये शुरू हो चुका है. अलग-अलग साइट पर जैसे-जैसे वॉलंटियर आते जाएंगे ये ट्रायल चलता रहेगा. संख्या पूरी होने पर इसे रोकने की सूचना दे दी जाएगी.

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भारत में जारी कोवैक्सीन के ट्रायल में शामिल होने के लिए किन बातोंं का ध्यान रखना जरूरी है. इसकी क्या प्रक्रिया है. डॉ. सविता वर्मा ने फिट से इस बारे में विस्तार से बातचीत की.

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वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लेने का पहला स्टेप क्या है?

हॉस्पिटल की वेबसाइट पर हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं. अखबारों, मीडिया के जरिये जानकारी दी गई है. वॉलंटियर्स फोन के जरिये संपर्क करते हैं. उन्हें जरूरी जानकारी देकर साइट पर बुलाया जाता है.

ट्रायल में किन लोगों को शामिल किया जा रहा है?

हर स्टडी का इंक्लूजन और एक्सक्लूजन क्राइटेरिया होता है यानी एक प्रोटोकोल जिसमें तय किया जाता है कि किन लोगों को शामिल किया जा सकता है और किसे नहीं. कोवैक्सीन स्टडी के लिए 18 से 55 साल के लोगों का ही चुनाव होगा. वॉलंटियर को डायबीटिज, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारी, लंग डिजीज, अस्थमा, कैंसर, एलर्जी नहीं होनी चाहिए. वैसी महिलाएं जो गर्भवती नहीं हैं, इसमें शामिल हो सकती हैं. आप किसी तरह की दवा या स्टेरॉयड्स नहीं ले रहे हों, ये ध्यान रखा जाता है.

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ट्रायल में शामिल होने के लिए किसी डॉक्यूमेंट की जरूरत पड़ती है?

हॉस्पिटल की तरफ से एक लिखित ‘इन्फॉर्म्ड कंसेंट फॉर्म’ भरवाया जाता है. इस फॉर्म में ट्रायल से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं जैसे- हॉस्पिटल क्या जिम्मेदारियां लेगा, वॉलंटियर को कब-कब बुलाया जाएगा, वो किन प्रक्रियाओं से गुजरेंगे और वॉलंटियर से ट्रायल की सहमति मांगी जाती है. वॉलंटियर्स की काउंसलिंग की जाती है. अगर वो फॉर्म घर ले जाकर पढ़ना चाहते हैं तो उन्हें पर्याप्त समय दिया जाता है. कई बार स्पॉट पर ही लोग तैयार हो जाते हैं, कई बार लोग समय लेकर बाद में आते हैं. इसमें 1 से 3 दिन लग सकता है. वॉलंटियर्स की सहमति के बाद, उनके आधार कार्ड और कंसेंट फॉर्म के साथ रजिस्ट्रेशन कर लिया जाता है. वॉलंटियर्स की जानकारी गुप्त रखी जाती है.

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क्या ट्रायल साइट से अलग, किसी अन्य शहर या राज्यों के लोग इसमें शामिल हो सकते हैं?

कोवैक्सीन ट्रायल के लिए चुने गए साइट के आसपास के लोगों को वरीयता दी जा रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टडी में शामिल लोगों को 5 से 6 बार साइट पर आने की जरूरत पड़ेगी. उन्हें ट्रेस करना और मॉनिटर करना आसान है. लेकिन कहीं के भी लोग जो 5-6 बार साइट पर आने के लिए तैयार हों, इसमें शामिल हो सकते हैं.

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ट्रायल के लिए किस तरह की जांच की जाती है?

फिट ने पहले भी इस बारे में विस्तार से बताया है. वॉलंटियर्स की स्क्रीनिंग होती है, फिजिकल टेस्ट किया जाता है. ब्लड टेस्ट, यूरीन टेस्ट और कोविड का टेस्ट कराया जाता है. टेस्ट की रिपोर्ट नॉर्मल आने पर वैक्सीनेशन के लिए बुलाया जाता है.

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क्या क्लीनिकल ट्रायल  में लोगों को वायरस दिया जाता है?

वैक्सीन के बारे में एक आम गलत धारणा ये है कि लोगों को वायरस दिया जाता है. लेकिन जिन ट्रायल में लोगों को इंफेक्ट कराया जाता है, उसे ‘चैलेंज स्टडी’ कहते हैं. जबकि ICMR ने कोवैक्सीन के रैंडमाइज्ड, डबल-ब्लाइंड, प्लेसेबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी दी है. इसमें SARS-CoV-2 संक्रमण और COVID-19 बीमारी के संपर्क में आने की संभावना वाले लोगों को शामिल किया जा रहा है. डॉ. सविता वर्मा बताती हैं कि कोवैक्सीन ‘किल्ड वैक्सीन’ (Killed vaccine) है. इसमें जिंदा वायरस नहीं होता जो संक्रमण पैदा कर सके. ये वैक्सीन एंटीजेन की तरह काम करती है. शरीर के अंदर जाने पर ये इम्यून रिस्पॉन्स, एंटीबॉडी रिस्पॉन्स पैदा करती है. ये वैक्सीन इंफेक्शन पैदा नहीं कर सकती.

वैक्सीन प्रभावी है या नहीं इसकी जानकारी नहीं है इसलिए रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल किया जा रहा है. इसका मतलब किसी को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है और वैक्सीन दी जाती है. बाकियों को प्लेसेबो दिया जाता है, जो स्टेराइल साल्ट वाटर की तरह एक पदार्थ होता है जिसमें कोई सक्रिय तत्व नहीं होता. साथ ही ये डबल-ब्लाइंड ट्रायल है यानी स्टडी करने वाले और वॉलंटियर्स को पता नहीं होता है कि उन्हें क्या दिया जा रहा है.
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क्या ट्रायल में हिस्सा लेने वालों को पैसे दिए जाते हैं?

भारत में नियम के मुताबिक आने-जाने का खर्च दिया जाता है. वैक्सीन कंपनी की तरफ से एक राशि तय की जाती है. DCGI इसपर मुहर लगाता है. हालांकि ट्रायल में हिस्सा लेने के नाम पर कोई राशि नहीं दी जाती है.

पटना एम्स ने फिट को बताया कि वॉलंटियर के एक विजिट पर उन्हें 1000 रुपये का भुगतान किया जा रहा है. 

क्या वॉलंटियर से किसी तरह का कमिटमेंट लिया जाता है?

कोवैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलंटियर्स से 7 महीने का कमिटमेंट लिया गया है. कंसेंट फॉर्म में इसकी जानकारी होती है. इस दौरान उन्हें मॉनिटर किया जाएगा, फोन पर उनके हेल्थ स्टेटस की जानकारी ली जाएगी और जरूरत पड़ने पर साइट पर बुलाया जाएगा.

किस तरह के साइड इफेक्ट हो सकते हैं?

जहां वैक्सीन इंजेक्शन लगाया जाता है वहां दर्द, स्किन का लाल हो जाना आम है. बुखार आ सकता है. सबसे गंभीर माना जाता है एनाफेलेक्टिक रिएक्शन (anaphylactic reaction). ये एलर्जिक रिएक्शन है. इसलिए साइट पर आईसीयू फैसिलिटी भी रखी जाती है. हालांकि, ये रेयर है. इन सबके बारे में भी जानकारी पहले ही दे दी जाती है.

पटना एम्स के ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए- 9471408832, PGIMS रोहतक में हिस्सा लेने के लिए- +91-1262281417, दिल्ली एम्स के लिए Ctaiims.covid19@gmail.com पर मेल या 7428847499 पर संपर्क कर सकते हैं.

ट्रायल के लिए चुने गए बाकी हॉस्पिटल- किंग जॉर्ज हॉस्पिटल-विशाखापतनम,जीवन रेखा हॉस्पिटल-बेलगाम, गिलुरकर मल्टीस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल-नागपुर, राना हॉस्पिटल-गोरखपुर, एसआरएम हॉस्पिटल-चेन्नई, निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज-हैदराबाद, कलिंगा हॉस्पिटल-भुवनेश्वर, प्रखर हॉस्पिटल-कानपुर और गोवा का एक हॉस्पिटल है.

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