अस्थमा सांस से जुड़ी एक बीमारी है, जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है. इस बीमारी में सांस की नलियों में सूजन आ जाती है जिससे श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है. इससे सांस लेने और छोड़ने की क्षमता पर असर पड़ता है.
जब सांस की नली में सिकुड़न के साथ ही म्यूकस ज्यादा प्रोड्यूस होने लगता है, तो मरीज को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इसका ठीक से इलाज न हो तो रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ता है.
भारत में करीब 6 प्रतिशत बच्चे और 2 प्रतिशत वयस्क अस्थमा से पीड़ित हैं.
अस्थमा अटैक को दो कैटेगरी में बांटा जाता है - बाहरी और आंतरिक अस्थमा.
बाहरी अस्थमा
ये एलर्जिक होता है जो अमूमन पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों और इसके अलावा खाने या दवा के कारण होता है. जिन खाद्य उत्पादों को एलर्जी ट्रिगर करने के लिए जाना जाता है उनमें साइट्रस यानी खट्टे पदार्थ, डेयरी यानी दूध -दूध से बने प्रोडक्ट्स, सल्फाइट्स और ग्लूटेन शामिल हैं.
आंतरिक अस्थमा
ये नॉन-एलर्जिक अस्थमा के रूप में भी जाना जाता है. इसमें साइनसाइटिस, लगातार ईओसिनोफिलिया और ल्यूकोट्रिएन बनने में तेजी आ जाती है. ये मौसम में बदलाव, व्यायाम और संक्रमण से लेकर हार्मोनल उतार-चढ़ाव, चिंता और तनाव जैसी वजहों से होता है.
पारंपरिक चिकित्सा अस्थमा अटैक को रोकने में काफी असरदार साबित होती है. खासकर नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक चिकित्सा रोग के मूल कारण को दूर करने और उसके खात्मे पर काम करती है.
नेचुरोपैथी के जरिए अस्थमा से निपटने का तरीका
वातावरण और डाइट से एलर्जी को खत्म करना अस्थमा को कंट्रोल करने का पहला कदम है. म्यूकस बनाने वाले खाद्य पदार्थों जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स और रेड मीट से सख्ती से बचना चाहिए. आपके आस-पास के परिवेश में जानवरों के फर, पराग, कॉकरोच से छूटे कण, घरेलू क्लीनर, सिगरेट के धुएं, मोल्ड, पेट्रोल के धुएं और धूल के कण बिल्कुल नहीं होने चाहिए.
अस्थमा के मरीजों को राहत देने के लिए नेचुरोपैथ कई आसान उपाय बताते हैं.
मरीजों को आमतौर पर उनकी छाती, पीठ और पेट पर गर्म सिंकाई दी जाती है.
गुनगुने पानी के एनीमा के साथ छाती और पीठ की मसाज थेरेपी भी दी जाती है.
ब्रोन्कियल अस्थमा से पीड़ित मरीजों में फेफड़े के फंक्शन में सुधार के लिए 'हॉट फुट और आर्म बाथ' आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला इलाज है.
फिलहाल, लॉकडाउन के कारण नेचुरोपैथ के पास जाना मुश्किल है. लेकिन कुछ घरेलू उपचार आपकी असुविधा को कम करने में मदद कर सकते हैं.
उदाहरण के लिए, सीने पर गर्म तौलिया रखने से छाती की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और सामान्य सांस लेने में मदद मिलेगी.
नीलगिरी के तेल की 1-2 बूंदों के साथ भाप लेना आपके म्यूकस मेम्ब्रेन को ढीला कर देगा ताकि आप इसे खांसी के जरिये निकाल सकें.
डाइट नेचुरोपैथी का एक और अभिन्न अंग है. अपने आहार में मामूली बदलाव करके, आप खाने से जुड़ी एलर्जी से बच सकते हैं और एक्यूट अस्थमा अटैक के जोखिम को कम कर सकते हैं. वैसी चीजें खाएं जिसमें चीनी और फैट कम हो. फल और सब्जियां अल्कलाइन तत्वों से भरपूर होती हैं और इसमें ओमेगा -3 जैसे एंटी इंफ्लामेट्री पोषक तत्व होते हैं. लहसुन, प्याज, अखरोट, बादाम और पत्तेदार सब्जियों को खाने में शामिल करें क्योंकि वे आपके फेफड़ों में नमी लाते हैं.
योग दिलाएगा राहत
अस्थमा के इलाज के लिए योग नेचुरोपैथी का एक अभिन्न अंग है. ये आपके रेस्पिरेट्री मसल्स को मजबूत करके सांस लेने की प्रक्रिया को रेगुलेट करता है ताकि आप जोर लगाकर सांस लेने की बजाए आराम से सांस ले सकें. ये आपके डायफ्राम के फंक्शन को मजबूत बनाता है और गर्दन और पेट की मांसपेशियों को अतिरिक्त गैरजरूरी काम करने से रोकता है.
स्टडी से पता चला है कि नियमित रूप से योग का अभ्यास करने वाले मरीजों में कम अस्थमा अटैक के मामले देखे गए हैं. अस्थमा के लिए फायदेमंद कुछ खास आसनों में भुजंगासन, धनुरासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, उष्ट्रासन, त्रिकोणासन, वीरासन और शलभासन शामिल हैं.
डॉक्टर की सलाह जरूरी
हालांकि, ये ध्यान रखना जरूरी है कि योगासन, क्रिया और सांस से जुड़े व्यायाम की गलत प्रैक्टिस आपके अस्थमा को बढ़ा सकता है. इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप एक योग इंस्ट्रक्टर के गाइडेंस में प्रैक्टिस करना शुरू करें, वैसे ट्रेनर जिसे अस्थमा मरीजों से डील करने का अनुभव हो. किसी अपॉइंटमेंट को शेड्यूल करने से पहले, सुनिश्चित करें कि आप अपने डॉक्टर से सलाह लें, खासकर अगर आपको डायबिटीज, लो ब्लड प्रेशर, किडनी की बीमारी है, या हाल ही में पेट की सर्जरी हुई हो.
सबसे अहम बात, किसी भी परिस्थिति में अपनी दवा लेना बंद न करें. हालांकि योग का नियमित अभ्यास दवा पर आपकी निर्भरता को कम कर सकता है या आपको बिना दवा के भी काम करने में सक्षम कर सकता है, लेकिन आपको अपने डॉक्टर की सलाह के बिना उन्हें लेना बंद नहीं करना चाहिए.
(डॉ के शनमुगम जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट में एसिस्टेंट चीफ मेडिकल ऑफिसर हैं.)
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