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कोरोना वायरस: 6 महीने बाद दुनिया ने इसके बारे में अब तक क्या जाना?

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दुनियाभर के साइंटिस्ट, हेल्थ एक्सपर्ट को 6 महीने पहले कोरोना वायरस के बारे में पता चला था. अब तक इस वायरस से जुड़ी कितनी जानकारी जुटा पाए हैं. हमें इस बारे में क्या पता है और क्या नहीं? एक नजर डालते हैं.

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कहां से आया कोरोना वायरस?

दुनिया ये मानती आ रही है कि कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई है. हालांकि चीन और अमेरिका इसे लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. कोरोना वायरस कहां से शुरू हुआ इसे लेकर अभी कोई साफ जानकारी नहीं हैं. इसकी जांच की मांग को लेकर 73वीं वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक ड्राफ्ट प्रस्ताव पेश किया गया है. चीन का बचाव करते हुए सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन ने इस पूरे मामले में ट्रांसपेरेंसी और जिम्मेदारी के साथ काम किया है.

कोरोना वायरस जिसे ऑफिशियली SARS-CoV-2 कहते हैं, ये उन वायरस से मिलता-जुलता है, जो चमगादड़ को संक्रमित करता है, हालांकि ये माना गया कि ये चमगादड़ से जानवर और फिर इंसानों में आया लेकिन ये कंफर्म नहीं है. रिपोर्ट्स में पेंगोलिन से इंसानों में संक्रमण होने का भी दावा किया गया.

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कोरोना वायरस का ‘पेशेंट जीरो’ कौन?

अब तक ‘पेशेंट जीरो’ यानी COVID-19 से संक्रमित पहले शख्स के बारे में साफ जानकारी नहीं है. मार्च में कई न्यूज रिपोर्टस छपीं और वुहान शहर की 57 साल की महिला वेई गुइजियान को ‘पेशेंट जीरो’ बताया गया, जो इलाज से ठीक भी हो गईं. वो फूड मार्केट में झींगा मछली बेचती थीं.

लेकिन वुहान म्युनिसिपल हेल्थ कमीशन ने पुष्टि की थी कि वेई उन पहले 27 मरीजों में से हैं जो COVID-19 टेस्ट में पॉजिटिव आईं.

कब आया पहला मामला?

WHO को चीन ने बताया है कि पहला मामला 8 दिसंबर, 2019 को सामने आया. द लैंसेट मेडिकल जर्नल में एक स्टडी में दावा किया गया कि COVID-19 से संक्रमित पहले व्यक्ति की पहचान 1 दिसंबर 2019 को हुई थी. हालांकि गार्जियन में मार्च में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि चीन की मीडिया के मुताबिक नवंबर में ही चीन में इसका संक्रमण शुरू हो चुका था.

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किस सतह पर वायरस कितनी देर जिंदा रहता है?

ये इस बात पर निर्भर करता है कि सतह कौन सी है. दरवाजे का हैंडल, लिफ्ट बटन जैसे मेटलिक सरफेस पर ये 48 घंटों तक एक्टिव रह सकते हैं. अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ- NIH की रिसर्च के मुताबिक SARS-CoV-2 वायरस, कार्डबोर्ड्स पर 24 घंटे तक जिंदा रहता है. जबकि प्लास्टिक और स्टील की सतह पर 2 से 3 दिन तक जिंदा रहता है. जबकि तांबे की सतह पर ये वायरस 4 घंटे तक रह सकता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी संक्रमित सतह को छूने से आपको कोरोना वायरस हो ही जाएगा. जब तक ये आपके मुंह, आंख, नाक के जरिए आपके शरीर में नहीं जाता, तब तक आप ठीक हैं. इसलिए बार-बार चेहरे को छूने से मना किया जाता है. हालांकि, ह्यूमन बॉडी से बाहर वायरस कंसंट्रेशन यानी क्षमता में हर सेकेंड गिरावट आती है. समय के साथ वायरस खत्म हो जाता है.

कितने लोग संक्रमित हुए हैं?

ये सबसे बुनियादी सवालों में से एक है, और अहम भी. दुनिया भर में लाखों केस की पुष्टि की गई है, लेकिन ये संक्रमण की कुल संख्या का एक अंश है. क्योंकि कई ऐसे लोग हो सकते हैं जिनमें वायरस तो है लेकिन वो बीमार महसूस नहीं करते हैं. भारत की बात करें तो ICMR के मुताबिक 80% मामलों में लक्षण नहीं दिख रहे. साथ ही संक्रमितों की संख्या टेस्टिंग पर निर्भर करती है.

कुछ लोग ज्यादा या कम बीमार कैसे पड़ रहे हैं?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि वायरल संक्रमण के प्रति मरीज का इम्यून सिस्टम बीमारी की गंभीरता को निर्धारित करता है. अगर इम्यून सिस्टम ओवरड्राइव में चला जाए तो ये खतरनाक असर दिखा सकता है और लंग्स और बाकी अंगों को डैमेज कर सकता है. इम्यून फंक्शन में उम्र के साथ गिरावट आती है. डायबिटिक, कार्डियोवस्कुलर डिजीज से ग्रसित लोग अगर चपेट में आ जाएं तो हालत गंभीर हो जाती है. इसलिए बुजुर्गों को ज्यादा खतरा है. इसके अलावा एक्सपर्ट्स का मानना है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इसका खतरा ज्यादा है.

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क्या दोबारा संक्रमण हो सकता है?

सार्स और मार्स वायरस (जो कि कोरोना वायरस की फैमिली से ही हैं) की पहले की किस्मों में दोबारा संक्रमण देखने को नहीं मिला. इसलिए ये कहा जा सकता है कि एक बार संक्रमण के बाद वायरस के खिलाफ शरीर एंटी बॉडीज बना लेता है. इससे भविष्य के लिए इस वायरस से बचाव हो जाता है.

कोरोना वायरस को लेकर वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर सहमति है कि टेस्टिंग की दिक्कत के कारण ऐसा हो सकता है. अगर मरीज को गलत टेस्टिंग की बुनियाद पर ये कह दिया जाए कि आप ठीक हो गए हैं, तो ऐसा हो सकता है. या वायरल रेमनेंट्स (अवशेष) से भी ये मुमकिन है जो एक्टिव इंफेक्शन खत्म होने के बाद लंबे समय तक सर्कुलेट होते हैं. लेकिन क्योंकि ये वायरस नया है इसलिए आगे इसका बिहेवियर क्या हो सकता है, इस बारे में पुष्टि नहीं की जा सकती.

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कितने दिन में वायरस बीमार कर सकता है और कितने दिन के लिए आप बीमार हो सकते हैं?

कोरोना वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड और लक्षण में कम से कम 14 दिन लगते हैं. अब तक जो मामले सामने आए हैं उनके आधार पर कहा जा रहा है कि संक्रमण के 5 दिन के भीतर लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं. 5 में से 4 लोगों के लिए ये फ्लू जैसे लक्षणों के साथ मामूली बीमारी की तरह दिख सकती है. शुरुआती लक्षण बुखार और सूखी खांसी होते हैं और इन लक्षणों से आप एक हफ्ते में रिकवर भी हो सकते हैं. कई लोगों को तो शायद पता भी नहीं होता है कि उन्हें कोरोना संक्रमण है. इसके अलावा स्वाद और गंध महसूस न होना, डायरिया जैसे एडिशनल लक्षण भी सामने आए हैं. स्थिति गंभीर तब होती है जब ये वायरस फेफड़ों में पहुंचता है और वहां एयरसैक बनाने लगता है. इसके बाद मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और उसे निमोनिया हो सकता है.

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भारत में कम मौतों की वजह क्या है?

कोरोना से भारत में (2.8%) दुनिया (6%) के मुकाबले काफी कम मौतें हो रही हैं. माना ये भी जा रहा है कि भारत में युवा आबादी ज्यादा है और इस वजह से संक्रमण से मौतें कम हो रही हैं. बुजुर्गों में इस संक्रमण से मौत का जोखिम ज्यादा होता है. बीसीजी वैक्सीन भी इससे बचाव का एक कारण बताया गया और इसपर काफी चर्चा हुई. ये इंसानी शरीर को ट्यबूरक्लोसिस या टीबी से बचाता है. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने कहा है, “इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि बीसीजी का टीका कोविड-19 के संक्रमण से बचाव करता है.”

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कोरोना के इलाज, दवाओं और वैक्सीन को लेकर क्या जानते हैं?

मरीजों का लक्षणों के आधार पर इलाज किया जा रहा है. कई रिपर्पज ड्रग का इस्तेमाल किया गया और कई का असर जानने के लिए क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है.

रेमडेसिविर

रेमडेसिविर, एक प्रायोगिक एंटी-वायरल दवा है, जिसे इबोला के खिलाफ गिलियड साइंसेज ‘Gilead Sciences’ ने तैयार किया था. COVID-19 के संभावित इलाज में इस दवा को असरदार माना जा रहा है, हालांकि इस पर कई ट्रायल अभी चल रहे हैं.
अमेरिका में, फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) की ओर से रेमडेसिविर को मई की शुरुआत में कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन जारी की गई थी. भारत में गंभीर COVID-19 मरीजों के इलाज के लिए 'प्रतिबंधित आपातकालीन इस्तेमाल' की मंजूरी दी गई है यानी इसका इस्तेमाल कुछ शर्तों के साथ किया जा सकेगा.
गिलियड के फेज थ्री के नतीजों के मुताबिक इस दवा के इस्तेमाल से कोरोना के मरीजों में उन मरीजों के मुकाबले जल्द सुधार दिखा, जिन्हें ये दवा नहीं दी गई थी. ये ट्रायल कोरोना के मॉडरेट मामलों पर किया गया था, जो हॉस्पिटल में एडमिट थे.

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन

COVID-19 के इलाज में मलेरिया की जिस दवा के कारगर होने की उम्मीद के साथ दुनिया भर में ट्रायल किए जा रहे थे, उस पर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने फिलहाल रोक लगा दी है. कई रिपोर्ट में बताया गया है कि एंटी मलेरिया दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का कोरोना के इलाज में कोई फायदा नहीं है और तो और नुकसान की ज्यादा आशंका है. अब WHO इसकी समीक्षा करेगा.

WHO ने कोरोना का इलाज और दवा विकसित करने के लिए सॉलिडेरिटी ट्रायल की पहल की है. रेमेडेसविर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, लोपिनावीर-रिटोनावीर. मरीज पर इन दवाओं का ट्रायल किया जाएगा.

वैक्सीन को लेकर क्या चल रहा है?

WHO के मुताबिक दुनिया भर में 100 से ज्यादा वैक्सीन तैयार हो रहे हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ChAdOx1 nCoV-19 नाम की वैक्सीन पर काम कर रही है. दुनियाभर में ऐसा समझा जा रहा है कि ये वैक्सीन अन्य वैक्सीन के मुकाबले आगे चल रही है.
लेकिन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर एड्रियन हिल ने कहा है कि आने वाले वैक्सीन ट्रायल में 10,260 वॉलंटियर्स को शामिल किया जा रहा है. लेकिन हो सकता है कि इससे कोई रिजल्ट ना मिले क्योंकि ब्रिटेन में तेजी से कोरोना वायरस के मामले घट रहे हैं और संक्रमण दर में कमी आ रही है.

अमेरिका की मॉडर्ना वैक्सीन भी फ्रंट रनर है लेकिन इनके शुरुआती नतीजे सामने आए हैं, ज्यादा डिटेल्स सामने आना अब भी बाकी है.

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