नवंबर के आखिरी सप्ताह में ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका कोरोनावायरस वैक्सीन के बारे में बात कर रही एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. वीडियो में महिला ये कह रही थी कि इस वैक्सीन में गर्भ से गिराए गए नर भ्रूण के फेफड़े के टिशू का इस्तेमाल किया गया है.
हालांकि, हमने पाया कि वीडियो ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन में इस्तेमाल की गई सेल लाइन की गलत पहचान बता रहा है. हमने ये भी पाया कि गर्भ से गिराए गए भ्रूण के टिशू के वैक्सीन में 'इस्तेमाल' की बात गलत है.
दावा
वैक्सीनेशन के खिलाफ वकालत करने वाला ये वीडियो 15 नवंबर को एक फेसबुक पेज पर लाइव प्रसारित किया गया. वीडियो का पहला फ्रेम एस्ट्राजेनेका के COVID-19 वैक्सीन ChAdOx1-S की पैकेजिंग की तस्वीर दिखाता है.
वीडियो में बात कर रही महिला वैक्सीन पर किए गए रिसर्च का एक पेज खोलती है और उसके एक हिस्से को पढ़ती है जिसमें कहा गया कि, “हमने इंसानों के MRC-5 और A549 सेल लाइन के ChAdOx1 nCoV-19 जीनोम से एक्सप्रेशन ट्रांसक्रिप्ट को एनालाइज करने के लिए डायरेक्ट RNA सीक्वेंसिंग का इस्तेमाल किया. ये सेल लाइन वेक्टर रेप्लीकेशन के लिए नन परमिसिव है जो कि परमिसिव सेल लाइन HEK293 के साथ होता है."
वीडियो में एक रिसर्च पेपर में मेडिकल रिसर्च काउंसिल सेल लाइन (MRC-5) पर लिखी बातों का जिक्र किया गया है और इस टॉपिक पर विकिपीडिया पेज भी दिखाया जाता है. विकिपीडिया पेज MRC-5 सेल लाइन का वर्णन करता है "मूल रूप से 14 सप्ताह के गिराए गए कोकेशियन नर भ्रूण के फेफड़े के टिशू के रिसर्च से विकसित."
महिला अपने दर्शकों को बताती है कि वैक्सीन में निश्चित रूप से "14 सप्ताह के गर्भपात वाले नर भ्रूण के फेफड़े के टिशू हैं."
फेसबुक से अब हटा लिए गए इस वीडियो को 1,10,000 से ज्यादा लोगों ने शेयर किया था.
महिला बार-बार दर्शकों को अपने ग्रुप में वीडियो शेयर करने के लिए कहती है और उन्हें याद दिलाती है कि वीडियो को हटाया जा सकता है. नतीजा ये हुआ कि वीडियो को कई लोगों ने ट्विटर और अन्य एंटी-वैक्सीनेशन वेबसाइटों पर शेयर किया.
हमने क्या पाया?
ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन टीम के एक प्रवक्ता ने द क्विंट को बताया कि वैक्सीन "एक प्रोड्यूसर सेल लाइन, मानव भ्रूण किडनी 293 TREX कोशिकाओं (HEK-293 )" का इस्तेमाल कर बनाया गया है, न कि MRC-5 सेल लाइन का इस्तेमाल कर, जैसा कि वीडियो में दावा किया गया है.
बयान में कहा गया कि “HEK-293 अलग-अलग साइंटिफिक चीजों में इस्तेमाल की जाने वाली कोशिकाओं की एक खास लाइन को दिया गया नाम है. मूल कोशिकाओं को 1973 में एक गिराए गए भ्रूण की किडनी से लिया गया था. आजकल इस्तेमाल की जाने वाली HEK 293 कोशिकाएं उन मूल कोशिकाओं के क्लोन है, न कि अभी गिराए गए बच्चों के भ्रूण का हिस्सा हैं."
वीडियो में जिस वैक्सीन स्टडी का जिक्र किया गया उसके सह-लेखक डॉ डेविड मैथ्यूज ने फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट पॉलिटिफैक्ट से कहा कि "महिला ने भ्रामक रूप से उनके रिसर्च पेपर को संक्षेप में पेश किया है."
इस पेपर में ये बताया गया है कि ऑक्सफोर्ड वैक्सीन कैसे व्यवहार करता है जब ये आनुवंशिक रूप से सामान्य मानव कोशिका के अंदर होता है. वैक्सीन MRC-5 कोशिकाओं में नहीं विकसित की गई है.मैथ्यूज नेपॉलिटिफैक्ट को बताया
कुछ वायरस मानव कोशिकाओं में बेहतर तरीके से विकसित होने के लिए जाने जाते हैं. कोरोनावायरस के मामले में, मोडिफाइड वायरस HEK 293 सेल लाइन में विकसित किया जाता है और फिर फाइनल प्रोडक्ट तैयार होने से पहले सेल कल्चर मटीरियल को हटाने के लिए सफाई की जाती है. ये प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि कोई भी मानव पदार्थ वैक्सीन में न रहे.
हेपेटाइटिस, खसरा और चिकनपॉक्स जैसे कई वैक्सीन को विकसित करने में सेल लाइन जरूरी रही हैं.
जाहिर है, फेसबुक वीडियो में किया गया दावा कि ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका कोविड -19 वैक्सीन में "गिराए गए नर भ्रूण मौजूद हैं" गलत है. वीडियो में वैक्सीन के लिए विकसित किए जा रहे वायरस के सेल लाइन की पहचान MRC-5 के रूप में भी गलत की गई है.
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