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वुहान के दो अस्पतालों में वैज्ञानिकों ने हवा में पाया कोरोना वायरस

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Health News
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चीन के वैज्ञानिकों ने इस बात की आशंका जताई है कि कोरोना वायरस डिजीज-2019 (COVID-19) बीमारी पैदा करने वाला वायरस, जिसे SARS-CoV-2 नाम दिया गया है, इस वायरस में हवा के जरिए फैलने (एयरबोर्न ट्रांसमिशन) की क्षमता हो सकती है. हालांकि अभी तक यही पाया गया है कि ये वायरस मुख्य रूप से रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट के जरिए फैलता है.

रिसर्च जर्नल नेचर में आई स्टडी के मुताबिक ये वायरस हवा में रह सकता है, खासकर भीड़ वाली जगह और कम हवादार जगहों पर इसके ज्यादा देर तक मौजूद रहने की संभावना हो सकती है.

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कुछ लैब प्रयोगों में ये पहले भी कहा जा चुका है कि ये वायरस हवा में रह सकता है. वहीं फरवरी और मार्च में दो अन्य अध्ययनों में भी ये निष्कर्ष निकाला गया था कि वायरस ऐसी जगह पर मौजूद हो सकते हैं, जहां वेंटिलेशन की कमी होती है.

इस स्टडी में वुहान के दो अस्पतालों के ऐरोसॉल में वायरस की मौजूदगी जांची गई और पाया गया कि आइसोलेशन वार्ड और रोगी के लिए हवादार कमरों के ऐरोसॉल में SARS-CoV-2 RNA बहुत कम था, लेकिन ये मरीजों के टॉयलेट एरिया में ज्यादा था.

वहीं कुछ मेडिकल स्टाफ एरिया में भी वायरल RNA शुरुआत में ज्यादा पाया गया, लेकिन सैनिटाइजेशन से लेवल काफी कम हुआ.

हालांकि हवा में मौजूद वायरस से संक्रमण का कितना खतरा हो सकता है और वायरस कितनी देर तक हवा में रह सकता है, ये स्टडी इस बारे में नहीं है. इसमें सिर्फ ये पता लगाया गया है कि कुछ जगहों पर वायरस ऐरोसॉल में पाया गया है.

इसमें कहा गया है कि रूम वेंटिलेशन, खुली जगह, सैनिटाइजेशन, बाथरूम को डिसइन्फेक्ट कर ऐरोसॉल में वायरस की मौजूदगी घटाई जा सकती है.

वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक रोगियों के कमरे की हवा में कोरोना वायरस के मौजूदगी को लेकर आगे और स्टडीज की जरूरत है.

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एयरबोर्न ट्रांसमिशन और रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन का मतलब

अभी तक यही पाया गया है कि ये वायरस मुख्य रूप से रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट (5μm से ज्यादा डायमीटर वाले कण) के जरिए फैलता है, जैसे जब कोई संक्रमित शख्स के खांस या छींक रहा हो, तो इस दौरान जो ड्रॉपलेट निकलती हैं, उससे करीबी संपर्क (1 मीटर के दायरे में) वाले लोगों को संक्रमित होने का खतरा हो सकता है.

एक्सपर्ट बताते हैं कि रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट देर तक हवा में नहीं रह सकते हैं और अपनी साइज व आकार के कारण नीचे आ जाते हैं.

इस तरह संक्रमित शख्स के आसपास की चीजों को छूने और हैंड हाइजीन का ख्याल न रखने से संक्रमण का खतरा रहता है.

वहीं एयरबोर्न ट्रांसमिशन रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन से अलग होता है क्योंकि इसमें वायरस 5μm से कम डायमीटर वाले कणों में मौजूद रहता है, जो हवा में ज्यादा देर तक रह सकते हैं और 1 मीटर से ज्यादा दूरी तक संचरण कर सकते हैं.

COVID -19 के संदर्भ में, एयरबोर्न ट्रांसमिशन विशिष्ट परिस्थितियों और सेटिंग्स में संभव हो सकता है, जिसमें एरोसोल उत्पन्न करने वाली प्रक्रियाएं या सपोर्ट ट्रीटमेंट किए जाते हैं. इसलिए WHO ऐसी सेटिंग्स में एयरबोर्न सावधानी बरतने की सलाह देता है.

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