यूपी के महाराजगंज में रहने वाले विनोद कुमार पांडे उस वक्त काफी घबरा गए, जब उनके 22 साल के बेटे हरिशंकर के हाथ-पांव काम नहीं कर रहे थे.
बेटे का हाथ-पैर काम नहीं कर रहा था. खुद से उठ-बैठ नहीं पा रहा था, चल नहीं पा रहा था. मेडिकल कॉलेज में दिखाया तो पता चला कि उसे जीबी सिंड्रोम हुआ है.विनोद कुमार पांडे, मरीज के पिता
करीब डेढ़ महीने से जीबी सिंड्रोम का इलाज करा रहे हरिशंकर पांडे बताते हैं कि अब मैं चल-फिर सकता हूं, लेकिन अभी भी हाथ-पैर में ताकत नहीं है.
क्या है जीबी सिंड्रोम?
Guillain-Barre Syndrome (GBS), जिसे जीबी सिंड्रोम कहा जाता है, एक बेहद दुर्लभ डिसऑर्डर है. इसमें बॉडी का इम्यून सिस्टम परिधीय तंत्रिका तंत्र (दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड के बाहर की तंत्रिकाओं ) पर हमला करता है. इससे दिमाग को सिग्नल भेजने की तंत्रिकाओं की क्षमता कमजोर हो जाती है और मांसपेशियां नर्व सिग्नल्स पर प्रतिक्रिया नहीं करतीं.
GB सिंड्रोम के लक्षण
हरिशंकर बताते हैं इसमें पहले तो हाथ और पैर में झुनझुनाहट, सिर दर्द, शरीर में अकड़न हुई, लगा कि कमजोरी है.
मुझे पहले से कमजोरी महसूस हो रही थी, लेकिन मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मैं चलते वक्त लड़खड़ा रहा था. एक दिन अचानक मैं कार से चाबी नहीं निकाल पा रहा था. शर्ट का बटन बंद नहीं कर पा रहा था.हरिशंकर पांडे, जीबी सिंड्रोम पेशेंट
हरिशंकर के मुताबिक उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता था. हाथ-पैर काम नहीं कर रहा था.
आम तौर पर जीबीएस के लक्षणों में सबसे पहले हाथ-पैर में कमजोरी और सिहरन सामने आता है. जीबीएस के लक्षण बड़ी तेजी से बढ़ते हैं. आपको थकान और कमजोरी लगेगी, जो बढ़ती जाएगी. आपकी अनैच्छिक क्रिया भी धीमी हो सकती है.
जीबी सिंड्रोम में ये लक्षण देखे जाते हैं:
- उंगलियों, टखनों या कलाई में चुभन, सुई सी चुभन
- पैरों में कमजोरी महसूस होना
- चलने-फिरने में तकलीफ या लड़खड़ाना
- आंखों या चेहरे की मूवमेंट में दिक्कत, इसमें बोलना, चबाना या निगलना शामिल है
- दर्द होना
- लो या हाई ब्लड प्रेशर
- सांस लेने में परेशानी
- ब्लैडर पर से कंट्रोल हट जाना
- दिल का तेजी से धड़कना
कुछ लोगों को थोड़ी कमजोरी महसूस हो सकती है, तो कुछ लोगों को लकवा मार सकता है और सांस या निगलने में दिक्कतें हो सकती है.
जीबीएस की जांच और इलाज
जीबीएस का पता लक्षणों, न्यूरोलॉजिकल एग्जामिनेशन और कुछ तरह के टेस्ट से लगाया जाता है.
एसएल रहेजा फोर्टिस हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ कौस्तुभ महाजन के मुताबिक जीबीएस का पहले पता लगना अक्सर इसलिए मुश्किल हो सकता है क्योंकि इसके लक्षण दूसरे न्यूरोलॉजिकल कंडिशन की तरह होते हैं.
जीबीएस का पता करने के लिए स्पाइनल फ्लूइड की जांच कर प्रोटीन का लेवल देखा जाता है क्योंकि जीबीएस के पेशेंट में ये लेवल हाई होता है.
इसके लक्षण की जरा भी आशंका होते ही तुरंत डाॅक्टर से संपर्क करना चाहिए क्योंकि इसमें मरीज की हालत बेहद तेजी से खराब होती चली जाती है.
अगर आपके डॉक्टर को लगता है कि आपको जीबीएस है, तो कुछ टेस्ट के जरिए ये देखा जाता है कि आपकी मांसपेशियां और तंत्रिकाएं कितना काम कर रही हैं.
मुझे आशंका थी कि मैं अब दोबारा खड़ा हो पाऊंगा या नहीं. फिर मुझे डॉक्टर ने बताया कि घबराने की बात नहीं है. कुछ इंजेक्शन लगने के बाद मैं ठीक हो जाऊंगा, ठीक होने में लगभग एक से डेढ़ महीने लगेंगे.हरिशंकर पांडे
जीबीएस के 85 प्रतिशत पेशेंट 6 से 12 महीनों में पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं.
इसके इलाज के लिए दो मुख्य तरीके हैं:
1. प्लाज्माफेरेसिस
2. Intravenous Immunoglobulins (IvIg)
दोनों ही ट्रीटमेंट समान रूप से प्रभावी हैं.
प्लाज्माफेरेसिस के तहत रोगी के शरीर से ब्लड बाहर निकाल कर एंटीबॉडीज को अलग किया जाता है, जो नर्व्स पर हमला कर रही होती हैं और फिर ब्लड को शरीर में वापस चढ़ा दिया जाता है.
इसी तरह Intravenous Immunoglobulins नर्व्स को नुकसान पहुंचाने वाले एंटीबॉडीज को न्यूट्रलाइज करता है.
ये जरूरी है कि जीबीएस के लक्षण दिखने के बाद जल्द से जल्द या 7 से 14 दिन में इलाज शुरू हो जाए.
बेटे की हालत देखकर हम उसे एक हॉस्पिटल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टर ने उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराने को कहा. हॉस्पिटल में एडमिट कराने के तीसरे दिन से हालत में धीरे-धीरे थोड़ा सुधार दिखा. उसे एक हफ्ते बाद डिस्चार्ज किया गया. अभी हाथ-पांव काम तो कर रहा है, चल-फिर ले रहा है, लेकिन उतना बल नहीं लग पा रहा है.पेशेंट हरिशंकर के पिता
GBS के मरीजों को हॉस्पिटल में एडमिट करना इसलिए भी जरूरी होता है ताकि उनकी हालत पर नजर रखी जा सके और किसी भी तरह की तकलीफ बढ़ने (जैसे सांस लेने में परेशानी) पर तुरंत मेडिकल सुविधाएं दी जा सकें.
करीब डेढ़ महीने से इलाज करा रहे हरिशंकर अभी भी दौड़ नहीं सकते हैं. वो बताते हैं कि अभी उतनी ताकत महसूस नहीं होती.
GBS क्यों होता है?
इसकी असल वजह के बारे में पता नहीं है. सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक जीबीएस के कई मरीजों ने डायरिया या सांस से जुड़ी बीमारी के बाद इसके लक्षण अनुभव किए. इंफेक्शन को जीबीएस का एक आम रिस्क फैक्टर माना जाता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक जीबीएस से कोई भी पीड़ित हो सकता है, लेकिन पुरुषों को और 50 की उम्र के बाद इसका खतरा ज्यादा होता है.
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