राजस्थान सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों में सामने आ रहे है म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) रोग को बुधवार को महामारी घोषित कर दिया. राज्य के चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग ने इस बारे में अधिसूचना जारी की.
ये सुर्खियों में तब आया जब मई की शुरुआत में दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में मरीजों में ये रहस्यमय इंफेक्शन पाया गया और इसे ‘ब्लैक फंगल इंफेक्शन’ नाम दिया गया. इस इंफेक्शन को लेकर खासतौर से इसलिए चिंता है क्योंकि यह जिस तेजी से फैलता है उससे लोगों की नजर (eyesight) और यहां तक कि आंख भी बर्बाद हो सकती है.
लेकिन कुल मिलाकर ‘ब्लैक फंगस इंफेक्शन’ या म्यूकरमाइकोसिस (Mucormycosis) कतई रहस्यमय नहीं है. यह सिर्फ बहुत दुर्लभ था. हालांकि, कोविड महामारी बढ़ने के साथ, म्यूकर (श्लेष्मा या एक तरह का कवक) से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है.
बीते कुछ महीनों में कोविड के इलाज में स्टेरॉयड के अंधाधुंध इस्तेमाल से इस बीमारी में चिंताजनक बढ़ोत्तरी देखी गई है.
म्यूकरमाइकोसिस क्या है? इसके लिए कोविड कैसे जिम्मेदार है? और स्टेरॉयड का इससे क्या लेना-देना है? इन सवालों को लेकर फिट ने फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद में ईएनटी कंसल्टेंट डॉ. अपर्णा महाजन से बात की.
म्यूकर माइकोसिस बीमारी क्या है?
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार म्यूकरमाइकोसिस एक गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है, जो कि मोल्ड्स के समूह के कारण होता है, जिसे माइक्रोमाइटिस कहते हैं.
“फंगस या फफूंद हमारे आस-पास हर जगह मौजूद हैं, लेकिन किसी के शरीर में इंफेक्शन पैदा होने के लिए खास तरह के वातावरण की जरूरत होती है.”डॉ. अपर्णा महाजन, ईएनटी कंसल्टेंट, फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद
वह कहती हैं, “यह आमतौर पर नाक, साइनस (नाक के रास्तों), आंखों और दिमाग में पाया जाता है. एक बार जब यह दिमाग में फैल जाता है, तो इसका इलाज बहुत मुश्किल हो सकता है.”
यह इंफेक्शन इतना खतरनाक क्यों है?
वह आगे कहती हैं, “यह खतरनाक इंफेक्शन की एक किस्म है, जिसमें मृत्यु-दर बहुत ऊंची है.”
एक पुराने लेख के लिए फिट से बात करते हुए दिल्ली में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे ने बताया था कि किस तरह म्यूकर से संक्रमित लोगों में मृत्यु-दर लगभग 50-70 फीसद है.
डॉ. महाजन कहती हैं, “अगर इंफेक्शन एक बिंदु से ज्यादा फैल जाता है तो मरीज को बचाना मुमकिन नहीं होता.” और जो चीज इसे और भी घातक बनाती है वह यह कि ये बहुत तेजी से फैलता है.
“यह कुछ हद तक कैंसर की तरह बर्ताव करता है, लेकिन कैंसर का जानलेवा असर होने में कम से कम कुछ महीने लगते हैं. यह कुछ दिनों या कुछ घंटों के भीतर जानलेवा हो सकता है.”डॉ. अपर्णा महाजन, ईएनटी कंसल्टेंट, फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद
इतना खतरनाक होने के बावजूद, हाल के दिनों तक इसे बहुत चिंताजनक नहीं माना जाता था.
डॉ. महाजन कहती हैं, “यह एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी हुआ करती थी. बड़ी संख्या में मरीजों वाले सेंटर में भी 3 या 4 सालों में हमारे सामने एक-दो मामले आते थे.”
अगर म्यूकर दुर्लभ है, तो यह अब इतनी तेजी से क्यों फैल रहा है?
"पहले गंभीर रूप से इम्युनिटी-प्रभावित मरीजों, जैसे कि कैंसर के मरीज, बेकाबू डायबिटीज वाले लोग, ट्रांसप्लांट कराने वाले लोग जो इम्युनो-सप्रेसेंट (बाहरी अंग को शरीर द्वारा स्वीकार करने के लिए एंटी-रिजेक्शन) थेरेपी पर हैं, उन लोगों का इसका शिकार बनने की संभावना थी, लेकिन अब कोविड के मरीजों में यह बहुत ज्यादा हो रहा है.”
डॉ. महाजन के अनुसार इस बीमारी की वजहें हो सकती हैं.
हर कोविड वायरस ऐसा वातावरण बनाता है जिससे फंगस के बढ़ने में मदद मिलती है.
यह कोविड मरीज की इम्युनिटी प्रतिक्रिया में कमी की वजह से हो सकता है.
लेकिन तब भी कोविड मरीजों में इंफेक्शन काफी हद तक गंभीर डायबिटीज, कैंसर या दूसरों बीमारियों या इम्यूनोसप्रेसेंट वाले लोगों तक सीमित था.
डॉ. महाजन बताती हैं कि अब म्यूकरमायकोसिस के तेजी से फैलने की वजह दूसरे मायनों में सेहतमंद माने जाने वाले कोविड मरीजों में स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल है.
क्या म्यूकर मामलों में बढ़ोत्तरी की वजह स्टेरॉयड हैं?
स्टेरॉयड की खासतौर से जब ज्यादा डोज ली जाती है या लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाता है तो म्यूकरमाइकोसिस बीमारी हो सकती है.
डॉ महाजन के अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि “स्टेरॉयड्स हमारी इम्युनिटी को घटा सकते हैं, और इसमें ब्लड शुगर के स्तर में बढ़ोत्तरी करने की प्रवृत्ति है, यहां तक कि बिना डायबिटीज वालों में भी. वे इंफेक्शन को फैलने का मौका देने वाला मददगार वातावरण भी बना सकते हैं.”
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि स्टेरॉयड अगर कोविड के शुरुआती चरण में लिया जाता है, तो इससे नुकसान हो सकता है.
“कई लोग शुरुआती चरण में हाई डोज स्टेरॉयड लेते हैं. इससे वायरस ज्यादा तेजी से अपनी अनुकृतियां (रेप्लीकेटिंग) बना सकता है. इससे हल्के लक्षण वाले मरीजों में फेफड़ों में वायरस तेजी से फैलने से गंभीर वायरल निमोनिया हो सकता है.”डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, एम्स, नई दिल्ली
क्या सभी स्टेरॉयड बेस्ड दवाएं म्यूकरमाइकोसिस का गंभीर खतरा पैदा करती हैं?
ऐसा जरूरी नहीं है. म्यूकरमाइकोसिस के होने का खतरा मुख्य रूप से सिस्टेमिक स्टेरॉयड के इस्तेमाल से है.
इस समय सिस्टेमिक स्टेरॉयड का इस्तेमाल कोविड के इलाज के लिए किया जा रहा है लेकिन अगर इसका गलत इस्तेमाल किया जाता है तो यह म्यूकरमाइकोसिस की वजह बन सकता है, इसमें डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) और मिथाइलप्रेडनिसोलोन (Methylprednisolone) शामिल हैं.
ये दवाएं मध्यम स्तर के कोविड के इलाज के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस का हिस्सा हैं, और अभी भी ऑक्सीजन के साथ कोविड के ट्रीटमेंट के ज्यादातर आम विकल्पों में से एक है. डेक्सामेथासोन को अस्पताल में भर्ती सांस लेने में दिक्कत वाले कोविड-19 मरीजों पर बहुत असरदार पाया गया है, जिन्हें रिकवरी ट्रायल में सप्लीमेंटरी ऑक्सीजन या मैकेनिकल वेंटिलेशन के साथ इलाज की जरूरत होती है.
दूसरी तरफ, कॉर्टिकोस्टेरॉइड इनहेल्ड ब्यूडेसोनायड (Budesonide), से भी, जिसे शुरुआती कोविड के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उससे ऐसा कोई खतरा नहीं है.
इसकी वजह यह है कि सांस से ली जानी ब्यूडेसोनायड एक सिस्टेमिक स्टेरॉयड नहीं है. यह स्थान विशेष पर असर डालती है और स्थानीय स्तर पर फंगल इंफेक्शन (ओरल कैविटी में) पैदा कर सकती है लेकिन म्यूकरमाइकोसिस होने की संभावना नहीं है.
“ब्यूडेसोनायड सांस के रास्ते की लाइनिंग पर चिपक सकती है और सतही फंगल इंफेक्शन कर सकती है. दूसरी ओर, म्यूकर सिस्टेमिक स्तर पर शरीर पर असर डाल सकता है. म्यूकर कोई सतह का इंफेक्शन नहीं है.”डॉ. अपर्णा महाजन, ईएनटी कंसल्टेंट, फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद
वह कहती हैं, “अभी तक सांस से लिए गए ब्यूडेसोनायड से म्यूकरमाइकोसिस होने की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है.”
तो क्या आपको कोविड के ट्रीटमेंट में स्टेरॉयड बेस्ड दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?
अभी तक कोविड का कोई इलाज नहीं है और कोविड वायरस को मार सकने वाली कोई दवा नहीं है.
इस बीच, तमाम स्टेरॉयड ‘सेवियर ड्रग्स’ के रूप में उभरे हैं, जो बीमारी को गंभीर होने से रोकने में सक्षम हैं और इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है.
लेकिन इन सब बातों के बावजूद विशेषज्ञों ने समय-समय पर सिर्फ मध्यम दर्जे की बीमारी के मामले में स्टेरॉयड का इस्तेमाल करने की सलाह दी है. इसी रिकवरी ट्रायल में यह भी पाया गया कि डेक्सामेथासोन अस्पताल में भर्ती ऐसे मरीजों में मृत्यु दर बढ़ा सकता है, जो ऑक्सीजन नहीं ले रहे थे.
स्टेरॉयड बेस्ड दवाओं को लेते समय आपको किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
डॉ. महाजन का कहना है, “स्टेरॉयड सिर्फ डॉक्टर की निगरानी में ही लिया जाना चाहिए.”
“किसी भी शख्स को स्टेरॉयड के मामले में खुद डॉक्टर नहीं बनना चाहिए. स्टेरॉयड ऐसी दवा नहीं है जो बिना डॉक्टर की निगरानी में ली जाए. स्टेरॉयड लेने का समय और अवधि बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर कोविड के मामले में."
महाजन कहती हैं, “शुरुआती 5 से 7 दिनों में, स्टेरॉयड नहीं दिया जाना चाहिए. इसके बाद भी डॉक्टर को मरीज की हालत के आधार पर इसका फैसला लेना चाहिए.”
वह कहती हैं, “स्टेरॉयड को सिर्फ बहुत ही समझदारी से ट्रीटमेंट में शामिल करना चाहिए.”
किन चेतावनी संकेतों पर ध्यान देने की जरूरत है?
डॉ. महाजन म्यूकरमाइकोसिस के लक्षण और चेतावनी संकेतों की लिस्ट बताती हैं.
चेहरे पर किसी भी तरह की सूजन, खासकर आंखों और गालों के आसपास
नाक बहना
नाक बंद होना
सिरदर्द (बाकी लक्षणों के साथ)
“अगर आप इन शुरुआती क्लीनिकल संदेहों या लक्षणों में से किसी को नोटिस करते हैं, तो आपको फौरन ओपीडी में बायोप्सी करानी चाहिए और जितनी जल्दी हो सके एंटीफंगल थेरेपी शुरू करना चाहिए.”डॉ. मनीष मुंजाल, सीनियर ईएनटी सर्जन, सर गंगा राम अस्पताल
डॉ. महाजन स्टेरॉयड से खुद अपना इलाज करने के खिलाफ सावधान करते हुए कहती हैं कि “मरीज अगर डॉक्टर की जानकारी के बिना खुद का इलाज कर रहे हैं, तो ये चेतावनी के लक्षण बिना ध्यान दिए रह सकते हैं.”
क्या म्यूकरमाइकोसिस का इलाज मुमकिन है?
जी हां, इलाज मुमकिन है. लेकिन सफलता की दर और ट्रीटमेंट का तरीका कुछ कारकों पर निर्भर करेगा.
इनमें से एक है, जिस चरण में इंफेक्शन है उससे तय होगा कि मरीज को बचाया जा सकता है या नहीं.
डॉ. महाजन कहती हैं, “इलाज का तरीका बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगा कि किस अंग में बीमारी है. इसके लिए आक्रामक सर्जिकल डेब्रिडमेंट (प्रभावित टिश्यू या अंग को काट कर निकाल देने) की जरूरत पड़ सकती है.”
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