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कोरोना: अमेरिका में प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी, क्यों उठ रहे सवाल?

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अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने COVID-19 ट्रीटमेंट के लिए प्लाज्मा थेरेपी पर रोक के एक हफ्ते बाद इसे इमरजेंसी मंजूरी दे दी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस थेरेपी की मंजूरी के लिए लगातार जोर दे रहे थे.

FDA के मुताबिक मौजूदा वैज्ञानिक सबूतों से पता चलता है कि COVID-19 के इलाज में ये थेरेपी असरदार है. वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि Convalescent प्लाज्मा थेरेपी के लिए आपातकालीन मंजूरी दे दी गई है.

साथ ही ट्रंप ने दावा किया कि इस इलाज से कोरोना वायरस से होने वाली मौत का खतरा एक-तिहाई कम हो जाता है. हालांकि, दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने ट्रंप और FDA के इस दावे पर सवाल उठाए हैं.

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प्लाज्मा थेरेपी पर क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक?

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एपिडिमियोलॉजिस्ट डॉ एरिक फीगल-डिंग ने FDA के ऐलान पर कहा कि ये गलत निष्कर्ष है और जिस स्टडी का हवाला एजेंसी ने दिया है, वो रैंडम ट्रायल नहीं था. डॉ एरिक ने ट्विटर पर लिखा, "ट्रंप को फर्क नहीं पड़ता लेकिन FDA प्रमुख को तो पता होना चाहिए था!"

फिजिशियन और वैज्ञानिक एरिक टोपोल ने कहा कि Convalescent प्लाज्मा का कोई रैंडम ट्रायल नहीं हुआ है और इसलिए FDA का ऐलान कोई 'उपलब्धि' नहीं है. टोपोल ने ट्वीट में लिखा, "Convalescent प्लाज्मा में कई एंटीबॉडी होती हैं, जिनका कोई निष्क्रिय करने वाला प्रभाव नहीं होता है. ये ज्यादा से ज्यादा मामूली रूप से प्रभावी है."

न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. एंथनी एस फाउची सहित तमाम एक्सपर्ट्स कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी पर मौजूदा डेटा को पहले ही बहुत कमजोर बता चुके हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ये थेरेपी कड़े ह्यूमन ट्रायल स्टेज से नहीं गुजरी है और इसलिए इसके सफल होने का कोई 'पुख्ता सबूत' नहीं है.

भारत में प्लाज्मा थेरेपी फिलहाल एक्सपेरिमेंटल स्टेज पर है. वहीं 30 लोगों पर किए गए एम्स, दिल्ली के शुरुआती विश्लेषण में बताया गया था कि इस थेरेपी को बहुत प्रभावी नहीं पाया गया. प्लाज्मा थेरेपी पर और जानकारी हासिल करने के लिए फिट ने दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुमित रे से बात की.

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COVID-19 में प्लाज्मा थेरेपी क्यों और क्यों नहीं?

प्लाज्मा थेरेपी का आधार ये है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं, उनके ब्लड में ऐसे एंटीबॉडी होने चाहिए, जो वायरस पर हमला कर सकते हैं. इसलिए ठीक हुए लोगों का प्लाज्मा (वो हिस्सा जिसमें एंटीबॉडी होती है) लेकर बीमार लोगों में थेरेपी के तौर पर इस्तेमाल किया जाए.

हमारे खून का करीब एक-तिहाई हिस्सा प्लाज्मा होता है.
(फोटो: iStock)
“प्लाज्मा थेरेपी का सैद्धांतिक फायदा प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए है, तब जब रोगी में पर्याप्त इम्यूनिटी न विकसित हुई हो. लेकिन, COVID-19 में समस्या इम्यून रिस्पॉन्स की कमी नहीं बल्कि गंभीर रोगियों में इम्यून रिस्पॉन्स में गड़बड़ी है.”
डॉ सुमित रे, क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट
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हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली जटिल तरीकों से काम करती है और COVID के साथ समस्या यही है कि यह रोगियों में बिना किसी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की बजाए एक अव्यवस्थित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का कारण बन रहा है.

डॉ रे सवाल करते हैं, "नीदरलैंड की एक स्टडी में दिखाया गया कि कोरोना के 76 प्रतिशत मरीजों में पहले से ही एंटीबॉडी था, फिर ऐसे में और एंटीबॉडी दिए जाने का क्या मतलब है?"

कोरोना वायरस डिजीज में एंटीबॉडी की समस्या नहीं है बल्कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में गड़बड़ी है.

इसका मतलब है कि असल में जो समस्या है प्लाज्मा थेरेपी उसका समाधान नहीं है. वहीं इसके कुछ खतरनाक साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं.

प्लाज्मा थेरेपी के बारे में एक बात कही जाती है कि दूसरी बीमारियों में इसका इस्तेमाल किया जा चुका है और इसलिए ये सुरक्षित है. लेकिन डॉ रे कहते हैं कि सभी बीमारियां एक जैसी नहीं होती हैं.

वो कहते हैं, "आप उस बीमारी के लिए प्लाज्मा दे रहे हैं, जिससे ब्लड क्लॉट भी हो सकता है."

कुछ बीमारियों में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग किया गया था, जहां प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया खराब थी या एंटीबॉडी नहीं बन पाए थे. इसका एक लंबा इतिहास है (डॉ रे कहते हैं, "करीब 100 साल का"), खासकर जब कुछ संक्रमणों के लिए एंटीबायोटिक नहीं थे.

लेकिन जरूरी नहीं है कि प्लाज्मा थेरेपी हर बीमारी में कारगर हो, जैसे इबोला में प्लाज्मा थेरेपी काम नहीं की थी.

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डॉ सुमित रे तीन बातों का जिक्र करते हैं:

  1. COVID मुख्य रूप से रेस्पिरेटरी बीमारी है और प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन से फेफड़े को नुकसान हो सकता है, इसे ट्रांस्फ्यूजन-रिलेटेड एक्यूट लंग इंजरी (TRALI) कहते हैं. ये अपने आप में COVID के सीवियर रोगियों, जो पहले से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम से जूझ रहे हों, उनके लिए खतरनाक हो सकता है.

  2. प्लाज्मा थेरेपी आमतौर पर रक्त के थक्के को बढ़ाने के लिए दी जाती है, लेकिन COVID-19 में अधिक थक्के जमना पहले से ही एक समस्या है - प्रो-थ्रोम्बोटिक अवस्था में हमें रक्त को पतला करने की दवा भी देने की जरूरत पड़ती है.

  3. अगर रोगी में पर्याप्त एंटीबॉडी है, तो प्लाज्मा देने की आवश्यकता नहीं होती है.

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एम्स दिल्ली की ओर से किए गए शुरुआती विश्लेषण में पाया गया कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना रोगियों में मौत का रिस्क नहीं घटा.

एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नीरज निश्चल ने बताया कि निष्कर्षों से पता चलता है कि मरीजों के रिश्तेदारों को तब तक प्लाज्मा थेरेपी पर जोर नहीं देना चाहिए जब तक कि इलाज करने वाला डॉक्टर रोगी को इसके लिए उपयुक्त नहीं मानता.

पीटीआई की एक रिपोर्ट में डॉ निश्चल के हवाले से कहा गया, "इस थेरेपी में रक्त-जनित संक्रमणों और सीरम घटकों के रिएक्शन का रिस्क है जिससे हालत बदतर हो सकती है."

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) भी थेरेपी पर परीक्षण कर रहा है, लेकिन उसकी ओर से कोई निष्कर्ष जारी नहीं किया गया है, जबकि एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट की मंजूरी दी जा रही है.

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फिर कोरोना के रोगियों के इलाज में क्या मददगार है?

डॉ रे कहते हैं कि कोरोना के रोगियों का ट्रीटमेंट अच्छी क्वालिटी के क्रिटिकल केयर पर निर्भर करता है. वो बताते हैं, "कोरोना के मामले में हम ब्लड को पतला करने वाली दवा और थोड़ा स्टेरॉयड इस्तेमाल कर रहे हैं. बाकी इसका इलाज वैसा ही है जैसा हम एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) में करते हैं."

ज्यादातर वायरल इन्फेक्शन की सीधे-सीधे कोई थेरेपी नहीं है. H1N1 में नहीं है, इन्फ्लूएंजा में नहीं है. हम लक्षणों का इलाज करते हैं, जिससे बहुत से लोग ठीक हो जाएंगे और कुछ नहीं भी ठीक होंगे.

शुरुआत में पैनिक था, लेकिन COVID-19 में अब मौत की दर कम हो रही है. इसे मैनेज किया जा रहा है.
डॉ सुमित रे

डॉ रे कहते हैं कि अभी कोई एंटी-कोविड ट्रीटमेंट मौजूद नहीं है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि सिर्फ इस वजह से हम बिना वैज्ञानिक जांच के कोई थेरेपी इस्तेमाल करें.

हम वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं कर सकते हैं और अच्छी क्वालिटी के सपोर्टिव केयर के जरिए ही देखभाल की जा सकती है.

पर्याप्त वैज्ञानिक समर्थन नहीं होने के बावजूद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने HCQ पर जोर दिया, इसी तरह दिल्ली सरकार ने प्लाज्मा थेरेपी पर जोर दिया. एक महामारी में, राजनीतिक नेता आशा प्रदान करने की तलाश में हैं - लेकिन यह आईसीयू बेड में निवेश, बुनियादी ढांचे में सुधार और स्वास्थ्य बजट को बढ़ाने जैसे वास्तविक समाधानों की कीमत पर नहीं आ सकता है.

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