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ठंड के कारण कैसे हो जाती है किसी की मौत?

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ठंड से मौत की खबरें हर साल आती हैं, इस साल भी देश के कई हिस्सों से ऐसी खबरें आ रही हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ठंड से किसी की मौत कैसे हो जाती है? इस दौरान शरीर में ऐसा क्या होता है, जो जानलेवा साबित होता है?

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जब सामान्य से कम होने लगता है शरीर का तापमान

आपने कभी न कभी बुखार चेक करने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग जरूर किया होगा और ये भी जानते होंगे कि हमारे शरीर का सामान्य तापमान 98.6 °F (37 °C) होता है.

जब शरीर ज्यादा तेजी से गर्मी खोने लगे और उतनी जल्दी गर्मी पैदा न कर पाए, तो शरीर का तापमान खतरनाक तरीके से कम हो सकता है, इसे मेडिकल भाषा में हाइपोथर्मिया कहते हैं.

हाइपोथर्मिया की कंडिशन तब आती है, जब शरीर का तापमान 95 °F (35 °C) से कम हो जाता है.

जब हम अपने शरीर से ज्यादा ठंडे वातावरण के संपर्क में लंबे समय तक होते हैं या ठंड से बचाव नहीं कर पाते हैं, तो फ्रॉस्टबाइट (शीतदंश)और हाइपोथर्मिया का खतरा होता है.
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शरीर का ऑटोमैटिक डिफेंस सिस्टम

जब हम ठंड के संपर्क में आते हैं, तो हमारा शरीर अपनी गर्मी खो रहा होता है, 90 फीसदी तक ऊष्मा की ये हानि हमारी त्वचा के जरिए होती है, बाकी छोड़ी गई सांस के माध्यम से होती है. स्किन के जरिए ऊष्मा की हानि हवा, नमी या पानी में और बढ़ जाती है.

हालांकि ऊष्मा की इस हानि से निपटने के लिए शरीर खुद भी काम करता है.

हमारे दिमाग में टेंपरेचर कंट्रोल करने का एक सेंटर होता है, जिसे हाइपोथैलामस कहते हैं. यही हिस्सा शरीर को ठंडक या गर्मी देने की प्रक्रिया पर काम करता है.

जब हम ठंड के संपर्क में आते हैं, तो शरीर का कोर टेंपरेचर मेंटेन करने के लिए रक्त वाहिकाएं पतली हो जाती हैं और स्किन व हाथ-पैर की उंगलियों जैसे बाहरी छोरों की ओर ब्लड फ्लो में कमी लाती हैं. इस प्रक्रिया को वैजोकन्स्ट्रिक्शन (रक्त वाहिकाओं का पतला होना) कहते हैं. इसी के तहत शरीर से पर्यावरण में होने वाली ऊष्मा की हानि सीमित होती है.

दूसरी प्रतिक्रिया है कंपकंपी. कंपकंपी ठंड के खिलाफ बॉडी का ऑटोमैटिक डिफेंस है, ताकि शरीर की गर्माहट बनी रहे. कंपकपी से गर्मी उत्पन्न होती है और शरीर का तापमान बढ़ता है.

अगर इसके बाद भी अगर हम ठंड के संपर्क में रहते हैं, तो स्किन और उंगलियों के ऊतक जमने (सेल डैमेज) लग सकते हैं, जिसे शीतदंश (frostbite) कहते हैं. त्वचा को शीतदंश से बचाने के लिए शरीर वैजोडाइलेशन की प्रक्रिया से गुजरता है यानी त्वचा की ओर ब्लड फ्लो बढ़ाने की कोशिश होती है.

इस तरह वैजोकन्स्ट्रिक्शन और वैजोडाइलेशन दोनों ही प्रक्रिया चलती है, जिससे और नुकसान होता है.

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मौत की वजह कब बनती है ठंड?

ठंड के संपर्क में आने के बाद हमारे शरीर का तापमान कितनी तेजी से गिरेगा, ये बॉडी कंपोजिशन, तापमान, वातावरण और क्लोदिंग पर निर्भर करता है.

काफी देर तक रक्त वाहिकाएं संकरी रहने से हमारा दिल ठीक तरीके से काम नहीं कर पाता, जिससे दिमाग सहित शरीर के कई अंगों तक रक्त की आपूर्ति में कमी आती है और इन अंगों का फंक्शन प्रभावित होता है और शरीर शॉक की अवस्था में आ सकता है.

जब शरीर का तापमान करीब 95 F तक पहुंचता है, तब कंपकंपी, कमजोरी और कंफ्यूजन होती है, जिसे माइल्ड हाइपोथर्मिया कहते हैं.

लाइव साइंस के इस आर्टिकल के अनुसार जैसे-जैसे शरीर का कोर टेंपरेचर घटता है, हालत और खराब होती जाती है:

  • 91 °F (33 °C) पर इंसान चीजें भूलने लग सकता है

  • 82 °F (28 °C) पर इंसान बेहोश हो सकता है

  • शरीर का तापमान 70 °F (21 °C) से जाने पर गंभीर हाइपोथर्मिया की स्थिति आ जाती है और इंसान की मौत हो सकती है

मेयो क्लीनिक के मुताबिक अगर हाइपोथर्मिया का इलाज न किया जाए, तो दिल पूरी तरह से काम करना बंद कर सकता है और इस तरह मौत भी हो सकती है.

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हाइपोथर्मिया से बचाव के लिए आप क्या कर सकते हैं?

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक अगर किसी में फ्रॉस्टबाइट या ठंड के लक्षण नजर आएं, तो मेडिकल मदद के साथ इन बातों का ख्याल रखें:

  • पीड़ित को तुरंत किसी ऐसी जगह पर ले जाएं, जहां उसे ठंडी से बचाया जा सके

  • कपड़े गीले हों, तो गर्म और सूखे कपड़े दें

  • कंबल या रजाई ओढ़ाएं

  • शीतदंश वाली जगह पर गुनगुने पानी से सेंकाई करें

  • शीतदंश ठीक करने के लिए आग, हीट लैंप, रेडिएटर, हीटिंग पैड या स्टोव जैसी चीजों की मदद न लें क्योंकिे वो हिस्सा सुन्न होता है, इसलिए इन चीजों से और नुकसान हो सकता है, साथ ही उस हिस्से को न रगड़ें और न ही मसाज करें.

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