देश की राजधानी, दिल्ली कोरोना वायरस से कैसे जीत सकती है? कोरोना के खिलाफ जंग में दिल्ली को आगे और क्या करना है, क्या दिल्ली लॉकडाउन के बाद सामने आने वाले हालात का सामना करने के लिए तैयार है? ये समझने के लिए हमने विशेषज्ञों से बात की है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 9 मई की सुबह तक कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या 2,020 रही और 68 मरीजों की मौत हुई.
भले ही दिल्ली में मामले की मृत्यु दर (करीब 1.08%) देश के (करीब 3.32%) की तुलना में कम है, लेकिन खतरा इसलिए बरकरार है क्योंकि सभी 11 जिले रेड जोन में हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अब कोरोना वायरस के साथ जीने और दिल्ली को फिर से खोलने की बात कही है.
यहां COVID-19 का पहला केस 2 मार्च को सामने आया था. 40 दिनों बाद 11 अप्रैल को यहां कोरोना के मामलों की तादाद 1 हजार के पार पहुंच गई और अगले 8 दिनों में ये संख्या दोगुनी हो कर 2,003 हो गई. 4,122 मामलों तक पहुंचने में 12 दिन लगे और इसके बाद अगले 2 दिनों में 5 हजार से ज्यादा मामले सामने आए. हालांकि डबलिंग रेट में इम्प्रूवमेंट जरूर देखा गया, जो कि 11 दिन है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि डबलिंग रेट सेल्फ-आइसोलेशन जैसे उपायों के कारण बेहतर हुई है, लेकिन लॉकडाउन हटने के साथ मामले और बढ़ सकते हैं.
क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे कहते हैं, "कर्व को फ्लैट करने का मकसद पूरा नहीं हुआ. इसके मामले बढ़ने की रफ्तार धीमी हुई हो, ये भले ही माना जा सकता है, लेकिन जब हम लॉकडाउन हटाएंगे, तो मामले बढ़ेंगे."
दिल्ली के लिए बेहतर प्लान क्या हो सकता है?
ये साफ नहीं है कि सरकार आगे क्या करने की योजना बना रही है और आगे की रणनीति क्या होगी, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्तिगत स्वच्छता की सलाह देने के अलावा, गैर-जरूरी आवाजाही और परिवहन को प्रतिबंधित करना चाहिए, सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि एसिम्पटोमैटिक और माइल्ड मामले वाले कोरोना पॉजिटिव लोग घर में क्वॉरन्टीन रहें.
भारत में पोलियो उन्मूलन में अपने योगदान के लिए मशहूर डॉ मैथ्यू वर्गीज ने कहा, "बीमारी संभवतः समुदाय में है और इसीलिए मामले अधिक हैं. COVID-19 रोगियों के साथ कोई ज्ञात संपर्क नहीं होने पर भी लोग पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. यह मामलों की बढ़ती संख्या की व्याख्या करता है."
उन्होंने आगे कहा,
वेंटिलेटर अंतिम लक्ष्य नहीं है. कई मरीज वेंटिलेटर पर होने के बावजूद मर रहे हैं. यह सिर्फ निमोनिया नहीं है, कुछ और परेशानी भी है- रक्त वाहिकाओं में खून का जमना भी समस्या है. हमें निश्चित रूप से इंटेंसिव केयर को और अधिक बढ़ाने की जरूरत है.
डॉ सुमित रे का मानना है कि देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले दिल्ली बेहतर तरीके से तैयार है, लेकिन भविष्य के लिए दूसरे प्लान की भी जरूरत है.
उन्होंने कहा, "हम एसिम्पटोमैटिक और माइल्ड मामलों को कैसे आइसोलेट करेंगे, ये सोचने की जरूरत है. हम अस्पतालों पर इन मामलों का बोझ नहीं डाल सकते हैं. दूसरी जरूरी बात ज्यादा रिस्क वालों को बचाना है. सरकार ये कैसे करेगी, ये अहम है."
उनके मुताबिक कोविड-19 के मामले बढ़ने के साथ हमें माइल्ड मामलों की देखभाल घर में ही करनी होगी और गंभीर मामलों को हॉस्पिटल ले जाना होगा.
इस पर डॉ वर्गीज भी सहमति जताते हैं.
वो कहते हैं, "होटल और दूसरी जगहों पर आइसोलेशन एरिया में मरीज परेशान हो सकता है, इमोशनल और साइकोलॉजिकल स्ट्रेस को नकारा नहीं जा सकता. उनकी घर में भी देखभाल की जा सकती है बशर्ते घर में कोई ऐसा न हो, जिसे ज्यादा रिस्क हो."
अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुरनजीत चटर्जी कहते हैं,
जब लॉकडाउन हटा लिया जाएगा, तो हमें अगले कुछ महीनों के लिए कड़े उपायों का पालन करना होगा. हमें उन सभी नियमों को बनाए रखना होगा, जिनका हम लॉकडाउन में पालन कर रहे हैं खासकर सोशल डिस्टेन्सिंग.
वो आगे कहते हैं, "अगर हम ये बेसिक चीजें फॉलो नहीं करेंगे, तो लॉकडाउन लगाने का कोई फायदा नहीं होगा."
आइसोलेशन सेंटर के बारे में उन्होंने कहा, "अगर आइसोलेशन सेंटर में सुधार नहीं किया जाता है, तो लोग टेस्ट करवाने से डरेंगे. इसलिए आइसोलेशन सेंटरों की सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिए।. बुनियादी सुविधाएं देनी होंगी ताकि लोग डर न महसूस करें और इसके साथ ही भेदभाव की भावना को भी दूर किए जाने की जरूरत है."
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)